भारतीय रिजर्व बैंक के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वित्त वर्ष 2023-24 की जनवरी-मार्च तिमाही के दौरान भारत में ब्याज की न्यूट्रल दर 1.4 से 1.9 प्रतिशत के बीच रही है। यह 2021-22 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के लिए इसके पहले के 0.8 से 1.0 प्रतिशत के अनुमान की तुलना में तेज बढ़ोतरी है। इससे रिजर्व बैंक द्वारा रीपो रेट में कटौती करने को लेकर बहस छिड़ गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के बाद भारत के लिए ब्याज की न्यूट्रल दर में ताजा बढ़ोतरी की वजह उत्पादन में वृद्धि की संभावना है। इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘महामारी के बाद से कुल मिलाकर जीडीपी वृद्धि दर उच्च स्तर की ओर रही है। ऐसे में न्यूट्रल दर का अनुमान उचित लगता है।’
अर्थशास्त्री वास्तविक ब्याज दर की गणना रीपो रेट में से एक साल आगे की महंगाई दर को घटाकर करते हैं। इस समय रीपो रेट 6.5 प्रतिशत है, जबकि चौथी तिमाही में औसत महंगाई 4.5 प्रतिशत अनुमानित है। रिजर्व बैंक के अध्ययन में साफ किया गया है कि न्यूट्रल या प्राकृतिक दर का अनुमान अनिश्चितता के व्यापक दायरे में है। इसकी वजह से मौद्रिक नीति का रुख तय करने में आकलन के सावधानी पूर्वक व्याख्या की जरूरत है।
यह रिपोर्ट रिजर्व बैंक के आर्थिक और नीतिगत शोध विभाग (डीईपीआर) के हरेंद्र कुमार बेहरा द्वारा लिखी गई है। यह स्पष्ट किया गया है कि इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं, रिजर्व बैंक के नहीं।
बेहरा ने कहा है कि ढांचागत बदलावों और जनसांख्यिकीय स्थिति को देखते हुए भारत के लिए न्यूट्रल दर का अनुमान लगाना खासकर चुनौतीपूर्ण है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘खासकर महामारी की जटिलताओं के कारण उत्पादन का अनुमान बदला है और इससे महंगाई दर की गतिशीलता पर असर पड़ा है।’