लगातार चार महीने से घट रही खुदरा मुद्रास्फीति खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने के कारण जून में फिर बढ़ गई। मगर अब भी यह भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के सहज दायरे में बनी हुई है। अलबत्ता औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) और औद्योगिक उत्पादन के मोर्चों से अच्छी खबर मिली हैं। IIP मई में बढ़कर तीन महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गया और उद्योगों का उत्पादन विनिर्माण, खनन और बिजली क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन की बदौलत सुधर गया।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति जून में बढ़कर 4.81 फीसदी हो गई, जो मई में 4.31 फीसदी थी। खाने-पीने की चीजें तथा सेवाएं महंगी होने से खुदरा मुद्रास्फीति पर असर पड़ा है। अनाज, फल, मांस, अंडे तथा दालों की कीमतें बढ़ने से खाद्य मुद्रास्फीति भी जून में तीन महीने के उच्च स्तर 4.49 फीसदी पर पहुंच गई, जो मई में 2.96 फीसदी थी।
इधर आंकड़ों के मुताबिक मई में उद्योगों का उत्पादन 5.2 फीसदी बढ़ा है, जबकि अप्रैल में यह 4.2 फीसदी बढ़ा था। विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन 5.7 फीसदी बढ़ा और खनन में 6.4 फीसदी तथा बिजली के उत्पादन में 0.9 फीसदी की तेजी आई।
केयर रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि मौसमी है, लेकिन सब्जियों जैसी कुछ चीजों के दाम में बढ़ोतरी मौसमी रुझान से इतर है।
केयर रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा, ‘खाने-पीने की बुनियादी चीजों जैसे चावल, दाल, सब्जियों और दूध के दाम में तेजी आई है। ऐसे में केंद्रीय बैंक परिवारों पर मुद्रास्फीति के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में चिंतित होगा। आरबीआई का रुख सतर्क बना रहेगा, जिससे 2023 में शायद दरों में कोई बदलाव नहीं हो।’
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर भी इससे सहमत हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर भारत में अत्यधिक बारिश से सब्जियों जैसी जल्दी खराब होने वाली चीजों के दाम बढ़े हैं और इससे आगे खाद्य मुद्रास्फीति और बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि सब्जियों के दाम बढ़ने के कारण चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति आरबीआई के 5.2 फीसदी के अनुमान से ज्यादा रह सकती है। मौद्रिक नीति समिति अगस्त की बैठक में रीपो दर को यथावत रख सकती है, जिसका मतलब होगा कि दर कटौती शुरू होने में अभी काफी देर है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि ग्रामीण बाजारों में मांग में थोड़ा सुधार होने से मई में एफएमसीजी उत्पादन बढ़ा है मगर कंज्यूमर ड्यूरेबल क्षेत्र लगभग स्थिर बना हुआ है। उन्होंने कहा कि सरकारी खजाने से ज्यादा पूंजीगत व्यय होने के कारण पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा है मगर मॉनसून के दौरान इस क्षेत्र की गतिविधियों में कमी आ सकती है।