देश के वाणिज्यिक पंचाटों में लंबित मामलों की संख्या सितंबर, 2025 तक बढ़कर 3.56 लाख हो चुकी है। कानूनी मामलों के थिंक टैंक दक्ष (डीएकेएसएच) के एक अध्ययन के अनुसार, इन लंबित मामलों में कुल 24.72 लाख करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। थिंक टैंक ने पंचाटों की स्थिति पर रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ ट्रिब्यूनल्स 2025’ में अनुमान लगाया है कि वाणिज्यिक पंचाटों के समक्ष लंबित सभी मामलों का कुल मूल्य 2024-25 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 7.48 फीसदी है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इन वाणिज्यिक पंचाटों को शुरू में विशेष एवं अर्ध-न्यायिक निकायों के रूप में परिकल्पित किया गया था जो कुशल एवं त्वरित न्याय प्रदान करने में सक्षम हों। मगर तमाम विधायी हस्तक्षेपों, रिक्तियों, प्रक्रियात्मक कमियों और इनकी आजादी संबंधी चिंताओं ने प्रभावशीलता को लगातार कम कर दिया है।’
उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय कंपनी विधक पंचाट (एनसीएलटी) और राष्ट्रीय कंपनी विधिक अपील पंचाट (एनसीएलएटी) ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालियापन कानून ढांचे के तहत मामलों को निपटाने के लिए स्थापित किए गए थे। मगर इन पंचाटों को किसी एक मामले को निपटाने में औसतन 752 दिन लगते हैं जो 330 दिनों की वैधानिक समयसीमा के मुकाबले दोगुना है।
एनसीएलटी और एनसीएलएटी दोनों के पास 18,000 से अधिक मामले लंबित हैं। मगर वे काफी हद तक अनुबंध कर्मियों पर निर्भर हैं। एनसीएलटी के कुल कार्यबल में अनुबंध कर्मियों की हिस्सेदारी 88 फीसदी है। एनसीएलएटी के मामले में यह आंकड़ा 84.9 है।
ऋण वसूली पंचाटों (डीआरटी) को वाणिज्यिक चूककर्ताओं से रकम की वसूली में तेजी लाने के लिए स्थापित किया गया था। उसके पास 2.15 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। इनमें 86 फीसदी से अधिक मामले 180 दिनों से अधिक समय से लंबित हैं जो 6 महीने की वैधानिक समयसीमा से अधिक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 18 राज्यों में एक भी डीआरटी पीठ नहीं हैं। इसी प्रकार, आयकर अपील पंचाट और सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर अपील पंचाट जैसे देश के कर पंचाटों में भी 73,000 से अधिक मामले लंबित हैं। इन मामलों में करीब 1.96 लाख करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल में स्थापित वस्तु एवं सेवा कर अपील पंचाट के जल्द काम करना शुरू करने की संभावना है। उसके पास जीएसटी विवाद से संबंधित 2.9 लाख करोड़ रुपये के मामले होंगे।
प्रतिभूति अपील पंचाट, दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपील पंचाट और बिजली के लिए अपील पंचाट जैसे क्षेत्रीय पंचाट क्षमता में पर्याप्त निवेश के बिना ऊर्जा एवं डेटा सुरक्षा जैसे क्षेत्रों के साथ तेजी से बढ़ रहे मामलों से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इन क्षेत्रीय दबावों के पीछे कई गंभीर खामियां हैं। पंचाटों में काफी रिक्तियां बरकरार हैं, पीठ अक्सर एक सदस्य वाला होता है और कुछ पंचाट में 80 फीसदी से अधिक कर्मचारी अनुबंधों पर हैं।’
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल में कहा था कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश पंचाटों में कोई पदभार लेने से हिचकते हैं। उनकी अनिच्छा समझ में आती है क्योंकि उनके साथ गरिमापूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता है।
राष्ट्रीय हरित पंचाट में लंबित नियुक्तियों के एक मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और आर महादेवन के दो न्यायाधीशों वाले पीठ ने कहा था कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को स्टेशनरी जैसी बुनियादी वस्तुओं के लिए भी बार-बार अनुरोध करना पड़ता है।
न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा था, ‘सबसे खटारा कार पंचाट के चेयरपर्सन को ही दी जाती है। उनके आवास, बुनियादी ढांचे और परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में उनसे इन पदों को स्वीकार करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?’
रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकतर वाणिज्यिक पंचाट लंबित मामलों, निपटान दरों अथवा मामलों की समय-सीमा के बारे में डैशबोर्ड या व्यवस्थित आंकड़े प्रकाशित नहीं करते हैं।