ब्रिटेन अपने देश में आने वाली वस्तुओं पर कार्बन टैक्स लगाने की तैयारी कर रहा है। मगर भारत उसके साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) में अपने निर्यातकों को राहत दिलाने के लिए हरमुमकिन कोशिश कर रहा है। मामले की जानकारी रखने वालों ने बताया कि भारत समझौते में कुछ ऐसे प्रावधान शामिल कराना चाहता है, जिनसे उसके निर्यातकों को राहत मिल सके।
एक व्यक्ति ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हम कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) पर यूरोपीय संघ और ब्रिटेन से बातचीत कर रहे हैं। इस मुद्दे पर काफी बातचीत (एफटीए वार्ता के दौरान भी) हुई है। हमने कुछ ऐसे प्रावधान शामिल करने के लिए कहा है, जिनसे निर्यातकों को कुछ राहत मिल सके।’
समझौते को फिलहाल अंतिम रूप दिया जा रहा है। सीबीएएम को आम तौर पर कार्बन कर कहा जाता है। ब्रिटेन जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी मुहिम के तहत अगले दो-तीन वर्षों में इसे लागू करने की योजना बना रहा है। यह कर लागू होते ही निर्यातकों को ब्रिटेन के लिए वस्तु निर्यात करते समय कार्बन कर चुकाना पड़ेगा। कार्बन कर का हिसाब उत्पाद द्वारा होने वाले कार्बन उत्सर्जन से लगाया जाएगा। इस प्रकार निर्यातकों को अधिक कर भरना पड़ सकता है। कार्बन कर लागू करने के लिए ब्रिटेन की सरकार ने मार्च में 12 हफ्ते का परामर्श शुरू किया था ताकि कार्बन लीकेज के जोखिम को दूर किया जा सके।
हाल में नई दिल्ली के एक थिंक टैंक ने कहा था कि भारत को ब्रिटेन के प्रस्तावित कार्बन कर से सावधान रहना चाहिए और उसके असर से निपटने के लिए एफटीए में उपयुक्त प्रावधान शामिल करना चाहिए। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कार्बन कर लागू होते ही ब्रिटेन के उत्पादन शुल्क के बगैर ही भारतीय बाजार में पहुंचने लगेंगे, लेकिन भारतीय उत्पादों को ब्रिटेन के बाजार तक पहुंचाने के लिए 20 से 35 फीसदी तक कार्बन कर चुकाना पड़ सकता है।’
भारत भी ब्रिटेन के प्रस्तावित कार्बन कर पर चिंतित है और उसे लगता है कि इस प्रकार के कर लगने से उसके व्यापार भागीदारों के साथ बाजार पहुंच में समस्या पैदा हो सकती है। भारत का कहना है कि इसके जरिये पर्यावरण संबंधी मुद्दों को व्यापार मामलों में खींचने की कोशिश की जा रही है। ब्रिटेन एकमात्र ऐसा देश नहीं है जो कार्बन लीकेज से निपटने के उपायों को लागू करने की योजना बना रहा है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में दोनों देश एफटीए को अंतिम रूप देना चाहते थे। मगर इस प्रस्तावित समझौते पर मतभेद दूर करने के लिए दोनों देशों को कुछ और समय चाहिए। डिजिटल व्यापार, श्रम आदि गैर-व्यापारिक मुद्दों सहित तमाम मामलों में सहमति बन चुकी है। मगर उत्पादों के मूल स्थान जैसे मुद्दों पर चुनौतियां बरकरार हैं।