इस वित्त वर्ष की महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक के 3.7 प्रतिशत के लक्ष्य से कम रह सकती है। सोमवार को जारी वित्त मंत्रालय की जून 2025 की मासिक समीक्षा में यह अनुमान लगाते हुए कहा गया है कि इससे मौद्रिक नीति में ढील बनाए रखने में मदद मिलेगी। बहरहाल वित्त मंत्रालय की समीक्षा में कहा गया है कि मौद्रिक नीति में ढील और मजबूत बैलेंस शीट के बावजूद ऋण वृद्धि सुस्त हुई है, जो उधार लेने वालों की सतर्क भावना और जोखिम से बचने के उनके व्यवहार को दिखाती है।
समीक्षा में कहा गया है, ‘वित्त वर्ष 2026 में अर्थव्यवस्था की स्थिति यथावत बनी रहने वाली लग रही है।’ केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही में प्रमुख महंगाई दर 3.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। वित्त मंत्रालय को उम्मीद है कि ओपेक और उसके सहयोगी देशों द्वारा अनुमान से अधिक उत्पादन के कारण कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें कम बनी रहेंगी।
मासिक समीक्षा में कहा गया है, ‘महंगाई दर लक्ष्य के भीतर बने रहने और मॉनसून की प्रगति सही रहने के कारण वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही के दौरान घरेलू अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से मजबूती से बढ़ेगी।’
जून में भारत की खुदरा महंगाई दर घटकर 2.1 प्रतिशत रह गई, जो मई में 2.82 प्रतिशत थी। इस पर अनुकूल आधार और खाद्य व बेवरिज सेग्मेंट की कीमतों में गिरावट का असर पड़ा है। 6 साल में पहली बार ऐसा हुआ है।
इसकी वजह से केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति को आगामी समीक्षा में यथास्थिति बनाए रखने की गुंजाइश मिलेगी।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों के मुताबिक इसके पहले जनवरी 2019 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर घटकर 1.97 प्रतिशत पर पहुंची थी। वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग की समीक्षा से पता चलता है कि सुस्त ऋण वृद्धि और निजी निवेश की रफ्तार धीमी रहने से आर्थिक रफ्तार पर विपरीत असर पड़ सकता है।
इसमें कहा गया है, ‘रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (ईएलआई) जैसी योजनाओं का लाभ उठाकर अब कंपनियों को इस दिशा में काम करने का वक्त आ गया है।’
समीक्षा में कहा गया है कि अमेरिकी शुल्क को लेकर अनिश्चितता जारी रहने का असर आने वाली तिमाहियों में भारत के व्यापार के प्रदर्शन पर पड़ सकता है।
डीईए अधिकारियों ने समीक्षा में लिखा है कि व्यापारिक तनावों और भू राजनीतिक उतार चढ़ाव की वजह से 2025 के मध्य में भारतीय अर्थव्यवस्था सतर्क आशावाद वाली है।
राजकोषीय स्थिति को लेकर समीक्षा में कहा गया है कि कर में कटौती के बावजूद राजस्व की आवक मजबूत बनी रहेगी और इसमें दो अंकों की वृद्धि जारी रहेगी। इसमें कहा गया है कि केंद्र व राज्य दोनों सरकारों ने पूंजीगत व्यय की रफ्तार बरकरार रखी है।
सुस्ती के जोखिम को लेकर मासिक समीक्षा में कहा गया है कि भूराजनीतिक तनाव आगे बढ़ता हुआ नजर नहीं आ रहा है, लेकिन वैश्विक सुस्ती के कारण भारत के निर्यातकों की मांग घट सकती है। खासकर 2025 की पहली तिमाही में अमेरिकी अर्थव्यवस्था 0.5 प्रतिशत घटी है, जिसका असर निर्यातकों पर पड़ सकता है।
समीक्षा में कहा गया है कि स्थिर मूल्य के हिसाब से आर्थिक गतिविधियां वास्तविकता से बेहतर नजर आ सकती हैं।