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स्वैप अपने तीन महीने के उच्चतम स्तर पर

Last Updated- December 10, 2022 | 7:29 PM IST

भारतीय बैंकों के बॉन्ड को डूबने से बचाने पर होने वाला खर्च पिछले तीन महीनों के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।
खर्चों में इस कदर तेजी के लिए बैंकों के गैर-निष्पादित धन में बढोतरी, मार्जिन में कमी और ट्रेजरी मुनाफे लगी सेंध को जिम्मेदार माना जा रहा है।
मौजूदा उपलब्ध आंकडों के अनुसार देश के दो सबसे बड़े कर्जदाता भारतीय स्टेट बैंक और आईसीआईसीआई बैंक का क्रेडिट-डिफॉल्ट स्वैप्स (सीडी) 3 मार्च को अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।
आईसीआईसीआई बैंक का सीडीएस 6 मार्च को 710 के स्तर पर आ गया जो 8 दिसंबर के बाद सबसे ज्यादा रहा जबकि एसबीआई का सीडीएस 6 मार्च को ही 474.68 के स्तर पर पहुंच गया जो 21 नवंबर के बाद से अब तक का सबसे अधिक है।
इन बड़े बैंकों के अलावा आईडीबीआई बैंक के सीडीएस में भी तेजी दिखी और यह 8 दिसंबर के बाद से 416.88 अंकों के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। उल्लेखनीय है कि सीडीएस डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट होते हैं जिनका इस्तेमाल बॉन्डों को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है।
स्वैप प्राइस में आई तेजी क्रेडिट की गुणवत्ता में निवेशकों के घटते विश्वास को इंगित करता है जबकि इसमें कमी निवेशकों के विश्वास में आई तेजी की ओर इशारा करता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय रिजर्व बैंक बैंकों को लगातार दरों में कटौती के लिए प्रेरित कर रहा है और इनको अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए ऋणों के आवंटन में तेजी लाने को कह रहा है।
रिजर्व बैंक ने सबसे पहले अपनी तरफ से पहल करते हुए प्रमुख दरों यानी रेपो और रिवर्स रेपो में कई बार कटौती कर चुकी है। वैश्विक मंदी छाने के बाद से अब तक रिजर्व बैंक अपनी प्रमुख दरों में 400 आधार अंकों तक की कटौती कर चुकी है।

First Published - March 10, 2009 | 5:44 PM IST

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