भारत का रक्षा रखरखाव, मरम्मत एवं ओवरहाल (एमआरओ) क्षेत्र अगले पांच वर्षों में जबरदस्त विस्तार के लिए तैयार है। इस क्षेत्र में विश्वस्तरीय एमआरओ केंद्र स्थापित करने के लिए घरेलू कंपनियां वैश्विक एरोस्पेस दिग्गजों के साथ मिलकर काम करेंगी। लॉकहीड मार्टिन एवं बोइंग जैसी कंपनियों के निवेश और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (टीएएसएल) एवं एआई इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड (एआईईएसएल) जैसी भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी इसके प्रमाण हैं।
भारत को एक क्षेत्रीय सैन्य विमानन रखरखाव केंद्र के रूप में स्थापित करने की बुनियाद रखी जा चुकी है। एक परिपक्व उद्योग और नीतिगत सुधारों के बल पर अगले पांच वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में जबरदस्त बदलाव दिखेंगे। इसके तहत कई नए एमआरओ केंद्र स्थापित किए जाएंगे। इसके अलावा इसमें देश में रखरखाव के लिए रक्षा प्लेटफॉर्मों की बढ़ती भागीदारी और वैश्विक रक्षा मूल उपकरण विर्माताओं (ओईएम) का समर्थन करने वाले स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं की बढ़ती भूमिका शामिल होगी।
लॉकहीड मार्टिन के निदेशक (एयर मोबिलिटी एवं मैरिटाइम मिशन इंटरनैशनल कैम्पेन) निक स्मिथ ने कहा कि भारत के रक्षा एमआरओ क्षेत्र के लिए अगले पांच वर्ष खुद को साबित का चरण होगा। उन्होंने कहा कि दसॉ एविएशन, बोइंग और लॉकहीड मार्टिन जैसी वैश्विक ओईएम द्वारा इस क्षेत्र में की गई हालिया घोषणाएं वर्षों की योजना और प्रयास का नतीजा है जो सरकार के मेक इन इंडिया दृष्टिकोण के बिल्कुल अनुरूप हैं।
लॉकहीड ने टीएएसएल के साथ मिलकर भारत में सी-130जे सुपर हरक्यूलस विमान के लिए एमआरए इकाई स्थापित करने की योजना बनाई है। यह इकाई 2027 में चालू हो जाएगी। लॉकहीड की इकाई अमेरिकी सरकार को क्षेत्रीय सुविधा भी उपलब्ध कराएगी। इससे यह सुनिश्चित होगा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र से गुजरने वाले सैन्य विमान भी इस क्षेत्र की एमआरओ इकाई का फायदा उठा सकें।
बोइंग भी भारत में अपने कारोबार के विस्तार की तैयारी कर रही है। बोइंग के अध्यक्ष (भारत एवं दक्षिण एशिया) साहिल गुप्ते ने रक्षा प्लेटफॉर्म के लिए एमआरओ सेवाओं में बढ़ती संभावनाओं पर जोर दिया। बोइंग ने अगस्त में भारतीय नौसेना के 12 पी-8आई विमानों के लिए स्थानीय एमआरओ क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एआईईएसएल के साथ साझेदारी की घोषणा की है। इससे महत्त्वपूर्ण कलपुर्जों के लिए देश में ओवरहाल सेवाएं प्रदान की जा सकेंगी।
निवेश के सटीक आंकड़े फिलहाल उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन एमआरओ में काफी बड़ा निवेश होने की उम्मीद है जो लाखों डॉलर का होगा।
तस्वीर काफी आशाजनक होने के बावजूद कुछ चुनौतियां बरकरार हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति 2016, एमआरओ दिशानिर्देश 2021 और जीएसटी दरों में बदलाव जैसी पहल से भारत को एक वैश्विक एमआरओ केंद्र स्थापित करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध दिखती है। मगर बुनियादी ढांचे की सीमाएं, ऋण तक पहुंच, लाइसेंस व्यवस्था को सुगम बनाना और वैश्विक मूल्य श्रृंखला में शामिल होने जैसी चिंताओं को दूर करना अभी बाकी है।