17वीं लोक सभा में सिर्फ चार निर्दलीय सांसद है। इनमें एक असम के कोकराझार का प्रतिनिधित्व करते हैं। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कोकराझार ऐसी सीट है जहां 2009 को छोड़ दें तो 1977 से अब तक आजाद उम्मीदवार ही सांसद चुना जाता है। उदाहरण के लिए 1991 की 10वीं लोक सभा में केवल एक निर्दलीय सांसद सत्येंद्र नाथ ब्रह्म चौधरी चुनकर आए थे। वह भी कोकराझार से थे।
वर्ष 1998 से 2004 तक सांसुमा खंगूर विश्वमुतियारी ने लोक सभा में कोकराझार का निर्दलीय सांसद के तौर प्रतिनिधित्व किया, लेकिन 2009 में वह बोडो पीपल्स फ्रंट के साथ हो गए। वर्ष 2014 और 2019 में इस लोक सभा सीट के मतदाताओं ने नव कुमार शरणीया को चुना, लेकिन निर्दलीय ही। लेकिन, इस बार शरणीया के अपनी सीट बचाने के उम्मीदें अधर में लटकती दिख रही हैं। हाल ही में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने एकल पीठ के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें अनुसूचित जनजाति (मैदानी) की स्थिति को चुनौती दिए जाने के मामले में शरणीया को अंतरिम राहत दी गई थी।
महाराष्ट्र के अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत कौर राणा कानूनी लड़ाई में अधिक भाग्यशाली रहीं। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को उलटते हुए उनके अनुसूचित जाति के दर्जे को बरकरार रखा। नवनीत राणा ने हाल ही में भाजपा का दामन थाम लिया है और अब वह पार्टी के सिंबल पर अमरावती से 2024 का लोक सभा चुनाव लड़ेंगी।
साल 2019 में शरणीया और राणा के अलावा कर्नाटक के मंडिया की सांसद सुमलता अम्बरीश और दादरा एवं नागर हवेली के सांसद मोहनभाई डेलकर 17वीं लोक सभा के लिए चुने जाने वाले अन्य निर्दलीय सांसद थे। पिछले आम चुनाव में भाजपा के समर्थन से निर्दलीय लड़ीं सुमलता इस बार मैदान में उतरने की इच्छुक नहीं दिख रहीं, क्योंकि भाजपा ने यह सीट अपने राजग सहयोगी जनता दल (सेकुलर) को दे दी है।
समय के साथ संसद में निर्दलीय सांसदों की संख्या घटती चली गई। वरना एक समय था जब दर्जनों सांसद निर्दलीय के तौर जीत कर सांसद बनते थे। पहली लोक सभा में 37 सांसद निर्दलीय जीते थे। उस समय कांग्रेस के 364 सांसद थे जबकि दूसरे नंबर पर निर्दलीय ही थे, क्योंकि दलगत स्थिति में कांग्रेस के बाद केवल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के 16 सांसद चुने गए थे।
वर्ष 1957 के चुनाव में संसदीय इतिहास में सबसे ज्यादा 42 सांसद निर्दलीय जीत कर लोक सभा पहुंचे थे। वर्ष 1962 की तीसरी लोक सभा में 20 और 1967 की चौथी लोक सभा में यह संख्या 35 रही। पांचवीं लोक सभा 1971 में निर्दलीय सांसद 14 रहे जबकि छठी लोक सभा 1977 में यह संख्या घटकर 9 रह गई। 7वीं लोक सभा के लिए वर्ष 1980 के आम चुनाव में 12 सांसद आजाद उम्मीदवार के रूप में जीते थे, जबकि 8वीं लोक सभा में 1984 में आजाद सांसदों की संख्या पांच और 1989 की 9वीं लोक सभा में यह संख्या 12 रही।
वर्ष 1996 की 11वीं लोक सभा में नौ सांसद आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीते थे, जबकि उसके बाद 1998 और 1999 के लोक सभा चुनाव में 6-6 सांसद निर्दलीय चुने गए थे। वर्ष 2004 के चुनाव में यह संख्या घटकर पांच पर आ गई, लेकिन 2009 में दोबारा बढ़कर नौ पहुंच गई।
उससे अगले यानी 2014 के आम चुनाव में केवल तीन सांसद ही निर्दलीय के तौर पर जीत सके थे। वर्ष 2019 यानी 17वीं लोक सभा में जो चार सांसद निर्दलीय जीते उनमें शरणीया और नवनीत राणा के अलावा सुमलता अम्बरीश और मोहनभाई डेलकर थे।