भारत के सबसे बड़े सार्वजनिक निर्गम की निगरानी से लेकर अदाणी मामले में सख्ती नहीं बरतने के लिए आलोचनाओं का सामना करने तक, माधबी पुरी बुच के लिए बाजार नियामक सेबी की अध्यक्ष के तौर पर पहला वर्ष मिला-जुला रहा है।
बुच के लिए गति मूल मंत्र रहा है। पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर तीन साल बिताने वाली सेबी प्रमुख 1 मार्च को कमान संभालने के बाद से ही अपनी जिम्मेदारी को लेकर उत्साहित रही थीं।
फरवरी में सेबी ने प्रशासन, ईएसजी और एआईएफ जैसे विभिन्न क्षेत्रों में 17 परामर्श पत्र जारी किए और बाजार सुधारों के संदर्भ में उनकी क्षमताओं को पहचाना।
उन्होंने अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में निवेशक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए टी+1 क्रियान्वयन के साथ ब्रोकिंग उद्योग में बड़ा बदलाव लाने में योगदान दिया।
जानकारों का कहना है कि करीब दो दशकों में पहली गैर-आईएएस सेबी बॉस बाजार नियामक में नए बदलाव लाने में सफल रही हैं। उन्होंने सभी सेबी विभागों के लिए सीईओ-स्टाइल के की रिजल्ट एरियाज (केआरए) की भी पेशकश की।
अमेरिका से पहले संक्षिप्त कारोबार निपटान चक्र जैसे सुधारों पर अमल के बाद, उन्होंने सेकंडरी बाजार के सौदों में भुगतान व्यवस्था सुधारने पर जोर दिया है। जहां इसके पीछे मुख्य मकसद निवेशकों के पैसे का दुरुपयोग रोकना है, वहीं इससे भारत को वैश्विक तौर पर बेहद अत्याधुनिक पूंजी बाजार बनाने में भी मदद मिलेगी।
बुच ने निवेशकों और सूचीबद्ध कंपनियों के बीच निजी सौदों की व्यापक सुरक्षा, म्युचुअल फंड ट्रस्टियों की जिम्मेदारियों की पुनर्संचना तैयार करने तथा स्थायी बोर्ड सीटों की व्यवस्था से दूरी बनाए जाने के साथ प्रशासनिक मोर्चे पर कई प्रमुख सुधारों का भी प्रस्ताव रखा।
हालांकि उनके पहले साल में कई राजनीतिक और नियामकीय विवाद भी सामने आए। हालांकि बदलावों की गति सराहनीय थी, लेकिन बदलते नियमों के अनुरूप कारोबार बरकरार रखने की कोशिश करने वाली कंपनियों को कई तरह की चिंताओं का भी सामना करना पड़ा।
जब अमेरिकी शॉर्टसेलर की रिपोर्ट से अदाणी समूह की निवेशक वैल्यू 150 अरब डॉलर तक घट गई, तो इस बारे में नियामक की चुप्पी को लेकर भी सवाल खड़े हुए।
हालांकि अदाणी मामले में सेबी की जांच पहले ही शुरू हो गई है। एलआईसी आईपीओ में कुछ व्यवस्थाओं को लेकर भी सेबी की आलोचना हुई, जिनमें 5 प्रतिशत की नियामकीय जरूरत के बजाय सिर्फ 3.5 प्रतिशत की काफी कम हिस्सेदारी बिक्री शामिल है।
अन्य चुनौती है जांच प्रक्रियाओं और व्हाट्सऐप तथा टेलीग्राम जैसे कम्युनिकेशन चैनलों के आविष्कार के साथ नियमों की समीक्षा। इसके अलावा, जांच में लगने वाला समय, बढ़ रही मुकदमेबाजी और बॉन्ड बाजारों का सुस्त गति से विकास अन्य चिंताएं हैं। हालांकि ऐसी समस्याओं से उनके पूर्ववर्तियों को भी सामना करना पड़ा है।
एक साल का सफर : अच्छा
टी+1 निपटान चक्र का सफल क्रियान्वयन
एमएफ, एआईएफ और पीएमएस उद्योग के लिए निवेशक अनुकूल कदम
ब्रोकिंग उद्योग के लिए मार्जिन सख्त बनाना तथा अन्य सुरक्षात्मक कदम
आईपीओ के लिए सख्त खुलासा मानक, गोपनीय आवेदन पेशकश
ओएफएस, रीट्स, इनविट के लिए ढांचे में सुधार
नए सुधारों के लिए चर्चा पत्र और समितियां
निर्णय लेने की प्रक्रिया में आंकड़े का ज्यादा इस्तेमाल
खराब
अदाणी मामले में सख्ती नहीं बरतने के लिए आलोचना
एलआईसी आईपीओ के लिए एक अलग एवं विशेष व्यवस्था की अनुमति देना
एनएसई मामले में सैट से झटका