छोटे और सीमांत किसानों को 60 हजार करोड़ के इनाम-इकराम से नवाजने के बाद अब बुनकरों और बुनकर सहकारी समितियों की तरफ सरकार की नजरे इनायत होने वाली है।
हथकरघा उद्योग में कर्ज के जाल में फंसते जा रहे बुनकरों और इस उद्योग के लिए दरकार जरूरी पूंजी की बढ़ती लागत के मद्देनजर सरकार ने बाकायदा एक समिति बनाकर इन्हें भी पैकेज से नवाजने की तैयारी कर ली है।
उच्च शीर्षस्थ सरकारी सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार इन बुनकरों पर 31 मार्च 2006 तक चढ़े कर्ज और सुरसा तरह बढ़ते उसके ब्याज को माफ करने पर विचार कर रही है।
इसके साथ सरकार का इरादा इनके लिए बनाई गईं सहकारी समितियों का बही-खाता भी दुरुस्त करने का है। हैंडलूम और पावरलूम के संयुक्त आंकड़े बताते हैं कि 1995-96 तक इस उद्योग में 65.51 लाख से ज्यादा बुनकर काम कर रहे थे।
सत्तारूढ़ यूपीए सरकार इस कदम के जरिए ‘आम आदमी ‘ को अपने मोहपाश में बांधना चाहती है ताकि अगले साल आने वाले आम चुनाव में उसके लिए रंग चोखा निकले।
इसी रणनीति के तहत, इससे पहले 2008-09 का बजट घोषित करते समय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने छोटे और सीमांत किसानों का कर्ज माफ करने के लिए ऐतिहासिक 60 हजार करोड़ का पैकेज दिए जाने का ऐलान किया था। अनुमान है कि इस पैकेज के जरिए देश के चार करोड़ से ज्यादा किसानों को फायदा पहुंचेगा।
सरकार एक और प्रस्ताव पर भी विचार कर रही है, जिसके तहत बुनकरों और इनकी समितियों को सात फीसदी की ब्याज दर से कर्ज मुहैया कराया जा सके।
इसके लिए नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट और अन्य बैंकों को सरकार सब्सिडी भी देने को तैयार है। इसके अलावा वित्त मंत्री ने 2008-09 में केंद्र सरकार द्वारा जारी स्वास्थ्य बीमा स्कीम के तहत बुनकरों को कवर करने के लिए राशि बढ़ाकर 340 करोड़ रुपए कर दी।
चिदंबरम का दावा था कि मार्च 2008 तक बुनकरों के 17 लाख से ज्यादा परिवार इस स्कीम के तहत कवर कर लिए जाएंगे।