बैंकों ने सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (जमा प्रमाणपत्र, सीडी) जारी कर अल्पकालिक फंड जुटाना शुरू कर दिया है। इसकी वजह यह है कि फंड की लागत में कमी आ गई है और बैंक आगे लोन देने में सर्तकता बरत रहे हैं।
सबसे पहले सरकारी बैंकों में सीडी को जारी कर तेजी से फंड जुटाने की मुहिम शुरू हुई थी। दरअसल बैंक इस कोशिश में थे कि लोन की दर कम करने से पहले ही वे अपने फंड की लागत में भारी कमी लाएं।
एक ब्रोकिंग कंपनी के बॉन्ड डीलर का कहना है, ‘एक साल तक के लिए खुदरा जमा (रिटेल डिपॉजिट) पर कम से कम 8.5 फीसदी ब्याज दर लगाया जाता है। इसकी तुलना में बैंकों को सीडी के जरिए फंड जुटाना थोड़ा सस्ता पड़ जाता है।’
भारतीय रिजर्व बैंक ने 27 जनवरी की आर्थिक समीक्षा के दौरान बेंचमार्क दरों में कोई फेरबदल नहीं किया। इसके बाद बैंकों ने अल्पकालिक स्कीमों के जरिए फंड जुटाना शुरू कर दिया। हालांकि सेंट्रल बैंक ने यह संकेत दिया कि पिछली कटौती के मद्देनजर बैंकों से लोन लेने वालों को फायदा पहुंचाने के लिए ब्याज दरों में कटौती की जरूरत है।
आरबीआई ने सीआरआर में 4 फीसदी की कटौती कर के 5 प्रतिशत कर दिया है। जबकि रेपो रेट में 3.5 फीसदी की घटा कर 5.5 फीसदी कर दिया है। बैंकों अपनी पूंजी को आरबीआई के पास न रखे, इसके मद्देनजर रिवर्स रेपो रेट को भी 2 फीसदी घटा कर 4 प्रतिशत कर दिया गया है।
जहां तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बात है तो इन्होंने भी उधारी दर में 1.5 फीसदी की कमी की है। जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों ने ब्याज दरों में 0.5 फीसदी की कमी की है। हालांकि, जमा दरों में 3 फीसदी तक की गिरावट आई।
पिछले हफ्ते भारतीय स्टेट बैंक ने भी होम लोन में 30 अप्रैल से पहले आवंटित सभी नए लोन के लिए 4.25 फीसदी की कमी करके 8 प्रतिशत कर दिया है। स्टेट बैंक ऑफ मैसूर और स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर ने सीडी जारी करके 100 करोड़ रुपये तक का फंड जुटाया।
छह महीने में परिपक्व होने वाली सीडी के जरिए सालाना 6.55 फीसदी की दर से फंड की उगाही की जाती है। सूत्रों का कहना है कि कई दूसरे बैंक भी सीडी जारी करके फंड जुटाने की योजना बना रहे हैं। दुनिया भर में छाई मंदी के मद्देनजर बैंकों ने भी लोन मुहैया करने की कार्रवाई में कमी की है।
आरबीआई ने 31 मार्च को खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष में आर्थिक विकास के अनुमानों में 0.5 फीसदी की कटौती के साथ इसे 7 फीसदी कर दिया है। बैंकिंग सेक्टर में ग्राहकों को दिया जाने वाला लोन 16 जनवरी 2009 को समाप्त हुए पखवाड़े तक तक 13,800 करोड़ रुपये घटकर 26,45,150 करोड़ रुपये हो गया।
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़े की मानें तो वैश्विक मंदी की वजह से ही लगातार तीसरे महीने में घरेलू सामानों की विदेश में बिक्री कम हो गई है। दिसंबर 2008 में निर्यात में 1.1 फीसदी की कमी आई।
एसबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि जोखिम से बचने के लिए ही बैंक दूसरे निवेश विकल्पों को देख रही हैं जिसमें कमर्शियल पेपर और सीडी भी शामिल हैं। आरबीआई के पास पैसे जमा कराने से मिलने वाले मुनाफे से कहीं ज्यादा रिटर्न, बैंकों को सीडी में निवेश करने से मिल रहा है।
बैंक रात भर के लिए सेंट्रल बैंक को पैसे देकर भी 4 फीसदी मुनाफा कमा लेते हैं। बैंकों के अलावा म्युचुअल फंड जो फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान की पेशकश करती हैं वे भी इस तरह के पेपर में निवेश करना चाहती हैं।