डीडब्ल्यूएस इक्विटी
लांच होने के बाद से ही डीडब्ल्यूएस अल्फा इक्विटी औसत दर्जे का प्रदर्शन करने वाल फंड माना गया है।
लेकिन नए फंड मैनेजर अनिकेत इनामदार ने जब से इसकी बागडोर अपने हाथों में ली, इसकी तस्वीर ही बदल दी है। अब से कुछ समय पहले फंड अपनी श्रेणी में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाला फंड बनकर सामने आया है। इसने बाजार के प्रतिकूल हालातों में भी निवेशकों के हितों को पूरी तरह से सुरक्षित रखा।
यह फंड जनवरी 2003 में लांच किया गया था। इसका लक्ष्य इक्विटी और इससे संबंधित सभी बाजार पूंजीकरण वाली प्रतिभूतियों में निवेश करके कैपिटल एप्रिशिएशन अर्जित करना था, लेकिन इसका झुकाव खास तौर पर लॉर्ज और मिड कैप की तरफ ज्यादा था। पहले दो सालों में यह फंड औसत दर्जे का प्रदर्शन करने वाला फंड था जो 2005 में खासा नीचे गया।
2006 से इसके लिए अच्छा समय शुरु हुआ। इस साल इसने 49 फीसदी रिटर्न दिया जबकि इसकी श्रेणी के फंडों का औसतन रिटर्न 33 फीसदी ही था। 2007 में भी सात फीसदी के शानदार मार्जिन के साथ इसने अपनी श्रेणी के दूसरे फंडों से बेहतर प्रदर्शन किया।
फंड मैनेजर ने इसके मेटल क्षेत्र के एक्सपोजर को मई 2007 के चार फीसदी से बढ़ाकर जनवरी 2008 में 10.17 फीसदी कर दिया। उसने टाटा स्टील और स्टरलाइट इंडस्ट्रीज जैसे शेयरों को उठाया लेकिन जनवरी के बाद जैसे ही कमोडिटियों की कीमतों में इजाफा होना शुरु हुआ, उसने इनमें निवेश कम कर दिया।
वर्तमान में इस क्षेत्र को आवंटन महज चार फीसदी है। साथ ही इस फंड ने कंप्यूटर सॉफ्टवेयर क्षेत्र में अपना एक्सपोजर जून 2007 के 15 फीसदी से घटाकर सितंबर 2007 में सिर्फ तीन फीसदी कर दिया। हालांकि उन्होंने टिकाऊ उपभोक्ता सामान जैसे रक्षात्मक सेक्टर में अपना एक्सपोजर बढ़ाया।
इनामदार का झुकाव मिड कैप की ओर था, लेकिन उन्होंने इसमें बड़ा दाव नहीं लगाया और लॉर्ज कैप में ही अपना फोकस रखा। बाजार में (आठ जनवरी 2008 से लेकर 10 जनवरी 2008) आई गिरावट के दौर में इस फंड का पोर्टफोलियो 48 फीसदी नीचे आया लेकिन यह अपनी श्रेणी के फंडों की तुलना में पांच फीसदी कम गिरा।
लांच होने के समय से ही इस फंड में बड़ी मात्रा में पैसा निकलते और आते देखा गया। इसके बाद भी इसने अपने स्मॉल एसेट बेस को अच्छे स्तर पर बनाए रखा। इस समय यह फंड 32 शेयरों के कांपेक्ट पोर्टफोलियो का प्रबंधन कर रहा है जबकि इसकी टॉप 10 होल्डिंग में एक्सपोजर कुल एक्सपोजर से आधा है।
इसके पास दिसंबर 2007 में 33 कंपनियों के शेयर थे जिसे इसने अब घटाकर 24 कर लिया है। लॉर्ज कैप की पसंद उसके लिए काफी अच्छी साबित हुई क्योंकि इसने लंबे समय में अपनी श्रेणी की तुलना में 10 फीसदी से अधिक बेहतर प्रदर्शन किया है।
टेंपलटन इंडिया ग्रोथ
इस फंड पर डायनेमिक ऑफरिंग वाला होने की तोहमत नहीं लगाई जा सकती। शुरुआत में यह एक हार्ड कोर वैल्यू ऑफरिंग वाला फंड था, लेकिन बाद में इसने ग्रोथ का नजरिया अपनाया।
2003 व 2007 में इसने 138.82 फीसदी और 63.11 फीसदी का जोरदार रिटर्न दिया जबकि इस दौरान इस श्रेणी के फंडों का औसतन रिटर्न 110.17 फीसदी और 59.77 फीसदी रहा। इसने बाजार में आई गिरावट के दौर में भी दूसरों की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया है।
2000 और 2001 के खराब दौर में इसने महज 2.78 फीसदी और 6.82 फीसदी का ही नकारात्मक रिटर्न दिया, जबकि इस दौरान इस श्रेणी का औसतन रिटर्न -24.64 फीसदी और -19.45 फीसदी था। भले ही इस फंड का जोर वैल्यू पर रहा हो लेकिन इसके बाद भी इसे बिना हाड़मांस का नहीं कहा जा सकता।
सेक्टर मूवमेंट में इसने जोरदार वापसी की है। इसके फंड मैनेजर एक सेक्टर विशेष में ध्यान केंद्रित करते रहे। जब इन क्षेत्रों पर बाजार टूट रहा था तो इस फंड ने दूसरे से बेहतर प्रदर्शन किया। इसके चलते जब ये सेक्टर कमजोर हुए तो फंड को भी नुकसान उठाना पड़ा।
2003 में इसका प्रदर्शन जोरदार रहा क्योंकि इस दौरान एनर्जी, वित्तीय सेवा और ऑटो सेक्टरों ने बेहतर प्रदर्शन किया जिसमें फंड का अच्छा खासा एक्सपोजर था। 2007 में भी उसे अपने एनर्जी, मेटल और वित्तीय सेवा के क्षेत्र में अच्छे एक्सपोजर से लाभ पहुंचा।
हाल में बाजार में आई गिरावट के दौर में भी इस फंड ने अच्छा प्रदर्शन किया है। वैल्यू की ओर झुकाव और लॉर्ज कैप में एक्सपोजर का इसे लाभ हुआ है। बावजूद इसके इसका पोर्टफोलियो 30 शेयरों पर केंद्रित है। इस फंड के अस्थिर प्रदर्शन और आकलन के अभाव के चलते निवेशकों को नुकसान ही हुआ है।
टाटा इक्विटी पीई
किसी अंडर वैल्यूड कंपनी को पकड़ कर बैठने भर से अगर कोई फंड हाउस यह सोच लेता है कि वह गिरते बाजार में सुरक्षित रहेगा तो यहां ऐसा नहीं हो सका।
शेयर बाजार के शीर्ष से वर्तमान स्तर तक आने के साथ यह फंड अपनी श्रेणी के अन्य फंडों के साथ 50 फीसदी से अधिक नीचे गिर चुका है। यह फंड उन कंपनी के शेयरों में निवेश करता है जिनका पीई रेशियो सेंसेक्स में निवेश के समय के रेशियो से कम होता है।
इस रणनीति से फंड मैनेजरों को अपने पोर्टफोलियो को लॉर्ज कैप के साथ पैक रखने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते उन्होंने मिडकैप और स्मॉल कैप की ओर रुख किया और उनका वर्तमान पोर्टफोलियो 60 फीसदी के स्तर पर आ चुका है।
यह पोर्टफोलियो 15 जून से 8 जनवरी के बीच के बूम के दौर में बेहद अच्छी स्थिति में था और उसने सेंसेक्स से मिले 64.76 फीसदी रिटर्न की तुलना में कहीं अधिक 85.77 फीसदी रिटर्न दिया। जोखिम से बचने के लिए फंड मैनेजर ने अपने पोर्टफोलियो को फैलाने की राह चुनी।
उन्होंने ज्यादा दाव नहीं लगाया और पोर्टफोलियो में 40 से अधिक शेयर रखे। यहां किसी भी एक शेयर में नेट असेट का पांच फीसदी से अधिक का एक्सपोजर नहीं था। लेकिन तीन शीर्ष सेक्टरों में एक्सपोजर नेट असेट का 55 फीसदी तक रखा। इस फंड ने चढ़ते बाजार में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन गिरते बाजार में इसका प्रदर्शन अस्थिर रहा है।