भारत और ब्रिटेन (यूके) के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार वार्ता अंतिम चरण में है और दोनों देश मतभेद दूर करने की कवायद में लगे हुए हैं। वहीं ब्रिटेन अपने इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए भारतीय बाजार तक ज्यादा पहुंच की मांग कर रहा है, जिसे लेकर मतभेद बना हुआ है।
ब्रिटिश सरकार ने पूरी तरह से ब्रिटेन में बने इलेक्ट्रिक वाहनों की सीमित संख्या में भारतीय बाजार में बगैर सीमा शुल्क के निर्यात की अनुमति दिए जाने की मांग की है। इसके अलावा उन्होंने 40,000 डॉलर से ज्यादा मूल्य के इलेक्ट्रिक वाहनों पर 100 प्रतिशत आयात शुल्क में कमी किए जाने की मांग की है।
एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘10 प्रतिशत से अधिक की कर कटौती का अनुरोध किया गया है और इसे धीरे धीरे और कम करने की मांग है।’ भारत 40,000 डॉलर से अधिक मूल्य की कार पर 100 प्रतिशत आयात शुल्क और अन्य सभी कारों के आयात पर 70 प्रतिशत आयात शुल्क लेता है।
वाणिज्य विभाग के प्रमुखों की अध्यक्षता में व्यापार समझौते पर हुई बैठक में इस मसले पर 2 सप्ताह पहले चर्चा हुई थी। गुरुवार को भारी उद्योग मंत्रालय के साथ एक और दौर की बैठक हुई थी।
आयात शुल्क में बड़ी छूट देने को लेकर भारत सुस्त रुख अपना रहा है क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग अभी शुरुआती दौर में है। इसके अलावा उद्योग भी ईवी पर किसी शुल्क छूट के खिलाफ रहा है और सरकार इसे बातचीत से बाहर रखना चाहती है। एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘ब्रिटेन को कर छूट देने में सुस्ती इस बात की वजह से भी है कि इसी तरह की मांग दूसरे देश भी करने लगेंगे। इससे घरेलू इलेक्ट्रिक वाहन बाजार की वृद्धि पर असर पड़ेगा।’
टेस्ला पहले से ही भारत सरकार से कर घटाने की इसी तरह की मांग कर रही है। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने पिछले साल दीपावली तक समझौता होने की अंतिम तिथि रखी थी, जो चूक गई। दोनों देश उम्मीद कर रहे हैं कि अक्टूबर के अंत तक व्यापार समझौता हो जाएगा, लेकिन अभी भी मतभेद दूर किए जाने हैं। अगले साल दोनों देशों में आम चुनाव होने हैं, ऐसे में इस व्यापार समझौते को तेजी से पूरा किए जाने की कवायद की जा रही है।
दोनों देशों ने ज्यादातर मसलों पर बातचीत पूरी कर ली है। इसमें गैर व्यापारिक मसले जैसे डिजिटल ट्रेड, जेंडर, लेबल जैसे मसले शामिल हैं। लेकिन मुख्य चुनौती वस्तु एवं सेवाओं को लेकर है। वस्तुओं के मामले में ब्रिटेन ऑटोमोबाइल के लिए बाजार तक व्यापक पहुंच चाहता है, जो लगातार टेढ़ा मसला बना हुआ है।
ब्रिटिश उच्चायोग के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘महत्त्वाकांक्षी व्यापार समझौते पर ब्रिटेन और भारत लगातार काम कर रहे हैं, जो दोनों देशों के लिए फायदेमंद हो। हमारा रुख हमेशा से साफ रहा है कि हम तभी समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे, जब समझौता साफ सुथरा, संतुलित और ब्रिटिश नागरिकों व अर्थव्यवस्था के हित में हो।’
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने बिजनेस स्टैंडर्ड की ओर से मांगी गई जानकारी पर कोई जवाब नहीं दिया।
उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि आयात शुल्क में प्रस्तावित कमी संभवतः घरेलू बाजार पर बहुत ज्यादा असर नहीं डालेगी, क्योंकि योजना में शामिल वाहनों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है।
एसऐंडपी ग्लोबल के डायरेक्टर पुनीत गुप्ता ने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय कारोबारियों के लिए दरवाजे खोलने से भारत के ईवी उद्योग को उल्लेखनीय रूप से बढ़ावा मिलेगा। इससे भारत के ग्राहकों तक अत्याधुनिक तकनीकें पहुंच सकेंगी। दरअसल व्यापार को ब्रिटेन से आगे विस्तार दिएजाने और अन्य देशों को इसमें शामिल किए जाने की जरूरत है।
बहरहाल इस तरह के कदम में समझौते की समय सीमा परिभाषित होनी चाहिए और इन अंतरराष्ट्रीय इकाइयों से प्रतिबद्धता ली जानी चाहिए कि वे भारत में निवेश कर यहां के व्यापारिक गतिविधियों को दीर्घावधि समर्थन देंगी।’
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के वाहन डैशबोर्ड के मुताबिक भारत में बिकने वाली 1,21,400 कारों में से घरेलू विनिर्माता टाटा मोटर्स की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से ज्यादा है।