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अवसर खुद-ब-खुद बनाएंगे अपने लिए राह

Last Updated- December 08, 2022 | 12:44 AM IST

पिछले डेढ़ माह से चली आ रही भारतीय रिजर्व बैंक की कवायदों को देखकर  अर्थ जगत से जुड़ी बात ‘तारों को ढील देना’ दिमाग में ताजा हो गई है।


भारत के केन्द्रीय बैंक ने बेशक तेजी दिखाते हुए अपने होने का एहसास कराया है और वैश्विक वित्तीय संकट के प्रति अपने खुले मत पेश किए हैं। लेकिन अब देखना यह है कि शीर्ष बैंक के वे
कदम, वे प्रयास आखिर कितने प्रभावकारी साबित होंगे।

जहां कोई भी प्रमुख भारतीय संस्थान (अभी तक) दिवालिया नहीं हुआ, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कई दिशाओं से पड़ने वाले दबाव के साथ पूरा-पूरा सहयोग करने की कोशिश की है। विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से भारतीय इक्विटियों में से लगभग 10,000 करोड़ डॉलर की रकम वापस ले ली गई है और जब कच्चे तेल का आयात बिल अब भी काफी लंबा-चौड़ा है, वहां मुद्रा का दबाव लगातार बना हुआ है।

उसने रुपये को 49 के स्तर तक गिरा दिया है और जिसके आगे गिरने की भी आशंका है।पहले आईसीआईसीआईसीआई के ताश के पत्तों की तरह ढहने की अफवाहें थीं। आवासीय ऋण देने वालों और रिटेल बैंकरों में दहशत का माहौल बना हुआ था, जिनका मानना था कि अब डिफॉल्टरों की संख्या में अच्छा-खासा इजाफा होगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति से पैदा हुई मंदी के साये में ऐसी फंसी हुई नजर आ रही है, जिसमें महंगाई दर अधिक और विकास दर घटती हुई दिखाई दे रही है।शेयर बाजार की कीमतों में गिरावट ने कई चिंताओं को पैदा कर दिया है।

विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉन्डों के मामले में कई प्रश्न सामने खड़े दिखाई देते हैं, जिन्हें मौजूदा कीमतों पर इक्विटी में तब्दील नहीं किया जा सकता, क्योंकि कंपनियां तो प्रसन्न मुद्रा में कभी सोच रहीं थीं कि इनसे पैसा उगाह लेंगी। इसका मतलब है कि भारतीय कंपनियों को अरबों डॉलरों में लिए गए कर्ज को अगले वित्त वर्ष तक दोबारा फाइनैंस कराने के तरीके खोजने होंगे।

शेयरों की कम कीमतों ने प्राइमरी बाजार पर भी असर डाला है, जो इस समय बेहोश सा पड़ा है। इसने अधिसूचित कंपनियों की राइट्स इश्यू और निजी प्लेसमेंट के जरिये फंड उगाहने की क्षमता को भी बेअसर कर दिया है। इसलिए फ्री कैश को यही अलविदा कहना पड़ेगा।

महंगाई दर अभी घट रही है, जिसे हम एक अच्छी खबर मान सकते हैं। लेकिन यह गलत कारणों के लिए घट रही है। मांग में कमी के फस्वरूप स्टॉक तरलता बढ़ रही है। जिंस विक्रेता कम खरीद रहे हैं क्योंकि वे कम बेच पा रहे हैं।

इसलिए जिंस उत्पादक मौजूदा स्टॉक को बेच कर अपने हाथ झाड़ रहे हैं। इसक वजह से जिंसों की कीमतें घट रही हैं और भारत भी वही अनुभव कर रहा है, जैसा विदेशों में हो रहा है। कई कंपनियां तो अपनी विस्तार योजनाओं पर मांग में कमी की वजह से दोबारा विचार करने पर मजबूर हो रही हैं।

आरबीआई इस दौर में जो कर सकता है, उसने किया। बैंक ने नकद आरक्षी अनुपात यानी सीआरआर पर लगी अपनी पाबंदी में थोड़ी ढील दी और विदेशों में फंड लगाने के रास्ते को भी थोड़ा आरामदायक बनाने की कोशिश की। लेकिन अब समस्या यह है कि उधार की आसान उपलब्धता को भी आप बड़ी मात्रा में उधार लेने में तब्दील नहीं कर सकते और न ही ऐसा हो यह जरूरी भी है।

 ज्यादा उधार वहीं लिया जाएगा, जहां फंड की मांग ज्यादा है- आप ढील तो दे सकते हैं, लेकिन वह तभी कसेगी, जब दूसरी और से कोई इन्हें खींचने वाला (लेने वाला) हो।मौजूदा परिस्थितियों में बैंक भी ऐसे क्षेत्रों में कर्ज पर देने के लिए तैयार हैं, जहां कर्ज के लिए मांग हो, जैसे रियल एस्टेट, रिटेल कर्ज आदि।

संभावित डिफॉल्टों से खुद को बचाते हुए, उन्होंने कम समय वाले कर्जों की ब्याज दरें अब भी काफी अधिक रखी हुई हैं। जहां ट्रेजरी बिल और सरकारी प्रतिभूति आय पहले ही काफी घट गई है और आगे भी घटेगी, व्यावसायिक कर्ज लेने की दरें अब भी अधिक बनी हुई हैं। जब एक बैंक अपना पैसा बैंक में ही रखना पसंद करें, तब कुछ ज्यादा करने की संभावनाएं ही कहां हैं।

अभी अर्थव्यवस्था में अंधेरा ही अंधेरा फैला हुआ है और सीआरआर में हुई कटौती के असर को छन कर सामने आने में कुछ समय लग सकता है। बैंकों को ब्याज दरों में कमी लाने से पहले सामान्य परिचालन में अपना विश्वास वापस पाना होगा और कंपनियों को अहम राशि में कर्ज लेने से पहले भविष्य में होने वाली मांग को लेकर खो चुके अपने विश्वास को एक बार फिर से इक्ट्ठा करना होगा।

सबसे अधिक असर रियल एस्टेट, बैंकिंग, ब्रोक्रेजेज और दूसरी वित्तीय सेवाओं, निर्माण और जिंस में धातु और सीमेंट पर होगा। इन्हें मांग, कटौती, कर्ज की अधिक लागत, विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉन्डों में हो सकने वाली समस्याओं आदि का सामना करना पड़ सकता है।

इंजीनियरिंग क्षेत्र मुश्किलों में फंस सकता है, अगर पूंजी व्यय में काफी कमी आ जाए तो, लेकिन ज्यादातर बड़ी कंपनियां ने इसे देखते हुए अपनी ऑर्डर बुक को पूरा भर दिया है। दूरसंचार से जुड़ी कंपनियों को 3जी सेवाएं देने के लिए लाइसेंस शुल्क चुकाने के लिए वित्त इक्ट्ठा करने में मुश्किल हो सकती है, लेकिन इसका असर काफी अलग होगा। आईटी को अमेरिका की कमजोर अर्थव्यवस्था के साथ समस्या है, लेकिन उनकी बैलेंस शीट में नकद भी मौजूद है।

वित्तीय सेवा की क्षेत्र की हालत आगे भी बिगड़ सकती है, लेकिन बाजार पहले ही इस सूचना से रु-ब-रु हो चुका है। क्या इससे चयनित तरीके से बाजार को खरीदने लायक बनाया जा सकता है? अगर आप ऐसे क्षेत्रों को से बचें, जिनमें अभी और अधिक नुकसान हो सकता है, तो आपको तर्कसंगत कीमतें मिल सकती हैं।

लेकिन यहां अंत में राजनीनिक अनिश्चितता बाकी है। ऐसे में जब तक अगली सरकार पद नहीं संभाल लेती, आम चुनावों के दौरान दहशत के मारे बिकवाली होना लाजिमी है। इस दौरान बेहतर अवसरों के लिए मैंने अपने दरवाजे खोल दिए हैं।

First Published - October 19, 2008 | 10:51 PM IST

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