सरकार द्वारा 6 से 9 महीने में परिपक्व होने वाले सरकारी बॉन्डों को फिर से खरीदने के फैसले से कम अवधि के बॉन्डों के यील्ड में कमी आने आने की संभावना है। बाजार हिस्सेदारों ने कहा कि इसे बैंकिंग व्यवस्था में नकदी भी बढ़ने की संभावना है।
शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक ने 40,000 करोड़ रुपये की प्रतिभूतियों को खरीदने की अपनी योजना की घोषणा की थी। रिजर्व बैंक की विज्ञप्ति के मुताबिक बाईबैक योजना में शामिल प्रतिभूतियों ((securities) में 2024 के 6.18 प्रतिशत वाले, 2024 के 9.15 प्रतिशत वाले और 2025 के 6.89 प्रतिशत वाले जी-सेक हैं।
इसके लिए नीलामी गुरुवार को होगी। इसके पहले इस तरह की पुनर्खरीद मार्च 2018 में हुई थी।
यह फैसला ऐसे समय आया है जब फरवरी से अप्रैल के बीच सरकार का खर्च बढ़ा है और यह अनुमान है कि जून में चुनाव परिणामों के बाद सुस्ती के अनुमान है। बाजार के हिस्सेदारों का कहना है कि सरकार ने रिजर्व बैंक के साथ परामर्श करके बाईबैक का विकल्प चुना, जिससे कि बैंकिंग व्यवस्था में नकदी के संभावित उतार चढ़ाव को कम किया जा सके और उधारी की लागत पर पड़ने वाले इसके बुरे असर को रोका जा सके।
प्राइमरी डीलरशिप के एक डीलर ने कहा, ‘इससे कम अवधि के बॉन्डों का यील्ड कम हो सकती है और व्यवस्था में नकदी आ सकती है।’ उन्होंने कहा कि साथ ही रिजर्व बैंक इस महीने (मई में) सरकार को सालाना लाभांश भी दे सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक गुरुवार को बैंकिंग व्यवस्था में नकदी 78,481 करोड़ रुपये घाटे में थी।
प्रतिभूतियों के बाईबैक की अवधारणा यह है कि सरकार बॉन्डों के माध्यम से लिए गए अपने बकाया कर्ज के एक हिस्से को निर्धारित परिपक्वता की तिथि के पहले खत्म करना चाहती है। यह एक ऐसा उपाय है, जिसका मकसद सक्रियता के साथ ऋण पोर्टफोलियो को अधिक कुशलता के साथ प्रबंधित करना है।
एक सरकारी बैंक से जुड़े डीलर ने कहा, ‘कुल मिलाकर आपूर्ति प्रभावित नहीं होगी क्योंकि बॉन्ड सिर्फ इस साल परिपक्व होने जा रहे हैं।’