गैमन इन्फ्रास्ट्रक्चर ने धैर्यवान निवेशकों के लिए सतत लाभ की पेशकश की
जितेन्द्र कुमार गुप्ता
अपने व्यापार को नया रूप देने के उद्देश्य से गैमन इंडिया अपनी सहायक कंपनी गैमन इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स (जीआईपीएल) के साथ आधारभूत संपदा के स्वामित्व और संचालन पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
सिविल कंस्ट्रक्शन क्षेत्र की अग्रणी कंपनी गैमन इंडिया निर्माण क्षेत्र पर अपना फोकस जारी रखेगी, वहीं जीआईपीएल आधारभूत क्षेत्र में स्वामित्व हासिल करेगी और परिसंपत्ति का परिचालन करेगी।
जीआईपीएल के पास सड़क, विद्युत और बंदरगाह सेगमेंट क्षेत्र में 5500 करोड़ रुपये की 14 परियोजनाएं हैं जिनमें से चार परियोजनाएं चालू हैं और 10 पूरे होने के विभिन्न चरणों से गुजर रही हैं।
इन परियोजनाओं में जीआईपीएल का लगभग 70 प्रतिशत का नियंत्रण है जिन्हें अगले 4-5 वर्षों के दौरान 650 करोड़ रुपये के पूंजी योगदान की जरूरत होगी।
इन परियोजनाओं पर 250 करोड़ रुपये का निवेश पहले ही किया जा चुका है जबकि राशि का एक बड़ा हिस्सा पहले पटिलक इश्यू (आईपीओ) के जरिए जुटाया जाएगा जिसमें जीआईपीएल का उद्देश्य 167-200 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से 276-331 करोड़ रुपया जुटाना है।
बंदरगाह
कंपनी पोर्ट सेगमेंट में भी प्रवेश कर चुकी है जिसके तहत यह विशाखापत्तनम में एक परियोजना संचालित करती है। एसपीवी, विशाखापत्तनम बंदरगाह के जरिए इस परियोजना में इस कंपनी की 42.22 प्रतिशत की भागीदारी है।
एसपीवी 189 रुपये प्रति टन के हिसाब से प्रति वर्ष 30 लाख टन कोयले के लिए सेल के साथ 30 वर्षीय एक समझौता कर चुकी है। इसके अलावा लगभग 5 लाख टन कोयले के संचालन के लिए राष्ट्रीय इस्पात निगम के साथ भी एक वर्ष का अनुबंध किया गया है।
जीआईपीएल की योजना मौजूदा 40 लाख टन की क्षमता को बढ़ा कर 90 लाख टन प्रति वर्ष किया जाना है।
क्षमता में विस्तार किए जाने से उपयोग स्तरों का पूरी तरह फायदा उठाया जा सकेगा और इससे एसपीवी को 146.70 करोड़ रुपये प्रति वर्ष राजस्व हासिल हो सकता है।
कंपनी ने 1200 करोड़ रुपये वाली एक और परियोजना हाल ही में हासिल की है। परियोजना में शुरुआती चार वर्षों की अवधि के लिए मौजूदा मुंबई पोर्ट कंटेनर टर्मिनल का संचालन और प्रबंधन शामिल है।
इसके अलावा इस परियोजना में समुद्रगामी कंटेनर टर्मिनल के विकास और प्रबंधन का कार्य भी शामिल है। 85-95 डॉलर प्रति टीईयू की दरों के साथ नया बंदरगाह प्रति वर्ष 272-304 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित कर सकता है।
इसके अलावा कंपनी को गुजरात में बहुद्देशीय बेडी बंदरगाह के विकास के लिए वरीयता प्राप्त कंपनी है।
यदि लगभग 40-50 लाख टन की संभावित क्षमता के साथ यह परियोजना इसे हासिल होती है तो जीआईपीएल के राजस्व को आगे बढ़ाने के लिए यह महत्वपूर्ण होगी।
समेकित आधार पर इन तीन बंदरगाह परियोजनाओं की क्षमता लगभग 480 करोड़ रुपये की राजस्व वृद्धि की होगी।
सड़क
कंपनी स्थाई दीर्घावधि राजस्व के लिए वार्षिक वृत्ति या टोल-आधारित परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करती रही है, जिनमें से तीन परियोजनाएं चालू हैं।
इन तीन सड़क परियोजनाओं (100 किलोमीटर, जिसमें 700 मीटर का टोल ब्रिज भी शामिल है) से कंपनी को वार्षिक रूप से 115 करोड़ रुपये की आमदनी होगी।
आगे चलकर कंपनी अपने पोर्टफोलियो में 142किलोमीटर के हिस्से को शामिल कर लेगी जिसमें हाल ही में प्राप्त 99.5 किलोमीटर की मुंबई-नासिक टोल आधारित सड़क परियोजना भी शामिल है।
जीआईपीएल की 70 प्रतिशत भागीदारी वाली मुंबई-नासिक सड़क परियोजना पूरी तरह से अप्रैल, 2009 तक शुरू होगी और इससे प्रति वर्ष लगभग 90-108 करोड़ रुपये के राजस्व की संभावना है।
अक्टूबर, 2009 तक 32 किलोमीटर का गोरखपुर बाईपास रोड शुरू हो जाएगा और इससे सालाना 96 करोड़ रुपये के योगदान की संभावना है। इसके बाद एन्युटी आधारित कोसी सड़क परियोजना के जरिए अप्रैल 2010 के बाद से प्रति वर्ष अन्य 62 करोड़ रुपये के राजस्व की संभावना है।
विद्युत
जीआईपीएल विद्युत उत्पादन और वितरण, खासकर सार्वजनिक-निजी भागीदारी के आधार पर जलविद्युत और बायोमॉस परियोजनाओं, के क्षेत्र में भी प्रवेश कर चुकी है।
कंपनी के पास 1,493 करोड़ रुपये के निवेश वाली 326मेगावाट की क्षमता की पांच विद्युत परियोजनाएं हैं। इन परियोजनाओं के वित्तीय वर्ष 2012 तक एक चरणबद्ध क्रम में शुरू होने की संभावना है।
एक परियोजना शुरू हो चुकी है जिससे जीआईपीएल के लिए लगभग 45.50-63 करोड़ रुपये की शुद्ध आय हो सकेगी।
निवेश
जीआईपीएल के पास विभिन्न सेगमेंट में कई परियोजनाएं हैं। हालांकि इनमें कई परियोजनाएं लंबी अवधि वाली परियोजनाएं हैं जिनके लिए कंपनी की वित्तीय स्थिति को पूरी तरह दर्शाने में तीन-चार वर्षों के समय की जरूरत होगी।
लंबी अवधि के खरीदारी समझौते और टोल पर आधारित ये परियोजनाएं नियत आय वाली परियोजनाएं हैं जिनसे लंबी अवधि के लिए स्थाई राजस्व प्राप्त होगा।
इसकी 14 निवर्तमान परियोजनाओं को लगभग 5500 करोड़ रुपये की जरूरत है और जीआईपीएल का योगदान 650 करोड़ रुपये (अगले चार-पांच वर्षों के लिए) होगा।
इन परियोजनाओं के पूरी तरह चालू होने के बाद एसपीवी की कुल आय 97-130 करोड़ रुपये प्रति वर्ष हो सकेगी जो वित्तीय वर्ष 2007 में 29.85 करोड़ रुपये थी।
इसके अलावा कंपनी को सड़क और बंदरगाह सेगमेंट में गहन अनुभव हासिल है। हालांकि विद्युत क्षेत्र में कंपनी को महारथ हासिल नहीं है। तीन वर्षों की लंबी अवधि के साथ धैर्यवान निवेशक आईपीओ में निवेश को लेकर विचार कर सकते हैं।
गेस्ट कॉलम
कागज उद्योग पर एक नजर
महज एक महीने पहले जब शेयर बाजार ऊंचाई पर था, हमने कुछ राहत के लिए प्रार्थना की थी। हमारे निवेदन को तुरंत स्वीकृत कर लिया गया और अब हम कमाई के लिए साहस की प्रार्थना कर रहे हैं।
इन परिस्थितियों में एक उद्योग ऐसा है जो मेरा अहम बढ़ाता है, वह है कागज।
और मैं अभी भी विश्व के सिरपुर्स, एपी पेपर्स और वेस्ट कोस्ट पेपर्स को उपहासपूर्ण पाता हूं।
कागज उद्योग का अवलोकन करने पर पता चलता है कि किस तरह से कागज उद्योग ने स्वयं को महज कूड़े के ढेर में पाया है।
तीन वर्ष पहले भारत के कागज उद्योग में कुछ प्रमुख कंपनियों ने वैश्विक सीआरईपी क्रम के अनुकूल स्वयं को स्थापित किया जिसके लिए इन कंपनियों को अपनी निर्माण प्रक्रिया में क्लोरीन के इस्तेमाल को दूर किए जाने की जरूरत थी।
इन कंपनियों ने पर्यावरण अनुकूल उपकरणों पर निवेश किया। इस निवेश का एक बड़ा भाग न केवल अनिवार्य थी बल्कि यह निषेधात्मक भी था। इस निवेश का अधिकांश हिस्सा न सिर्फ निषेधात्मक था बल्कि यह लाभकारी भी नहीं था।
परिणाम: कागज उद्योग के प्रमुख विश्लेषकों का कहना है कि कंपनियों ने इस उद्योग में बड़े पैमाने पर खर्च किया, परियोजनाओं को आगे बढ़ाया गया, इनकी क्रियाशीलता में विलंब हुआ और प्रतिफल अनुपात प्रतिकूल रहा।
भले ही आपने एक विश्लेषक के कागज भंडार का जिक्र किया। विश्लेषक ने एक उचित राय दी है।
यह उद्योग देशांतरण के कगार पर है जिसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
-दिसंबर, 2008 की समय-सीमा तक कागज उद्योग को साफ-सुथरा एवं स्वच्छ बनाया जाएगा। कुछ प्रमुख कंपनियां यह मानक पूरा कर चुकी हैं
– अधिकांश प्रमुख कागज कंपनियां अपने संयंत्र और उपकरण को न सिर्फ आधुनिक बनाए जाने के लिए उपयोग करती हैं बल्कि ये अपनी क्षमता को भी आगे बढ़ाती हैं।
– अधिकांश प्रमुख कंपनियों ने निवेश की मात्रा के अनुरूप कम खर्च किया है
– उत्पाद शुल्क में 12 फीसदी से 8 फीसदी की कटौती से जहां एक तरफ मांग बढ़ सकती है वहीं वसूली में भी वृद्धि हो सकती है।
सिरपुर पेपर
तीन वर्ष पहले तक इस कंपनी की क्षमता 83 हजार टीपीए थी जो बाद में उपकरणों में नए एवं तेज सुधारों के कारण 137,000 टीपीए पर जा पहुंची।
इस उद्योग के आधुनिकीकरण और क्षमता विस्तार को लेकर 400 करोड़ रुपये से भी अधिक का निवेश किया गया, जिसमें शामिल हैं:
– कच्चे पदार्थों का इस्तेमाल घटाने, केमिकल का इस्तेमाल घटाने, अपशिष्ट घटाने और गुणवत्ता सुधारने एवं चमक बढ़ाने के उद्देश्य से एक नई फाइबर लाइन का इस्तेमाल किया गया।
– पर्यावरण अनुकूल स्वच्छ प्रक्रिया, जिसमें क्लोरीन और चूना के साथ सी 102 का इस्तेमाल किया गया और जल वाष्पीकरण क्षमता में महत्वपूर्ण वृद्धि की गई।
इस सबके के अलावा कंपनी ऑटोमेशन में निवेश बढ़ा रही है। प्रति व्यक्ति उत्पादकता में वृद्धि कर रही है और उत्पादन में वृद्धि कर रही है।
कंपनी कीमतों को लेकर प्रतिस्पर्धी है। यह कंपनी लगभग 600 एकड़ के भूखंड पर स्थित है। इसकी निर्माण इकाई कच्चे पदार्थों और कोयला खदानों के बीच स्थित है।
आंध्र प्रदेश पेपर
आंध्र प्रदेश पेपर (एपी पेपर) 2007-08 में उतार-चढ़ाव से जूझती रही। साक्ष्य: मौजूदा वित वर्ष की तीन तिमाहियों के दौरान इस कंपनी का ईबीआईडीटीए 27.97 करोड़ रुपये से घट कर 25.7 से 25.02 करोड़ रुपये रह गया वहीं इसके ब्याज में वृद्धि होकर यह 5.58 करोड़ रुपये से बढ़ कर 8.17 से 9.09 करोड़ रुपये हो गया।
इसके कुल लाभ में भारी गिरावट दर्ज की गई। इसका कुल लाभ 8.33 करोड रुपये से घट कर 2.79 से 2.31 करोड़ रुपये रह गया। इक्विटी: 25.73 करोड़ रुपये।
कंपनी का बाजार पूंजीकरण 550 टीपीडी के साथ लगभग 200 करोड़ रुपये रहा।
एपी पेपर के लिए पिछली तिमाही कुछ मायने में संतोषजनक रही। पिछली तिमाही में कंपनी के संचालन नेतृत्व में परिवर्तन और नए प्रबंध निदेशक की नियुक्ति का प्रभाव कीमतों में कमी के रूप में देखने को मिला।
इस कंपनी के बोयलर के शुरू होने से इसके संयंत्र को मजबूती प्रदान होगी। जुलाई, 2009 तक कंपनी द्वारा 70,000 टीपीए का लक्ष्य हासिल किए जाने की संभावना है।
उपकरण और स्थिरीकरण को लेकर कागज कंपनियों की गति बेहद धीमी रही है जिससे निवेशक के धैर्य पर कुप्रभाव पड़ सकता है।
मुदार से मुदार-ट्राइस्कॉम.कॉम पर संपर्क किया जा सकता है।
डिस्क्लोजर: होल्ड स्टॉक इन सिरपुर पेपर
उत्पाद शुल्क में 12 फीसदी से 8 फीसदी की कटौती से जहां एक तरफ मांग बढ़ सकती है वहीं वसूली में भी वृद्धि हो सकती है।