शेयर बाजार के अनिश्चितता के भंवर में फंसने के कारण निवेशकों को अपने पैसों के लिए सुरक्षित विकल्प ढूंढने पर विवश कर दिया है।
इन विकल्पों में से एक है बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी)। हालांकि इन योजनाओं की प्रकृति बेहद सामान्य है क्योंकि इनमें एक निश्चित समयावधि के लिए एक तयशुदा ब्याज मिलता है। निवेशक को एफडी में निवेश से पहले कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
आमतौर पर बैंकों में निवेश करने से पहले अधिकतर लोग बैंकों द्वारा दी जा रही ब्याज दर पर नजर दौड़ाते हैं। लेकिन उन्हें इसके साथ बैंक की वित्तीय सुदृढ़ता पर भी विचार करना चाहिए। यह उस समय तो बेहद जरूरी हो जाता है जब आप एक लाख से अधिक की राशि का निवेश कर रहे हों।
क्योंकि इस सीमा तक जमा राशि का ही बीमा होता है यानी भारत सरकार की ओर से गारंटी दी गई है। एफडी को लेकर भारत में पिछले अनुभव ठीक नहीं रहे हैं। ऐसा पहले भी हो चुका है जब कई सहकारी बैंकों ने ऊंची ब्याज दरों पर जमाएं इकट्ठी कीं पर वे जमाकर्ताओं को उनके पैसे वापस चुकाने में असफल रहे। हालांकि भारत में इस तरह प्रकरण बिरले ही हैं।
कुल मिलाकर बात यह है कि भारत में बैंकों का पूंजी ढांचा बेहद मजबूत होता है और अगर आप सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के अधिसूचित बैंकों में किसी बैंक का चुनाव करते हैं तो फिर आपको कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। दूसरी सबसे अहम बात है जमा की अवधि। हमेशा अधिक रिटर्न किसी निश्चित समयावधि के लिए जमा पर मिलता है।
जैसे इस समय आमतौर पर ज्यादातर बैंक 360 दिन की जमाओं पर 10 फीसदी की दर से रिटर्न या 400 दिन की जमा पर 9.5 फीसदी रिटर्न मिलता है। इस स्थिति में किसी सही समयावधि का चुनाव करना अति महत्वपूर्ण है। अगर ऐसी संभावना हो कि भविष्य में ब्याज दरों में कमी आ सकती है तो ज्यादा अच्छा यह है कि निवेशक लंबी मियाद के लिए अपने निवेश को लॉक कर इसका फायदा उठाएं।
तीसरी बात, जमा की जा रही राशि भी एक अहम बात है। अधिकांश प्रकरणों में जहां डिपाजिट 15 लाख रुपये से अधिक होते हैं, बैंक उन्हें विशेष ब्याज दरें देते हैं जो सामान्य दरों से अधिक होती हैं। इस तरह की दशा में कभी-कभी अपने निवेश को कंसॉलिडेट कर ऊंची दर पर रिटर्न हासिल करना अच्छा होता है। कई अन्य मामलों में निवेश को छोटी जमाओं में तोड़कर इन्हें अलग-अलग मियाद के लिए फिक्स करना काफी फायदे का सौदा साबित होता है।
उदाहरण के लिए अगर किसी निवेशक के पास एक लाख रुपये हैं तो वह 50,000 रुपये तीन साल के लिए, 35,000 रुपये 500 दिनों के लिए और शेष 15,000 रुपये एक साल के लिए फिक्स कर अधिक रिटर्न सुनिश्चित कर सकता है। चौथी बात यह है कि विभिन्न बैंकों द्वारा दी जा रही ब्याज दरों पर ध्यान दें। क्योंकि उनके द्वारा दी जा रही ब्याज दरें अलग-अलग हो सकती हैं।
यहां आप फ्लैट फिगर के बजाय सालाना रिटर्न की दरों पर विचार करें। कैसे, देखिए अगर 270 दिन की मियाद में जमा पर सालाना ब्याज दर 10 फीसदी है, तो वास्तविक रुप में इस अवधि में आप महज 7.5 फीसदी ही ब्याज हासिल कर पाएंगे। इसी तरह 300 दिन की जमाओं पर रिटर्न 8 फीसदी है जबकि सालाना आधार पर यह 9.6 फीसदी हो सकती है।
इस तरह की जानकारी खासी अहम है। निवेशकों को सिर्फ ऊंची ब्याज दरों की ओर भागने के इन आंकड़ों पर भी विचार करनाचाहिए। डिपॉजिट के साथ जुड़ी दूसरी कई ऐसी बातें हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है।
कुछ मामलों में वरिष्ठ नागरिकों और कर्मचारियों को अधिक ब्याज दर मिलती है। लिहाजा इस जगह पर निवेश करना अधिक लाभप्रद है। कुछ जगह एफडी के साथ बीमा कवर और बैंक खाता खोलने की सुविधा भी मिलती है। निवेश करते समय इन सुविधाओं का लाभ लें।
(लेखक प्रमाणित वित्तीय योजनाकार हैं)