जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए भारत आ रहे अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन लैपटॉप तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के आयात पर पाबंदी लगाने के भारत के निर्णय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चा कर सकते हैं। मामले के जानकार लोगों ने यह बताया।
जानकारों में से एक ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘मोदी और बाइडन की द्विपक्षीय बैठक जी20शिखर सम्मेलन से हटकर होगी, जिसमें अन्य मुद्दों के साथ ही कुछ इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने के भारत के हालिया निर्णय पर चर्चा हो सकती है।’ बाइडन 7 से 10 सितंबर तक भारत में रहेंगे। मोदी और बाइडन के बीच द्विपक्षीय बैठक 8 सितंबर को होगी।
भारत ने लैपटॉप, टेबलेट, पर्सनल कंप्यूटर, सर्वर सहित कुछ इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के आयात पर 1 नवंबर से पाबंदी लगाने का निर्णय किया है। सरकार ने नागरिकों की सुरक्षा पर मंडराते जोखिम को इसका कारण बताया है। मगर पिछले महीने लिए गए इस निर्णय का मकसद चीन से आयात कम करना और देश में विनिर्माण को बढ़ावा देना भी है।
पिछले महीने भारत आईं अमेरिका की व्यापार मंत्री कैथरीन तई ने भी जी20 व्यापार और निवेश पर मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के सामने यह मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि हितधारकों को नीति के बारे में जानकारी देनी चाहिए तथा उसकी समीक्षा करने का अवसर देना चाहिए। जिससे सुनिश्चित हो सके कि पाबंदी लागू होने पर भी अमेरिका से भारत को होने वाले निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
भारत में आयात होने वाले आईटी हार्डवेयर में अमेरिका की हिस्सेदारी बाकी देशों से बहुत कम है। भारत में इन उत्पादों का सबसे अधिक आयात चीन से होता है। हालांकि ऐपल, डेल, एचपी और सिस्को जैसी अमेरिकी कंप्यूटर और सर्वर कंपनियां इसलिए चिंतित हैं क्योंकि वे चीन तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के अपने कारखानों में बना सामान ही भारतीय बाजार में भेजती हैं।
बीते कुछ दशकों में तकनीकी फर्मों ने जटिल और आपस में जुड़ी हुई वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला तैयार की है। अमेरिका आईसीटी क्षेत्र के लिए डिजाइन और नवोन्मेष में अग्रणी है मगर इन उत्पादों का विनिर्माण मुख्य रूप से चीन की विनिर्माण सेवा कंपनियां ठेके पर करती हैं।
वैश्विक आईटी हार्डवेयर फर्मों की विनिर्माण साझेदार फॉक्सकॉन के 2004 में केवल 47,000 कर्मचारी थे, जो 2014 में बढ़करक 11 लाख हो गए थे। इनमें से 99 फीसदी चीन में कार्यरत हैं।
भले ही अमेरिकी प्रशासन चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए आईसीटी आपूर्ति श्रृंखला का मूल्यांकन कर रहा है मगर वह चाहता है कि यह बदलाव बिना किसी व्यवधान के सुगमता से हो। दूसरी ओर भारत सरकार ने उद्योग जगत को भरोसा दिया है कि वह कंपनियों के लिए आयात लाइसेंस की प्रक्रिया सुगम बनाएगी।
उद्योग के प्रतिनिधियों से सरकार से नई आयात नीति पर पुनर्विचार का आग्रह किया है। सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग परिषद के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्याधिकारी जेसन ऑक्समैन ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘ऐपल से लेकर डेल और एपची तक सभी कंपनियां भारत में उत्पाद बनाना चाहती हैं मगर यह रातोरात नहीं हो सकता। यह पक्का करने के लिए हमें भारत सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा ताकि तकनीकी उद्योग भारत में विनिर्माण क्षमताएं बढ़ाकर नागरिकों को नए उत्पाद और सेवाएं देना जारी रख सकें।’
पिछले महीने वैश्विक तकनीकी दिग्गजों का प्रतिनिधित्व करने वाले आईटीआई परिषद, कंज्यूमर टेक्नोलॉजी एसोसिएशन, नैशनल एसोसिएशन ऑफ मैन्युफैक्चरर्स सहित आठ उद्योग निकायों ने तई और अमेरिका की वाणिज्य मंत्री जीना रायमोंडो को पत्र लिखकर व्यापार एवं आपूर्ति श्रृंखला भागीदार के रूप में भारत की विश्वसनीयता पर चिंता जताई थी।
पत्र में कहा गया है कि इस नीति की घोषणा से पहले कोई नोटिस या सार्वजनिक परामर्श नहीं किया गया जबकि इससे व्यापार में बाधा आ सकती है और दोनों देशों में व्यापार और ग्राहकों को नुकसान हो सकता है। उन्होंने आग्रह किया था कि दोनों मंत्री भारत सरकार के साथ अपनी बातचीत में इस मुद्दे को तात्कालिक तौर पर उठाएं और सुनिश्चित करें कि भारत द्वारा उठाया गया कोई भी कदम अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता के अनुरूप हो।