भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर टी. रवि शंकर ने बिजनेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट में तमाल बंद्योपाध्याय के साथ बातचीत में कहा कि भारतीय रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण डॉलर को हटाने के लिए नहीं है बल्कि भारतीय कारोबारियों के जोखिम को कम करने के लिए है। यह भारत के कारोबारियों के लिए रुपये में अधिक लेनदेन को संभव बनाता है। पेश हैं, मुख्य अंश:
रिजर्व बैंक ने बाहरी वाणिज्यिक उधारी और विदेशी विनिमय उदारीकरण (ईसीबी) के नए मानदंड जारी किए हैं। इसके तहत भारतीय कंपनियों के विदेशी मुद्रा के उधार, लागत की सीमाओं को हटाना, योग्य उधारी लेने वालों का विस्तार करना, उधारी की सीमा को 300 प्रतिशत तक बढ़ाना आदि हैं। क्यों हम इतनी तेजी से इन्हें खोल रहे हैं?
यह कोई अल्पावधिक उपाय नहीं हैं। यदि आप पूंजी खाते की परिवर्तनीयता पर भारतीय रिजर्व बैंक के नजरिये पर नजर डालते हैं तो हम नियमित रूप से कह रहे हैं कि यह एक प्रक्रिया है, यह कोई घटना नहीं है। हम इस भावना से पूंजी खाते को निरंतर उदार बना रहे हैं। आज ईसीबी पर लगात और राशि की सीमाओं को छोड़कर ज्यादातर पूंजी प्रवाह उदारीकृत है। हमारे विकास के चरण के अनुरूप जो हमें नियंत्रित करता है, वह यह है कि हम कितने बाह्य हो सकते हैं। हमने ईसीबी के मामले में डेरिवेटिव के उपयोग और कमोडिटी हेजिंग जैसी प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए बीते वर्षों में कई कदम उठाए हैं। विदेशी विनियमन लेनदेन को सुचारु और सुविधाजनक बनाने के प्रयास के तहत व्यापार के प्रवाह का उदारीकरण किया गया है।
अभी भी ईसीबी के हालिया प्रस्ताव मसौदा रूप में है। इसका ध्येय केवल वित्तीय रूप से मजबूत इकाइयां विदेशों से उधारी लें। हमने उधारी की सीमाओं की जगह फर्म लीवरेज को स्वीकृत उधारी को जोड़ा है। एक बार मसौदा को अंतिम रूप दे दिया जाता है तो अन्य सीमाओं की जरूरत नहीं हो सकती है। यह अचानक से उठाया गया कदम नहीं है। यह दशकों से जारी निरंतर उदारीकरण की लंबी प्रक्रिया है। हम अभी भी विचार-विमर्श के चरण में हैं और इस मामले में मिले सुझाव की समीक्षा कर अंतिम रूप दिया जाएगा। उम्मीद है कि कुछ महीनों में प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
पूंजी खाते की परिवर्तनीयता को छूट देने का क्या अगला चरण होगा?
व्यापार केवल प्रत्यावर्तन समयसीमा जैसी प्रक्रियागत जरूरतों के अलावा व्यापक रूप से मुक्त है। हमने एकल समग्र मसौदा जारी करने के लिए दो मसौदा प्रस्ताव जारी कर दिए हैं। इसमें 100 से अधिक दिशानिर्देशों को कम किया गया है। ईसीबी उदारीकरण व्यापक प्रयास का हिस्सा है। हमारी प्राथमिकता पहले पूंजी के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने पर बनी हुई है, उसके बाद कैलिब्रेटेड बाहरी प्रवाह पर।
कई सुधारों के सार्थक परिणाम आने में लंबा समय लगता है। इसे आप रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के संदर्भ में कैसे देखते हैं?
नीति-निर्माण में अक्सर भविष्य के लिए जमीन तैयार करना शामिल होता है। उदाहरण के लिए डिजिटल भुगतान के दो स्तरीय प्रमाणीकरण शुरू करने के बाद इसे वास्तव में गति पकड़ने में वर्षों लग गए। इसी तरह रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण लंबी अवधि की प्रक्रिया है। इसका लक्ष्य डॉलर का स्थान लेना नहीं है जो अवास्तविक है। इसके बजाए रुपये में अधिक लेनदेन को सक्षम करके भारतीय व्यवसायों के लिए जोखिम को कम करना है।
यह निर्यातकों के लिए मुद्रा जोखिम को कम करता है। यह एक अधिक संतुलित वैश्विक प्रणाली में योगदान देता है जहां कई मुद्राएं भूमिका निभाती हैं। समय के साथ जैसे-जैसे भारत शीर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित होता है, सीमा पार व्यापार में रुपये को अधिक व्यापक रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए। हम उस परिवर्तन के लिए स्थितियां बना रहे हैं, भले ही इसे अपनाने में समय लगे।
इतने प्रयासों के बावजूद केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) ने वास्तव में गति नहीं पकड़ी है। सीबीडीसी की क्या स्थिति है। अगर मेरे पास पहले से ही यूपीआई है और मुझे जमा पर ब्याज देता है जबकि सीबीडीसी नहीं देता है। ऐसे में मुझे इसका उपयोग क्यों करना चाहिए?
आपने दो प्रश्न पूछे हैं – सीबीडीसी कहां है, और सीबीडीसी क्यों। मैं एक-एक करके उनका जवाब देता हूं।
‘कहां’के मामले में सीबीडीसी 2022 से प्रायोगिक तौर पर काम कर रहा है। हम इसमें जल्दबाजी नहीं कर रहे हैं। अभी भी ज्यादातर देश प्रयोग कर रहे हैं और इसके प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं। दरअसल, 10 करोड़ से अधिक लेनदेन हुए हैं, लेकिन हम संभावित प्रभावों को समझने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं, उदाहरण के लिए क्या सीबीडीसी बैंक जमा को बदल सकता है। हम तकनीकी रूप से तैयार हैं लेकिन दृष्टिकोण सतर्क है।
‘क्यों’ के मामले में सीबीडीसी उन चीजों को सक्षम करता है जो मौजूदा सिस्टम नहीं कर सकते हैं। इसमें विशेष रूप से से प्रोग्रामेबिलिटी और सीमा पार दक्षता है। यूपीआई जैसे घरेलू भुगतान सिस्टम अच्छी तरह से काम करते हैं, लेकिन सीमा पार लेनदेन धीमा और महंगा बना हुआ है। सीबीडीसी मध्यस्थों के बिना ऐसे लेनदेन को तुरंत और सस्ते में निपटा सकता है। इसलिए हम सीबीडीसी को विशिष्ट रूप से उपयोगी मानते हैं। टोकन धन की वैश्विक समझ अभी भी विकसित हो रही है।
क्या क्रिप्टोकरेंसी के नजरिये में कोई बदलाव आया है?
नहीं, हमारा रुख अपरिवर्तित है। बिना समर्थित क्रिप्टोकरेंसी और स्टेबलकॉइन दोनों ही महत्त्वपूर्ण जोखिम पैदा करते हैं। हमारा विश्लेषण दर्शाता है कि क्रिप्टोकरेंसी किसी भी वैध उद्देश्य को पूरा नहीं करती है जिसे मौजूदा धन बेहतर ढंग से पूरा नहीं कर सकते हैं। बिना समर्थित क्रिप्टो में कोई अंतर्निहित नकद प्रवाह या जारीकर्ता नहीं होता है, इसलिए कोई आंतरिक मूल्य नहीं होता है। स्टेबलकॉइन समर्थित होने के बावजूद मुद्रा प्रतिस्थापन (करेंसी सबस्टूयूशन) व मौद्रिक संप्रभुता के नुकसान का जोखिम पैदा करते हैं, खासकर भारत जैसे उभरते बाजारों के लिए। हमारा मानना है कि सीबीडीसी उन जोखिमों के बिना स्टेबलकॉइन के सभी वैध उपयोग के मामलों को पूरा कर सकता है।