आर्थिक भविष्यवक्ता खर्चों में कटौती और अनुमानों में कमी की अपनी पहले की बातों से बदल रहे हैं। यहां तक कि राजनीतिक भी सार्वजनिक तौर पर अगले कुछ वर्षों के लिए विकास दर कम होने की बात स्वीकार कर रहे हैं।
भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर 2008-09 के लिए लगभग 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है जिससे अभी भी उम्मीद की किरणें बाकी हैं। कंपनियों के परिणाम सेवा और विनिर्माण क्षेत्र के प्रदर्शन में एक कड़ी हैं, जो कुल जीडीपी का 80 प्रतिशत हिस्सा हैं।
सूचीबध्द यानी शेयर बाजारों की अर्थव्यवस्था इस स्पेक्ट्रम में काम करती है और आमतौर पर पूरी अर्थव्यवस्था से बेहतर प्रदर्शन करती है। 2008-09 की दूसरी तिमाही में भारतीय कंपनियों के नतीजों में गिरावट देखी गई और कंपनियों के ईपीएस में भी दूसरी छमाही के लिए जबरदस्त गिरावट के अनुमान है।
हाल में ब्रोकिंग सलाहकार फर्म मोतीलाल ओसवाल ने सेंसेक्स ईपीएस अनुमानों में जबरदस्त गिरावट का अनुमान लगाया है। वित्तीय सलाहकार कंपनी ने सेंसेक्स ईपीएस के 8.6 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान लगाया है, जबकि यह अनुमान पहले के 21.5 प्रतिशत से काफी कम है। नए कारोबारों (रिलायंस इंडस्ट्रीज का गैस कारोबार) को अलग कर दें तो बढ़ोतरी 7 प्रतिशत रह सकती है।
अगर जीडीपी के साथ महंगाई दर को समायोजित करें तो 7 प्रतिशत की यह कम वृध्दि (या कुल मिलाकर 8.6 प्रतिशत) नकारात्मक दिखाई देती है। यह अनुमान तब और पुख्ता हो जाते हैं, जब हम एनएसई की वेबसाइट पर निफ्टी ईपीएस पर नजर दौड़ाते हैं।
नवंबर 2007 में निफ्टी का ईपीएस 3 प्रतिशत था जो इस साल नवंबर के मुकाबले काफी अधिक है। महंगाई दर बढ़ने के बाद यह नकारात्मक ईपीएस का रुझान देखने को मिला है। आगे ईपीएस और भी कम हुआ तो इस बात की आशंका बढ़ जाएगी कि भारतीय कॉर्पोरेट जगत 2008-09 में कम होते ईपीएस और महंगाई दर के कारण काफी मुश्किलों का सामना करेगा।
पिछले बार ऐसा 1991-92 में हुआ था। उस साल जीडीपी विकास 1 प्रतिशत से भी नीचे चला गया था, महंगाई 20 प्रतिशत से अधिक और अर्थव्यवस्था भुगतान संकट के झंझावत से जूझ रही थी। अर्थव्यवस्था उदारीकरण के असर के साथ तालमेल बैठा रही थी। पर हम 1991-92 की तुलना 2008 से नहीं कर सकते, क्योंकि उस समय की सूचीबध्द कंपनियां पूरी अर्थव्यस्था का बहुत थोड़ा ही हिस्सा थीं।
तब से आर्थिक चक्र के सबसे निचले स्तर पर जीडीपी बढ़त 4 से 5 प्रतिशत के बीच में रहा है और कॉर्पोरेट ईपीएस बढ़त 12 प्रतिशत से कुछ अधिक होती है। यह मान लें कि महंगाई दर 8 से 12 प्रतिशत के बीच में है, तो भी सूचीबध्द कंपनियां आमतौर पर अर्थव्यवस्था से बेहतर प्रदर्शन करती हैं।
अगर यह सच है और मौजूदा रुझान में आंकड़ों की कोई गड़बड़ी नहीं है तो यह अनुमान काफी भयावह हैं। अगर कॉर्पोरेट अर्थव्यवस्था वास्तव में पूरी अर्थव्यवस्था से बेहतर प्रदर्शन करती है, जैसा कि हो सकता है, जीडीपी विकास दर बहुत कम या लगभग शून्य रेखा को छू सकती है। ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं है।
लेकिन कोई भी इस बारे में तय नहीं कर पाया है कि आखिर जीडीपी विकास और कॉर्पोरेट विकास में इतना बड़ा अंतर क्यों है। कृषि कुल जीडीपी में 20 प्रतिशत का योगदान देती है, लेकिन वह भी इस हद तक बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकती कि वह पूरी अर्थव्यवस्था को अंधेरी खाई में जाने से बचा ले। यह स्थिति तो तब है जब सेवाओं और विनिर्माण का प्रदर्शन एक सा रहे।
अर्थव्यवस्था का प्रमुख संकेत बाजार है जो पहले ही इस तरह से प्रतिक्रिया दे चुका है। जैसे, उसकी उम्मीदें आधिकारिक अनुमानों से भी कम हैं। निफ्टी नवंबर 2007 के अपने स्तर से 51 प्रतिशत नीचे है और सैकड़ों शेयर उससे भी निचले स्तर पर हैं। सूचीबध्द रियल एस्टेट क्षेत्र बाजार के सबसे तेज दौर के मुकाबले इस समय लगभग 90 प्रतिशत से भी नीचे गिर चुका है।
मोतीलाल ओसवाल (और अन्य) के अनुसार सीमेंट, रियल एस्टेट और धातु सभी 2008-09 में गिर सकते हैं। दुनियाभर में जिंस का प्रदर्शन बुरा ही रहेगा। एनटीपीसी और एसबीआई ही सेंसेक्स के ऐसे शेयर हैं जो अगले दो वित्त वर्षों में बेहतर प्रदर्शन करने वाले दिखाई दे रहे हैं।
ईपीएस के स्तर में सबसे अधिक गिरावट टाटा स्टील में देखी जा रही है, जिसके साथ टाटा मोटर्स के ईपीएस में गिरावट का दौर देखा जा रहा है। एफएमसीजी और आईटी 2008-09 में अपना प्रदर्शन बनाए रख सकते हैं। अलबत्ता, 2009-10 में आईटी को कुछ राहत दिख रही है।
2009-10 में बाजार का फिर से बढ़ना इस बात पर निर्भर करेगा कि जनवरी से मार्च 2009 के बीच रिलायंस की गैस निकलना शुरू होती है या नहीं और आरआईएल का सकल रिफाइनिंग मार्जिन कैसा रहता है।
शेयर भाव, मौजूदा इंडेक्स पीबीवी अनुपात, लाभांश से होने वाली आय और पीई अनुपात आदि इस तरह रहें कि खरीददार ऐतिहासिक रुप से खरीद के लिए तैयार हो। सवाल यह है कि क्या बाजार अभी और आगे गिरेगा? मेरा मानना है, हां- और कुछ नहीं तो राजनीतिक अस्थिरता के चलते ही बाजार में गिरावट होगी।
मार्टिंगेल-शैली 18वीं शताब्दी में फ्रांस में जुए का एक तरीका था। इसमें खिलाड़ी हर बार हारने पर दोगुना निवेश करता है और एक बार जीतने के साथ ही उसकी निवेश की पूरी रकम वसूल हो जाती है और साथ ही वह वास्तविक हिस्सा भी जीत जाता है। यह भी ठीक ऐसा ही समय है जब आप अपने हर नुकसान के साथ अपने अगले निवेश की रकम बढ़ा सकते हैं।
मौजूदा बाजार कीमतों पर 3 वर्ष की अवधि को ध्यान में रखकर इस तरह का निवेश ठीक है। लेकिन अगर 2009 में बाजार में मंदी बनी रहती है तो शेयरों की कीमतों में जैसे-जैसे गिरावट आए, आपको अधिक निवेश के लिए तैयार रहना चाहिए।