दिल्ली सरकार ने पिछले सप्ताह सभी श्रेणियों के कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन बढ़ा दिया है। नया वेतन 1 अप्रैल 2025 से प्रभावी माना गया है। कामगारों के लिए यह फैसला बेहतर है। वहीं इस कदम से पड़ोसी राज्यों और दिल्ली के वेतन में अंतर और बढ़ गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे राष्ट्रीय राजधानी में प्रवासी कामगारों की संख्या बढ़ सकती है।
दिल्ली में अब गैर कुशल कामगारों का मासिक वेतन 18,456 रुपये, कुशल कामगारों (स्नातक और इससे ऊपर) का वेतन 22,411 रुपये होगा। दिहाड़ी मजदूरी के हिसाब से देखें तो यह रोजाना क्रमशः 710 रुपये और 862 रुपये होगा। बिजनेस स्डैंडर्ड के विश्लेषण से पता चलता है कि गैर कुशल कामगार उत्तर प्रदेश और हरियाणा में क्रमशः 10,944 रुपये और 11,257 रुपये मासिक पाते हैं। वहीं कुशल कामगारों को क्रमशः 13,546 रुपये और 14,367 रुपये महीने मिलते हैं।
श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा का कहना है कि वेतन अनुसूचित रोजगार पर ही लागू होगा। इसे जमीनी स्तर पर अनुपालन कराने की स्थिति बेहद लचर है। ऐसे में इससे नियोक्ताओं की केवल न्यूनतम वेतन की दर निर्धारित होती है।
उन्होंने कहा, ‘दिल्ली और पड़ोसी राज्यों में न्यूनतम वेतन में इतने ज्यादा अंतर से साफ होता है कि इससे कामगारों के विस्थापन की राह तैयार हो रही है। हालांकि सच्चाई यह है कि अनौपचारिक क्षेत्र इस तरह की घोषणाओं से शायद ही प्रभावित होता है। इन्हें सिर्फ सरकारी प्रतिष्ठानों में प्रभावी तरीके से लागू किया जाता है।’
एक पूर्व मुख्य श्रम आयुक्त ने नाम न सार्वजनिक करने की शर्त पर कहा कि न्यूनतम वेतन में बदलाव कानूनन अनिवार्य है, लेकिन अभी भी कई राज्य इसका उल्लंघन कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘दिल्ली व पड़ोसी राज्यों के वेतनमान में भारी अंतर की वजह यह है कि इन राज्यों ने हाल के वर्षों में नियमित रूप से वैधानिक वेतन को संशोधित नहीं किया है। इसकी वजह से वेतन निराशाजनक नजर आ रहा है। प्राय: वेतन कम रखा जाता है, जिसकी वजह से राजकोषीय बचत होती है।’