आपातकालीन स्थिति में बचाव कार्यों का प्रशिक्षण लेने के लिए आठ सब-स्टेशनों के करीब 36 कर्मचारी पुणे के पिंपरी चिंचवड के अग्निशमन मुख्यालय में जुटे हैं। वहां मौजूद एक प्रशिक्षक आग, भूकंप और आपात चिकित्सा स्थिति के दौरान बचाव के बारे में दमकल कर्मियों को नई चरखी प्रणाली के बारे में बता रहे हैं।
वैसे तो पिंपरी चिंचवड अग्निशमन मुख्यालय में दमकल कर्मियों और अधिकारियों के लिए सर्वेक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित किए ही जाते हैं, मगर हाल ही में भारत के प्रमुख शहरों में आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी के बाद उनकी जरूरतें और ज्यादा बढ़ गई हैं।
विनिर्माण इकाइयों, कोचिंग केंद्रों और विश्वविद्यालयों के गढ़ माने जाने वाले पुणे में पहले आग लगने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। तलावडे, कालेवाड़ी और भोसरी जैसे शहर के बाहरी इलाके जो अपने औद्योगिक केंद्रों, गोदामों और कबाड़खानों के प्रसिद्ध हैं वहां पहले भी आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं, खासकर गर्मियों के महीनों के दौरान।
सर्वेक्षण के दौरान दमकल कर्मियों को बताया गया कि शहर के दस में से करीब तीन प्रतिष्ठान अग्नि सुरक्षा उपायों का पालन नहीं करते हैं। अग्निशमन अधिकारी गौतम इंगावले ने कहा, ‘हम पिंपरी चिंचवड के करीब 8.8 लाख व्यवसायों के सर्वेक्षण की प्रक्रिया में हैं।
जब झुग्गियों एवं अतिक्रमण के साथ-साथ अपंजीकृत कारोबारी इलाकों की बात आती है तो अग्नि सुरक्षा के प्रति चुनौतियां देखने को मिलती हैं।’ उदाहरण के लिए इस महीने शहर की हृदयस्थली माने जाने वाले इलाके के एक संस्थान में आग लग गई, जिसमें एक छात्रावास प्रबंधक की मौत हो गई। उसी हफ्ते, दूसरी घटना में पिंपरी चिंचवड के चिखली में एक फैक्टरी शेड में भीषण आग लग गई।
इंगावले ने कहा,’हमने करीब 70,000 व्यवसायों का सर्वेक्षण किया है। उनमें से कुछ जगह आग बुझाने वाले यंत्र को दोबारा नहीं भरा गया था और कई जगह फायर सेंसर काम नहीं कर रहे थे। ऐसे मामलों में हम किसी भी मकान मालिक अथवा व्यवसायी को आवश्यक कार्रवाई करने के लिए 15 दिनों का वक्त देते हैं।’
शुरुआती मसले
पुणे शहर में 20 अग्निशमन केंद्र हैं जबकि पिंपरी चिंचवड में आठ हैं। पिंपरी चिंचवड के सब स्टेशन मोशी अग्निशमन केंद्र के उप अग्निशमन अधिकारी विनायक नाले ने कहा, ‘जब अग्नि और बिजली सुरक्षा की बात आती है तो कारोबारियों में लापरवाही झलकती है। कई बार शॉर्ट सर्किट, अपर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था और प्रशिक्षण की कमी के कारण ही आग लगने की घटनाएं बढ़ती हैं।’
दमकल कर्मी भी लापरवाही के अलावा आग बुझाने वाले यंत्र जैसे अग्नि सुरक्षा उपकरणों की कमी, अवैध और अनुचित विद्युत कनेक्शन, लोगों के बीच अग्नि सुरक्षा के प्रशिक्षण की कमी, खुले में कचरा जलाना आदि जैसे कई आम कारणों के बारे में बताते हैं जो आग लगने का कारण होते हैं।
इंगावाले का कहना है, ‘आम तौर पर अगलगी एक गंभीर हादसे में तब बदल जाती है जब हम आग लगने के शुरुआती वक्त के भीतर ही छोटी लपटों को कम नहीं करते हैं। इसके अलावा, अगर अग्नि सुरक्षा की जानकारी नहीं है अथवा छोटी आग बुझाने के लिए पर्याप्त अग्निशमन यंत्र नहीं हैं तो चीजें अनियंत्रित हो जाती हैं।’
नाले ने कहा दिल्ली के अस्पताल और राजकोट के गेमिंग सेंटर में भीषण अगलगी की घटनाओं के साथ-साथ पुणे के कुछ इलाकों में हुईं ऐसी घटनाओं के बाद अग्निशमन केंद्र सर्वेक्षण कर रहा है। जिन कारोबारियों के पास अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाणपत्र नहीं हैं उन्हें नोटिस जारी किए जा रहे हैं।
डॉ. बालासाहेब शिंदे ने कहा, ‘दिल्ली के अस्पताल में आग लगने की घटनाओं के बाद हमने देखा है कि अग्निशमन विभाग खतरनाक इलाकों में जांच करने के लिए हमारे क्षेत्र में सर्वेक्षण कर रहा है। पिछले साल, विभाग ने एक मॉक ड्रिल किया था, जहां उसने ड्यूटी पर तैनात हमारी नर्सों और चिकित्सकों को आग पर काबू पाने, आग बुझाने वाले कैन और आपातकालीन निकास का संचालन करने के बारे में बताया था।’
इस बीच, संस्थान और औद्योगिक इकाइयों जैसे अन्य क्षेत्रों को ऐसे परिसरों के वातावरण के आधार पर ध्यान देने की जरूरत हो सकती है, जहां से ये परिसर चलते हैं। डॉ. डीवाई पाटिल इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. प्रभात रंजन ने कहा, ‘एक विश्वविद्यालय के लिए अग्नि सुरक्षा के उपाय अन्य स्थानों की तुलना में अलग हो सकते हैं क्योंकि वहां रासायनिक प्रयोगशालाएं और विद्युत उपकरण होते हैं, जिसे सिर्फ पानी से काबू नहीं किया जा सकता है और उसके लिए सहायता की जरूरत हो सकती है।
विश्वविद्यालय के मामले में हमें आग की लपटों को बुझाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड या विशेष फोम की जरूरत पड़ सकती है।’ उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में अग्नि सुरक्षा और रखरखाव के लिए सालाना खर्च के लिए बड़ी राशि आवंटित की जाती है।
रंजन ने कहा, ‘यह हमारे सालाना खर्च का करीब 5 फीसदी हो सकता है। विश्वविद्यालय परिसर के निर्माण के दौरान अग्निशमन विभाग से मंजूरी ली जाती है। विभाग जो सुझाव देता है उसी के अनुरूप हम व्यवस्था करते हैं।
जैसे- दमकल की गाड़ियों के आने-जाने के लिए पर्याप्त स्थान, फायर हाइड्रेंट सिस्टम की स्थापना आदि।’ मगर संस्थानों द्वारा आंतरिक सुरक्षा उपाय करने के बावजूद संकीर्ण सड़कें और यातायात जैसे बाहरी कारण दमकलकर्मियों की चुनौतियों को बढ़ा देते हैं।
नाले ने कहा, ‘नो पार्किंग जोन में वाहनों को लगाने से आवाजाही में परेशानियां होती हैं। कुछ औद्योगिक इकाइयों अथवा गोदाम छोटी जगहों पर हैं जहां पानी के टैंकर नहीं पहुंच पाते हैं।’
चाकण की कन्वेयर निर्माण कंपनी मूवटेक कन्वेयर के निदेशक एसएस मेदनकर ने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि सरकार अग्नि सुरक्षा पर अधिक जानकारी देगी और पर्याप्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करेगी ताकि हर कोई इसमें शामिल हो सके और सुरक्षा तरीकों के बारे में जागरूक हो सके। इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हर कोई मौजूदा प्रशिक्षण कार्यक्रम से अवगत हुआ हो।’
अग्नि बीमा रिहायशी इलाकों, औद्योगिक इकाइयों, वाणिज्यिक स्थानों सहित अन्य की जरूरतों को पूरा करता है। ऐसी पॉलिसियां आग, बिजली, विस्फोट आदि घटनाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई करती हैं। नैशनल इंश्योरेंस एकेडमी, पुणे के निदेशक डॉ. तरुण अग्रवाल ने कहा, ‘अग्नि सुरक्षा के महत्त्व के बारे में लोगों को बताने और भारत में इस बारे में व्यापक सर्वेक्षण करने की जरूरत है कि कहां-कहां अग्नि बीमा की पहुंच नहीं हो पाई है। ‘