केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधान सभा चुनाव का पहला चरण अभी संपन्न हुआ है। श्रीनगर के लाल चौक पर राजनीतिक चर्चाओं का दौर चल रहा है। ज्यादातर बहसें 25 सितंबर को होने वाले दूसरे चरण के मतदान के ईर्द-गिर्द ही घूमती दिखती है। लोग क्षेत्र की समस्याओं और प्रत्याशियों के बारे में खुलकर बातें करते हैं, लेकिन छोटे दुकानदारों, कारोबारियों और उद्यमियों के लिए यहां इंटरनेट शट डाउन सबसे बड़ा मुद्दा है, क्योंकि सुस्त इंटरनेट का सीधा असर यहां स्टार्टअप और छोटे कारोबार पड़ रहा है।
बातचीत के दौरान एक दुकानदार कहते हैं, ‘जीएसटी और नोटबंदी के बाद अगर कारोबार पर किसी चीज ने सबसे अधिक चोट पहुंचाई है, तो वह है इंटरनेट बंदी। आज के डिजिटल युग में इंटरनेट कनेक्टिविटी ठीक नहीं होने के कारण बहुत से ग्राहकों ने हमसे मुंह मोड़ लिया। सर्दियों के मौसम में जब पर्यटन उभार पर रहता है, तो ग्राहकों के ऑनलाइन ऑर्डर और सामान की डिलिवरी के लिए हम पूरी तरह इंटरनेट पर निर्भर होते हैं, लेकिन अक्सर इंटरनेट सुस्त होने से सिस्टम हैंग होने के कारण हम ग्राहकों की मांग पूरी नहीं कर पाते।’
कई वर्षों से जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट ठप होने की समस्या आम बात हो गई है। इंटरनेट में व्यवधान का सबसे अधिक प्रभाव क्षेत्र में कार्यरत स्टार्टअप पर पड़ता है। जम्मू-कश्मीर स्टार्टअप एसोसिएशन के अध्यक्ष ईशान वर्मा कहते हैं, ‘इंटरनेट कनेक्टिविटी किसी भी स्टार्टअप की जान होती है, लेकिन इसमें लगातार व्यवधान के कारण कारोबार को बनाए रखने में बड़ी चुनौती का सामना पड़ता है। वर्ष 2019 से पहले कानून-व्यवस्था की स्थिति के कारण इंटरनेट बंद कर दिया जाता था, जिससे स्टार्टअप कारोबारियों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।’
जनवरी 2020 में उच्चतम न्यायालय ने इंटरनेट बंदी की अवधि को घटाने का आदेश दिया था। उसके बाद भी समस्या बनी हुई है। इंटरनेट निगरानी वेबसाइट इंटरनेट शटडाउन के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 2022 में इंटरनेट बंदी की 43 घटनाएं सामने आई थीं, जबकि 2023 में 10 बार इंटरनेट ठप होने की घटनाएं हुईं।
इंटरनेट ठप होने का असर स्टार्टअप और छोटे कारोबार के संचालन पर ही नहीं पड़ता, बल्कि ग्राहक सेवा भी इसका सीधा प्रभाव देखने को मिलता है। कश्मीर में ऑनलाइन विलो बैट बेचने वाली कंपनी ट्रामबू स्पोर्ट के साद ट्रामबू कहते हैं, ‘स्टार्टअप और ई-कॉमर्स कंपनियों का कारोबार इंटरनेट से ही चलता है। इसके ग्राहक कंपनी से इंटरनेट के माध्यम से ही जुड़े होते हैं। यदि इंटरनेट नहीं चल पाता है, ये कंपनियां (स्टार्टअप) किसी काम के नहीं होते।’
अपनी समस्या के बारे में ट्रामबू बताते हैं, ‘स्टार्टअप का मकसद ही लाभप्रदता पर कम और ग्राहक सेवा पर अधिक रहता है। ई-कॉमर्स कंपनियों का कारोबार तो पूरी तरह इंटरनेट पर ही निर्भर रहता है। एक कारोबारी ई-कॉमर्स प्लेटफार्म खड़ा करने के लिए मोटा निवेश करता है, लेकिन इंटरनेट नहीं होने के कारण वह शेष विश्व से कट जाता है। अब ऐसी स्थिति में उससे किस प्रकार के कारोबार की उम्मीद की जा सकती है। उसके बाद कारोबार बंद कर कोई अन्य काम-धंधा शुरू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।’
जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग खेती बाड़ी है। यह भी इंटरनेट शटडाउन से बुरी तरह प्रभावित होता है। घाटी में 15,000 करोड़ रुपये का सेब कारोबार होता है। देश का 80 प्रतिशत सेब कश्मीर में ही उगता है और लगभग 7,00,000 परिवारों की रोजी-रोटी इस धंधे से चलती है। एग्रीटेक फर्म ई-फ्रूटमंडी के संस्थापक उबैर शाह कहते हैं, ‘सेब उत्पादन में नित-नए प्रयोग हो रहे हैं, लेकिन इंटरनेट बंदी के कारण काम-धंधे का संचालन, ग्राहकों से बातचीत और कारोबार में सुधार के प्रयासों पर सीधा असर पड़ता है। इंटरनेट ठप होने से सेब उत्पादकों को बहुत अधिक नुकसान झेलना पड़ता है।’
कुछ स्टार्टअप ने अपने आप को इंटरनेट बंदी के अनुरूप ढाल लिया है, लेकिन इसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ती है। वर्मा कहते हैं, ‘कई स्टार्टअप कारोबारी अपना व्यापार समेट कर बेंगलूरु और हैदराबाद शहरों की ओर रुख करने पर विचार कर रहे हैं, लेकिन उनका यह भी कहना है कि पलायन तो समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। इसके लिए सरकार के समर्थन और एक मजबूत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की सख्त जरूरत है, जिसका स्थानीय कारोबारियों को कुछ फायदा मिले।’