भारत को उम्मीद है कि अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत का सिलसिला जल्द ही बहाल होगा मगर इसके लिए भारतीय उत्पादों पर अमेरिका में लगाए गए 50 फीसदी उच्च शुल्क के मुद्दे का समाधान करना आवश्यक होगा। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने आज इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा, ‘हम जल्द ही फिर से बातचीत की मेज पर लौटने की उम्मीद कर रहे हैं… जब भी समझौता होगा, उस समय दोनों पक्षों को शुल्क के मुद्दों (अतिरिक्त 25 फीसदी सहित) का समाधान करना होगा।’
इस महीने की शुरुआत में समझौते के लिए अगले दौर की वार्ता के लिए 25 अगस्त को भारत आने वाली अमेरिकी टीम ने बैठक स्थगित कर दी थी। फिलहाल अगले दौर की व्यापार वार्ता की तारीखें तय नहीं हुई हैं लेकिन बातचीत बहाल होने की संभावना है।
उक्त अधिकारी ने कहा, ‘अतिरिक्त शुल्क के कारण आधिकारिक स्तर पर चर्चा करना व्यावहारिक नहीं था। यह समस्या अभी भी बनी हुई है और तारीखें आगे बढ़ा दी गई हैं।’ हालांकि दोनों पक्ष एक-दूसरे के मुद्दों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने सितंबर-अक्टूबर तक द्विपक्षीय व्यापार समझौते के पहले चरण को पूरा करने की मंशा की घोषणा की थी मगर भू-राजनीतिक जटिलताओं के कारण अब यह मुश्किल लग रहा है।
भारत को झटका देते हुए अमेरिकी प्रशासन ने 7 अगस्त से 25 फीसदी का जवाबी शुल्क लगा दिया और 27 अगस्त से 25 फीसदी अतिरिक्त शुल्क लागू कर दिया है जिसका कारण रूस से कच्चे तेल की खरीद बताया गया है। उच्च शुल्क से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में रत्न एवं आभूषण, कपड़ा, झींगा, चमड़ा और जूते-चप्पल जैसे श्रम प्रधान क्षेत्र हैं।
निर्यातक भारी शुल्क के कारण बाजार पहुंच, प्रतिस्पर्धात्मकता और रोजगार सृजन पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव की चिंता जता रहे हैं। उन्होंने सरकार से आवश्यक नीतिगत उपाय लागू करने का आग्रह किया है।
वाणिज्य विभाग निर्यातकों की सहायता के लिए बहुआयामी रणनीति पर काम कर रहा है। हालांकि सब्सिडी जैसे किसी उपाय की योजना नहीं है। अधिकारी ने कहा, ‘सरकार निर्यातकों की समस्याओं से अवगत है और उनकी मदद के लिए सकारात्मक प्रयास चल रहे हैं।’
वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50 फीसदी शुल्क के परिणामस्वरूप अल्पावधि में निर्यातकों के सामने आने वाली नकदी की चुनौतियों से निपटने के उपायों पर विचार कर रही है। सरकार निर्यातकों की मदद के लिए ‘पुरानी चल रही योजनाओं’ को पुनर्जीवित करने और छह साल की अवधि के लिए 25,000 करोड़ रुपये के निर्यात संवर्धन मिशन को शीघ्र लागू करने पर विचार कर रही है।
जिन योजनाओं पर विचार किया जा रहा है उनमें आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना, रेहन मुक्त ऋण, नकदी प्रवाह की चुनौतियों को दूर करना आदि शामिल हैं। वाणिज्य विभाग नए निर्यात बाजार पर चर्चा के लिए निर्यातकों के साथ बैठक भी कर रहा है।
निर्यातकों ने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आश्वासन दिया है कि वे निर्यातकों के लिए जल्द से जल्द सहायता उपाय लागू करेंगी। निर्यातकों के संगठन फियो ने कहा, ‘वित्त मंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया कि सरकार इस कठिन समय में भारतीय निर्यातकों के साथ मजबूती से खड़ी है और उनके हितों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेगी।’
इस बीच ट्रंप के व्यापार एवं विनिर्माण मामलों के वरिष्ठ सलाहकार पीटर नवारो ने कहा कि भारत पर लगाए गए 25 फीसदी अतिरिक्त शुल्क को हटाना ‘बहुत आसान’ है। इसके लिए भारत को रूस से तेल खरीदना बंद करना होगा।
नवारो ने ब्लूमबर्ग को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘यदि भारत आज रूसी तेल खरीदना और उनकी युद्ध मशीनरी को सहायता देना बंद कर दे तो उसे कल 25 फीसदी की छूट मिल सकती है।’
उन्होंने कहा कि यूक्रेन संघर्ष ‘मोदी का युद्ध’ है और ‘शांति का मार्ग’ आंशिक रूप से भारत से होकर गुजरता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत रूसी युद्ध मशीन को मदद पहुंचा रहा है।
नवारो ने कहा, ‘भारत जो कर रहा है, उसका खमियाजा अमेरिका में हर कोई उठा रहा है। उपभोक्ता, व्यवसाय और हर चीज को नुकसान हो रहा है और मजदूर भी नुकसान उठा रहे हैं क्योंकि भारत के ऊंचे शुल्क की वजह से हमारी नौकरियां, कारखाने, आय और ऊंचे वेतन वाले रोजगार छिन रहे है और करदाताओं का भी नुकसान हो रहा है क्योंकि हमें ‘मोदी के युद्ध’ का वित्तपोषण करना है।’
जब उनसे पूछा गया कि क्या उनका मतलब ‘पुतिन का युद्ध’ है तो नवारो ने दोहराया कि यह ‘मोदी का युद्ध’ है। उन्होंने कहा, ‘मेरा मतलब मोदी का युद्ध है क्योंकि शांति का रास्ता आंशिक रूप से भारत से होकर गुजरता है।’