भारत के शहरी इलाकों में युवाओं के लिए नौकरियों के अवसर बढ़े हैं, लेकिन अभी यह देश के जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
वित्त वर्ष 23 की चौथी तिमाही में शहरी भारत में युवाओं (15 से 29 साल) की बेरोजगारी दर घटी है, लेकिन यह अभी भी 17.3 प्रतिशत के बढ़े स्तर पर बनी हुई है, जो तीसरी तिमाही में 18.6 प्रतिशत थी। इससे भारत की बड़ी युवा आबादी के लाभ उठा पाने को लेकर सवाल खड़े होते हैं।
एक साल पहले (जनवरी-मार्च 2022) शहरी भारत के युवाओं की बेरोजगारी तर 20.2 प्रतिशत थी।
वित्त वर्ष 23 की चौथी तिमाही के दौरान नौकरी करने को इच्छुक महिलाओं में करीब 23 प्रतिशत को नौकरी नहीं मिल पाई। हालांकि इसके पहले की तिमाही के 25.1 प्रतिशत और एक साल पहले की समान अवधि के 25.3 प्रतिशत की तुलना में बेहतर स्थिति है। सोमवार को जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) में यह सामने आया है।
युवा पुरुषों की बेरोजगारी दर तुलनात्मक रूप से कम है, लेकिन यह वित्त वर्ष 23 की चौथी तिमाही में अभी भी 15.6 प्रतिशत के बढ़े स्तर पर है, जो इसके पहले की तिमाही के 16.6 प्रतिशत और एक साल पहले की समान तिमाही के 18.8 प्रतिशत की तुलना में कम है।
राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में 2022-23 की चौथी तिमाही में बेरोजगारी दर 30 प्रतिशत से अधिक रही है।
सर्वेक्षण में उद्योगवार रोजगार के आंकड़े नहीं दिए गए हैं। वहीं इससे पता चलता है कि 2022-23 की चौथी तिमाही में स्वरोजगार और अस्थायी श्रमिकों की संख्या सभी उम्र वर्ग में इसके पहले की तिमाही की तरह ही है।
इस दौरान 39.5 प्रतिशत कामगार स्वरोजगार वाले रहे, जबकि एक साल पहले 39.6 प्रतिशत थे। इस श्रेणी में भुगतान न पाने वाले सहयोगियों का प्रतिशत बढ़कर 6.1 हो गया है, जो इसके पहले 5.9 प्रतिशत था। कुल कार्यबल में अस्थायी श्रमिकों की संख्या 11.7 प्रतिशत रही, जो एक साल पहले 11.8 प्रतिशत थी।
थिंक टैंक डब्ल्यूआरआई इंडिया के सीनियर फेलो अमिताभ कुंडू ने कहा कि 15 से 29 साल के उम्र वर्ग में बेरोजगारी दर सामान्यतया इसके ऊपर की आयु वर्ग की तुलना में ज्यादा रहती है।
15 साल और इससे ज्यादा उम्र वर्ग के लोगों की बेरोजगारी दर वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में 6.8 प्रतिशत रही है, जो इसके पहले की तिमाही में 7.2 प्रतिशत और एक साल पहले की समान अवधि में 8.2 प्रतिशत थी।
बैंक आफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘हम उत्पादक नौकरियों का सृजन करने में सक्षम नहीं हुए हैं। बेरोजगार रहने से ब्लू कॉलर नौकरियां बेहतर हैं। अर्थव्यवस्था में तेजी से ह्वाइट कॉलर नौकरियां बढ़ती हैं।’