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नई दूरसंचार कंपनियों के लिए आसान नहीं होगा ऋण जुटाना

Last Updated- December 11, 2022 | 1:40 AM IST

अब दूरसंचार ऑपरेटरों को लाइसेंस या अधिाकर पत्र दिखाकर बैंकों से कर्ज लेने में परेशानी हो सकती है।
रिजर्व बैंक के नए आदेशों के अनुसार अथोराइजेशन, अधिकार पत्र और लाइसेंस अब नए कर्ज लेने में काम नहीं आएंगे। अभी तक मूर्त संपत्ति के रुप में मानते हुए बैंक इन्हें गारंटी के रुप में स्वीकार कर लेते थे। इसका बड़ा असर नई दूरसंचार कंपनियों पर पड़ सकता है।
एक बैंकर के अनुसार किसी खास तरह की बुनियादी ढांचा परियोजना में करीब आधा कर्ज प्रतिभूतियों, गारंटी और अन्य जमानतों के जरिए हासिल किया जाता था। इसमें से आधा हिस्सा दूरसंचार लाइसेंस को बतौर जमानत पेश कर हासिल किया जाता था। पर अब इस तरह उठाए गए कर्ज को असुरक्षित माना जाएगा और इसका जोखिम भी 125 प्रतिशत होगा। 
इससे बैंको की पूंजी पर्याप्तता पर दबाव बढ़ जाएगा क्योंकि उनको उन परियोजनाओं के लिए ज्यादा पैसे रखने होंगे जहां जमानत के रुप में अधिकार या आथोरिटी दी हुई है। बैंकरों का कहना है कि उदाहरण के लिए हाईवे निर्माण जैसी अन्य परियोजनाओं में कर्जदाता टोल से उगाही जाने वाली रकम पर शुल्क लगाते हैं।
बिजली परियोजनाओं के विकास के लिए इस्तेमाल जमीन को जमानत के तौर पर रखा जाता है। जबकि मशीनरी कर्जदाता के पास रखी होती है। मोबाइल सेवा परिचालन शुरू किए जाने के लिए सरकार ने दूरसंचार कंपनियों को लगभग 120 लाइसेंस दिए हैं। इनमें आधा दर्जन कं पनियां पूरे भारत में सेवाएं देने की संभावना तलाश रही हैं।
हरेक कंपनी को सेवा शुरू करने के लिए लगभग 10,000-15,000 करोड़ रुपये की जरूरत है। मौजूदा कंपनियां भी अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए कर्ज जुटा रही हैं। अपनी विस्तार योजनाओं पर अमल करने के लिए कोष जुटाने वाली मौजूदा कंपनियों को पैसा देने से पहले ऋणदाता कॉलेटरल की कीमत के निर्धारण के लिए लाइसेंस की बाजार कीमत का आकलन करते हैं।
ऐसे में कंपनी के लिए अगर लाइसेंस की कीमत 500 करोड़ रुपये है तो यह उधार लेने वाले के लिए कॉलेटरल जरूरत कम करने के लिए हाल में जारी किए गए लाइसेंस की कीमत के एवज में रखा गया है। पूरे भारत में लाइसेंस की कीमत 1,651 करोड़ रुपये है जिसमें 4.4 मेगा हट्र्ज स्पैक्ट्रम मुफ्त होता है।

First Published - April 21, 2009 | 8:38 AM IST

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