संक्रमित जानवरों के संपर्क में आने से मनुष्यों में संक्रमण (जूनोटिक बीमारी) के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र इसकी निगरानी बढ़ाने की योजना बना रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सुदर्शन पंत ने सोमवार को इस बात पर जोर दिया कि पिछले तीन दशकों के दौरान लोग जिन 75 फीसदी नई उभरती संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त थे उनकी प्रकृति जूनोटिक किस्म की है।
हाल में जूनोटिक बीमारी जैसे निपाह, जीका, मवेशी में गांठ वाली त्वचा से जुड़े रोग बढ़ने और पक्षियों में वायरस के संक्रमण से मनुष्यों के संक्रमित होने (एवियन इन्फ्लूएंजा या बर्ड फ्लू) जैसे मामले देश के विभिन्न हिस्सों में देखे गए हैं। हाल में ऐसी बीमारियों के उभरने पर टिप्पणी करते हुए पंत ने कहा कि भविष्य में ऐसी बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए यह जरूरी होगा कि जूनोटिक बीमारी के विशिष्ट कारकों और इसकी प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझा जाए।
भारत के वन्यजीवों में काफी विविधता पाई जाती है और यहां सबसे बड़ी पशुधन आबादी के साथ-साथ मानव आबादी का घनत्व भी उच्च स्तर का है, ऐसे में मानव-वन्यजीवों में बीमारियों के प्रसार का जोखिम काफी ज्यादा है। हाल में कोविड-19 महामारी के प्रसार के प्रभाव का जिक्र करते हुए पंत ने कहा कि मनुष्यों और वन्यजीवों दोनों के लिहाज से बीमारियों के खतरे को दूर करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अधिकांश उभरती संक्रामक बीमारियां, मानव-पशुओं के साझा वातावरण में बदलाव का परिणाम है। उन्होंने कहा, ‘इस तरह के परस्पर संबंध, विभिन्न क्षेत्र की मजबूती का लाभ उठाने के साथ ही स्वास्थ्य को लेकर एक तरह की रणनीति पर जोर देते हुए ऐसी संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए एकीकृत और मजबूत उपाय करने वाली प्रणाली तैयार करने में मददगार होता है।’
इस समस्या का समाधान करने के मकसद से प्रधानमंत्री की विज्ञान, तकनीक एवं नवाचार सलाहकार परिषद (पीएम-एसटीआईसी) जुलाई 2022 में नैशनल वन हेल्थ मिशन की योजना लेकर आई ताकि मानव स्वास्थ्य के दृष्टिकोण के साथ-साथ मवेशी और वन्यजीवों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा की जा सके। पंत ने कहा कि राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के विभिन्न तकनीकी विभागों के जरिये मानव, पशु और पर्यावरण पर जूनोटिक खतरे की संभावना वाली महामारी से निपटने की तैयारी करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।