वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को जानकारी दी कि बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) द्वारा लोन की शर्तों के उल्लंघन पर लगाए जाने वाले पेनल चार्ज पर 18 प्रतिशत गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) लागू नहीं होगा।
यह फैसला 55वीं GST काउंसिल की बैठक में लिया गया, जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा की गई। दरअसल, यह फैसला भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 18 अगस्त, 2023 को जारी निर्देश के बाद लिया गया, जिसमें कहा गया था कि “लोन शर्तों के उल्लंघन पर पेनल इंटरेस्ट” को बंद किया जाए।
RBI ने अपने सर्कुलर में सभी वित्तीय संस्थानों को निर्देश दिया था कि वे पेनल इंटरेस्ट की जगह “पेनल चार्ज” लागू करें। ये नियम 1 जनवरी, 2024 से प्रभावी होंगे और इसका उद्देश्य उधारकर्ताओं में क्रेडिट अनुशासन सुनिश्चित करना है। हालांकि, क्रेडिट कार्ड, एक्सटर्नल कमर्शियल बॉरोइंग, ट्रेड क्रेडिट और स्ट्रक्चर्ड ऑब्लिगेशन जैसे मामलों पर ये नियम लागू नहीं होंगे, क्योंकि उनके लिए अलग नियम बनाए गए हैं।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ इंडायरेक्ट टैक्सेज एंड कस्टम्स (CBIC) ने अपने नोटिफिकेशन में स्पष्ट किया कि पेनल चार्ज “किसी काम को सहने” के लिए भुगतान नहीं है, बल्कि यह लोन शर्तों के उल्लंघन पर लगाया गया जुर्माना है।
जीएसटी पर विशेषज्ञ की राय
विशेषज्ञ अभिषेक ए रस्तोगी, जो Rastogi Chambers के फाउंडर हैं, ने कहा है कि लोन एग्रीमेंट का असली मकसद समय पर लोन चुकाना है, न कि उसका उल्लंघन करना। उन्होंने कहा, “पेनल्टी का उद्देश्य अनुशासन बनाए रखना होता है, न कि उल्लंघन से मुनाफा कमाना।”
रस्तोगी ने बताया कि केवल चार्ज के नाम बदलने से उसकी प्रकृति में कोई बदलाव नहीं होता। इसलिए, इन ट्रांजैक्शन्स पर जीएसटी नहीं लगनी चाहिए, खासकर उस समय के लिए जब इसे ‘पेनल इंटरेस्ट’ कहा जाता था। यह नियम जुलाई 2017 से पहले के मामलों पर भी लागू होना चाहिए।
उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे चार्ज केवल अनुबंध के उल्लंघन को रोकने और अनुशासन बनाए रखने के लिए वसूले जाते हैं। अनुबंध इस इरादे से नहीं किए जाते कि उनका उल्लंघन किया जाए। इसलिए, इन चार्जेस पर जीएसटी लागू नहीं होना चाहिए।