भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर स्वामीनाथन जानकीरमन ने बुधवार को कहा कि डिजिटल भुगतान की व्यापक स्वीकार्यता से बैंकिंग व मोबाइल ऐप से तेज और कम खर्च पर लेनदेन व आसान निकासी सुनिश्चित हुई है, वहीं इसने परिचालन स्थिरता को लेकर जोखिम भी बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि इसके लिए आईटी व्यवस्था और तकनीक में निवेश बढ़ाने की जरूरत है, जिससे ज्यादा लोड के वक्त सुचारु रूप से कामकाज सुनिश्चित हो सके।
इंटरनैशनल एसोसिएशन ऑफ डिपॉजिट इंश्योरर्स के सम्मेलन में डिप्टी गवर्नर ने कहा कि 24 घंटे ऑनलाइन व मोबाइल बैंकिंग सेवा होने से कमजोरियां बढ़ने का जोखिम है। इससे दबाव के दौर में एक ही समय में ज्यादा लोगों के धन निकालने का जोखिम बढ़ सकता है, जिससे नकदी का संकट हो सकता है।
उन्होंने कहा कि इसकी वजह यह है कि ग्राहक परंपरागत बैंकिंग सुविधा वाले घंटों से इतर कहीं से भी बैठकर कभी भी धन निकाल सकते हैं और इसके लिए उन्हें बैंक की शाखा तक जाने की जरूरत नहीं होती है। इसके साथ ही सोशल मीडिया जैसे लोगों के प्रभावित करने के डिजिटल साधनों के कारण इस तरह की गतिविधियां बहुत तेज रफ्तार पकड़ सकती हैं।
दिलचस्प है कि पिछले महीने ही रिजर्व बैंक ने लिक्विडिटी कवरेज रेशियो (एलसीआर) से जुड़े मानक सख्त करने का प्रस्ताव किया था। मोबाइल बैंकिंग और इंटरनेट बैंकिंग उपयोग करने वालों की बढ़ती संख्या को देखते हुए रिजर्व बैंक ने खुदरा जमाओं के लिए रन ऑफ फैक्टर बढ़ा दिया था।
नियामक ने स्थिर और कम स्थिर दोनों खुदरा जमा के मामले में 5 प्रतिशत अतिरिक्त रन ऑफ फैक्टर का प्रावधान किया था, जिन पर मोबाइल और इंटरनेट बैंकिंग सेवा मिली हुई है। रन ऑफ उसे कहते हैं, जब व्यक्ति या कारोबारी अपना जमा निकालते हैं, जिसका अनुमान बैंकों को पहले से नहीं होता है।
रिजर्व बैंक ने ध्यान दिलाया है कि तकनीक का इस्तेमाल बढ़ने से सतत बैंक ट्रांसफर और निकासी की सुविधा मिली है,वहीं इससे जोखिम भी बढ़ा है, जिसके लिए अतिसक्रिय प्रबंधन की जरूरत है।
स्वामीनाथन का कहना है कि वित्तीय संस्थाओं को संकट के समय की अपनी तैयारियों का आकलन फिर से करने और उसे अद्यतन करने की जरूरत है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि तकनीकी उन्नयन के कारण पैदा हुए जोखिमों को त्वरित रूप से कम किया जा सकता है।