आम चुनाव हों और पार्टी के झंडे या चुनाव निशान की छाप लिए टोपी, साड़ी दिखना आम बात है। इनकी वजह से हर चुनाव में बुनकरों और कपड़ा कारोबारियों को अच्छा काम भी मिल जाता है। मगर इस बार उत्तर प्रदेश में पार्टियों के झंडे या निशान वाले गमछों का बाजार सबसे ज्यादा गरम है।
इन गमछों से पार्टी का प्रचार तो होता ही है, गर्मियों के मौसम में धूप से बचाने या पसीना सुखाने में भी ये बहुत काम आते हैं। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए हरे किनारे के साथ नारंगी, समाजवादी पार्टी के लिए लाल और कांग्रेस के लिए तिरंगी पट्टी वाले सफेद गमछे खूब बन रहे हैं। पार्टियों की ओर से इनके थोक ऑर्डर इतने ज्यादा आ रहे हैं कि बुनकरों के पास कुछ और बनाने की फुरसत ही नहीं है।
उत्तर प्रदेश में पावरलूम बुनकरों का अड्डा कहलाने वाले अंबेडकरनगर जिले के अकबरपुर टांडा, मऊ और झांसी जिले के मऊरानीपुर कस्बे में आजकल मशीनें दिन-रात चल रही हैं और तमाम पार्टियों के लिए गमछे बनते जा रहे हैं। तीन कस्बों में बुनकर सब कुछ छोड़कर केवल गमछे बनाने में जुटे हैं।
टांडा में गमछों के साथ ही कुर्तों के लिए मशीन वाली खादी की मांग भी बढ़ी है मगर गमछे सब पर भारी पड़ रहे हैं। आलम यह है कि पावरलूम पर साड़ी तैयार करने वाले मऊ व मुबारकपुर के बुनकर भी गमछे तैयार करने में ज्यादा जुटे हुए हैं। अयोध्या से सटे हुए टांडा कस्बे में राजनीतिक दलों के गमछों के साथ पीले रंग के रामनामी दुपट्टे भी बड़ी तादाद में तैयार किए जा रहे हैं।
राजधानी लखनऊ में भाजपा के दफ्तर पर दुकान लगाने वाले अजय त्रिवेदी बताते हैं कि इस समय फुटकर माल की बिक्री पर जोर नहीं है क्योंकि थोक में बहुत खरीद हो रही है। लखनऊ को छोड़ ही दीजिए क्योंकि दूसरे जिलों के प्रत्याशी हजारों की संख्या में गमछे खरीदकर ले जा रहे हैं और रोजाना 1,000 से ज्यादा गमछे उनकी दुकान से उठ रहे हैं।
यह आलम तब है, जब पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनावी रंग चढ़ा नहीं है। एक बार वहां भी चुनावी सरगर्मी बढ़ेंगी तो गमछों की बिक्री और भी बढ़ जाएगी। त्रिवेदी का कहना है कि गर्मी के कारण गमछों की जरूरत और भी ज्यादा महसूस हो रही है। साथ ही प्रत्याशी गमछे इसलिए भी बांट रहे हैं ताकि उनके कार्यकर्ता दूर से ही अलग नजर आएं।
टांडा में दर्जनों पावरलूम चलाने वाले बड़े बुनकर इश्तियाक अंसारी अभी तक रामनामी दुपट्टों और गमछों की मांग पूरी करने में ही जुटे हुए हैं। वह बताते हैं कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के समय से ही रामनामी दुपट्टों की मांग बेतहाशा बढ़ गई थी, जो अब तक जारी है। अयोध्या आने वाले श्रद्धालु मंदिर में चढ़ाने के लिए और यादगार के तौर पर घर ले जाने के लिए रामनामी गमछे खरीदते हैं।
अंसारी का कहना है कि पिछले कुछ समय से भगवा गमछों की मांग हो रही थी और चुनाव आते ही इनकी मांग खासी उछल गई है। चुनावी मौसम में उनके पास असली खादी जैसे दिखने वाले सूती कपड़े की मांग भी बढ़ गई है, जो पावरलूम पर तैयार किया जाता है। वह बताते हैं कि तिरंगी पट्टी वाले सफेद गमछे की मांग हर समय रहती है मगर चुनाव के समय बहुत बढ़ गई है।
मऊ जिले के मुबारकपुर कस्बे के बुनकर वसीम अंसारी बताते हैं कि पुरानी शैली के पावरलूम पर दिन भर में 500 गमछे तैयार हो जाते हैं, जो थोक में 14 से 16 रुपये में बिकते हैं। खुदरा बाजार में इन्हीं की कीमत 22 से 25 रुपये तक हो जाती है।
उनका कहना है कि तिरंगी पट्टी वाले सफेद गमछे की थोक कीमत करीब 20 रुपये पड़ती है, जो खुले बाजार में 30 रुपये का बिकता है। वसीम के पास उत्तर प्रदेश ही नहीं गुजरात, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से भी गमछों की तगड़ी मांग आ रही है। कमोबेश सभी राज्यों में राजनीतिक दलों के प्रत्याशी अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों में बांटने के लिए गमछों के थोक ऑर्डर दे रहे हैं।
ज्यादातर पावरलूम गमछे बनाने में व्यस्त हैं मगर मऊरानीपुर में गमछों से ज्यादा मांग कुर्ते के कपड़े की दिख रही है। मऊरानीपुर से माल मंगाने वाले हाजी सलावत अली का दावा है कि वहां का कपड़ा किसी भी दूसरी जगह से मंगाए कपड़े के मुकाबले ज्यादा मजबूत, टिकाऊ और सस्ता होता है। इस समय मऊरानीपुर से कुर्तों के थान ही सबसे ज्यादा मंगाए जा रहे हैं।
लखनऊ के विधायक निवास दारुलशफा के परिसर में सजी कुर्तें पायजामे की दर्जनों दुकानों पर लोगों की भीड़ दिख रही है। यहां ग्राहकों की मांग के मुताबिक सिले-सिलाए कुर्ते पायजामे बिक्री के लिए ज्यादा रखे गए हैं।