यूक्रेन-रूस युद्ध शुरू हुए एक साल हो गया है, लेकिन इसका प्रभाव अभी बना हुआ है, क्योंकि व्यापार में उतार-चढ़ाव की वजह से इस्पात कंपनियों के लिए कच्चे माल की कीमतें तेजी से चढ़ रही हैं, जिससे उनकी उत्पादन लागत बढ़ रही है। वहीं कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं अभी मांग में सुधार आने का इंतजार कर रही हैं।
रूस और यूक्रेन दुनिया में इस्पात और कच्चे माल के प्रमुख उत्पादक हैं। वर्ष 2021 में, इन दो देशों से इस्पात निर्यात करीब 4.8 करोड़ टन रहा, और वैश्विक इस्पात व्यापार में इनका करीब 10 प्रतिशत योगदान है। वहीं उत्पादन के संदर्भ में, लौह अयस्क और पैलेट से लेकर कोयला और मेटालिक तक, इन दोनों देशों का कुल कच्चे माल में बड़ा योगदान है।
रूस ने वर्ष 2021 के दौरान करीब 3.2 करोड़ टन कोयले का निर्यात किया। क्रिसिल मार्केट इंटेलीजेंस ऐंड एनालिटिक्स में शोध निदेशक हेतल गांधी ने कहा, ‘यूरोप द्वारा रूस से कोयला नहीं खरीदने की वजह से देश ने चीन को अपना निर्यात बढ़ाने पर ध्यान दिया जिससे 2022 में निर्यात में तेजी आई। सप्लाई चेन में समस्या की वजह से भी दुनियाभर में कोकिंग कोयला और इस्पात कीमतों में भारी तेजी आई, जिससे मांग प्रभावित हुई।’
वैश्विक चिंताओं की वजह से मांग प्रभावित हुई है, जिससे इस्पात मिलें ऊंची लागत वाले कच्चे माल के भंडार में तेजी की समस्या से जूझ रही हैं और मुनाफे की बजाय नुकसान उठाने को बाध्य हुई हैं। इसका असर वित्त वर्ष 2023 की दूसरी और तीसरी तिमाही के प्रदर्शन में स्पष्ट तौर पर दिखा।
उत्पादन लागत
जेएसडब्ल्यू स्टील के उप प्रबंध निदेशक जयंत आचार्य ने कहा, ‘यदि हम पीछे मुड़कर देखें तो पता चलता है कि आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित अवरोधों की वजह से जिंस कीमतों में तेजी को बढ़ावा मिला। बदलते समय के साथ कीमतों में कुछ नरमी आई, लेकिन अभी भी कुछ लागत ऊंची बनी हुई हैं और ये लंबे समय तक बनी रह सकती हैं।’
उनका मानना है कि उदाहरण के लिए, कोकिंग कोयले की कीमतें ऊंचे स्तरों पर बनी हुई हैं। उन्होंने कहा, ‘तापीय कोयले की कीमत नरम पड़ी है, लेकिन यह कोविड-पूर्व स्तरों से ऊंची है, अलौह धातुओं की तरह। हम ऊंची लागत वाले उत्पादन ढांचे में प्रवेश कर रहे हैं।’
आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया के मुख्य विपणन अधिकारी रंजन धार का मानना है कि कोकिंग कोयले की ऊंची लागत से इस्पात मिलों का मार्जिन दबाव में बना हुआ है।
इस्पात कीमतें
जैसे जैसे युद्ध लंबा खिंच रहा है, वैश्विक तौर पर धारणा कुछ हद तक सुधर रही है। धार का कहना है, ‘युद्ध का असर दिख चुका है और अब यूरोप में मांग पर दबाव कम हो रहा है तथा लोग फिर से खरीदारी बढ़ा रहे हैं।’
इसका असर कीमतों में दिखा है। वैश्विक तौर पर कीमतें दिसंबर से 120-150 डॉलर प्रति टन तक बढ़ी हैं। भारत में इस्पात कीमतें दिसंबर के अंत से बढ़नी शुरू हो गईं। इससे पहले नवंबर में मार्च 2021 के बाद से कीमतों में निचला स्तर देखा गया था।
क्रिसिल के अनुसार, इस्पात कीमतें 7 महीने की ऊंचाई पर हैं। औसत कीमत 59,000-60,000 प्रति टन के आसपास है।
सकारात्मक रुझान
मांग के मोर्चे पर, भारतीय बाजार में मजबूती आई है। गांधी के अनुसार, भारत की इस्पात मांग ऊंची बने रहने की संभावना है और वित्त वर्ष 2023 में इसमें 10-12 प्रतिशत तथा वित्त वर्ष 2024 में 8-10 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है।
गांधी का मानना है कि जहां तक वैश्विक मांग का सवाल है, 2023 की दूसरी छमाही में मांग में सुधार आएगा।