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GDP के नए फॉर्मूले में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को मिलेगी ज्यादा अहमियत, आकलन होगा बेहतर

इन बदलावों से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा नैशनल अकाउंट्स के बारे में आंकड़ों के पर्याप्त होने को लेकर उठाई चिंता का भी समाधान होगा

Last Updated- December 23, 2025 | 10:43 PM IST
GDP
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

भारत के नए नैशनल अकाउंट्स में देश की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा जानने के लिए आंकड़ों के नए स्रोतों और सर्वेक्षणों का इस्तेमाल किया जाएगा और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना में एकल डिफ्लेशन  तंत्र पर निर्भर मौजूदा प्रणाली की जगह सभी क्षेत्रों में डबल डिफ्लेशन विधियों का इस्तेमाल होगा। इन बदलावों से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा नैशनल अकाउंट्स के बारे में आंकड़ों के पर्याप्त होने को लेकर उठाई चिंता का भी समाधान होगा। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (मोस्पी) के सचिव सौरभ गर्ग ने मंगलवार को एक परामर्श कार्यशाला में यह जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि संशोधित नैशनल अकाउंट्स सीरीज में उपलब्ध नए और अधिक व्यापक आंकड़ों का इस्तेमाल होगा, जिसमें अनिगमित क्षेत्र के उद्यमों के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसयूएसई), आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) सहित महत्त्वपूर्ण आंकड़े शामिल होंगे और आंकड़ों की कमी के कारण पहले की सीरीज में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रॉक्सी अनुमानों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।

इस श्रृंखला की एक और नई विशेषता सभी क्षेत्रों में डबल डिफ्लेशन का इस्तेमाल है। इसमें मात्रा की बाहरी गणना की जरूरत होगी और थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) को उत्पादक मूल्य सूचकांक (पीपीआई) के करीब लाया जाएगा।  उन्होंने कहा, ‘नई सीरीज में किसी  भी सेक्टर में सिंगल डिफ्लेशन का इस्तेमाल नहीं होगा।’

नई जीडीपी सीरीज 27 फरवरी, 2026 को जारी होनी है।  डबल डिफ्लेशन में वास्तविक आउटपुट की गड़ना होती है। इसमें उद्योग के सकल आउटपुट और इसके इंटरमीडिए इनपुट को अलग देखा जाता है। इससे सिंगल डिफ्लेशन की तुलना में ज्यादा सटीक और सुसंगत परिणाम मिलते हैं।  सांख्यिकी मंत्रालय में महानिदेशक (सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स) एनके संतोषी ने कहा कि नई सीरीज में मात्रा सहित उपलब्ध प्रमुख आंकड़ों के साथ हम डबल डिफ्लेशन का इस्तेमाल कर रहे हैं। नीति आयोग के वाइस चेयरमैन सुमन बेरी ने अनौपचारिक रोजगार के बेहतर आंकड़ों पर सवाल उठाया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की परिभाषाणों पर भारतीय संदर्भ में सवाल भी उठाया। उन्होंने कहा, ‘हमारे श्रम बल 50 प्रतिशत अनौपचारिक क्षेत्र से है। लिहाजा हम जब तक अनौपचारिक क्षेत्र की गतिविधियों को नहीं समझ पाते हैं, तब तक श्रम उत्पादकता के प्रभावों को सटीक ढंग से पूरा नहीं समझ पाएंगे।’

अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का अधिक आकलन : नागेश्वरन

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि भारत संरचनात्मक खामियों और छोटे व्यवसायों की लेखांकन प्रथाओं के कारण अपनी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के आकार को अधिक आंक रहा है।

तर्क यह भी दिया कि एकमात्र स्वामित्व वाली कंपनियों में व्यक्तिगत और पेशेवर बही-खातों को अलग करने में असमर्थता के कारण उन्हें अक्सर अनौपचारिक उद्यमों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। उन्होंने इंगित किया कि इन्हें औपचारिक प्रणाली से बाहर होने के कारण अनिवार्य रूप से अनौपचारिक संगठन नहीं है बल्कि इनके आर्थिक आंकड़े में घालमेल है। इसलिए यह आंकड़े सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों से बाहर हैं।  अनौपचारिक क्षेत्र का आकलन मूल रूप से जटिल है। उन्होंने कहा, ‘भारत में कारोबार मुख्य तौर पर एकल स्वामित्व वाले हैं और इनमें कुछ सीमित साझेदारियां हैं।

लिहाजा व्यक्तिगत कारोबारी स्वामित्व में व्यक्तिगत और व्यावसायिक गतिविधियों के बही खाते के बीच विभाजन की सीमा धुंधली सी है।’

First Published - December 23, 2025 | 10:43 PM IST

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