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जलवायु जोखिम और सब्सिडी की चुनौती से जूझ रहा है भारत का चावल उत्पादन: कृषि अर्थशास्त्रियों का निष्कर्ष

अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में पेश शोध के अनुसार, जलवायु जोखिम और सब्सिडी नीतियों से भारत में चावल उत्पादन पर गंभीर प्रभाव।

Last Updated- August 07, 2024 | 10:10 PM IST
The world is suffering due to boiling of rice

भारत में चावल उत्पादन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दिल्ली में आयोजित कृषि अर्थशास्त्रियों की 32वीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में जारी किए गए एक शोध पत्र के हवाले से बताया गया कि असम, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्य जलवायु जोखिमों के सबसे संवेदनशील माने जाते हैं जबकि बिहार,उत्तराखंड और झारखंड जैसे राज्यों में इसका कम जोखिम है।

उसी सम्मेलन में प्रस्तुत एक अन्य पत्र में कहा गया है कि देश के प्रमुख धान उत्पादक राज्य पंजाब में अगर बिजली कीमतें वास्तविक लागत तक बढ़ाई गईं तो किसानों द्वारा मोटर पंप से जल की निकासी में 59 फीसदी की कमी आ सकती है। पंजाब में फिलहाल मुफ्त बिजली योजना लागू है।

मगर धान की औसत पैदावार में गिरावट केवल 11 फीसदी तक सीमित है। पंजाब जैसे कुछ राज्यों में कृषि बिजली पर भारी सब्सिडी दी जाती है, जिससे भूजल संसाधनों के अत्यधिक उपयोग पर चिंताएं खड़ी हो रही हैं। पत्र में कहा गया है, ‘सब्सिडी का बोझ सरकार के बिजली बोर्ड द्वारा वहन किया जाता है और इस प्रकार इन नीतियों से ऊर्जा और जल संसाधनों की बरबादी बढ़ती है।’

सम्मेलन में प्रस्तुत किए एक और पत्र में निष्कर्ष निकाला गया कि चावल, गेहूं, और संयुक्त फसल प्रणालियों की कुल फैक्टर उत्पादकता (टीएफपी) बीते पांच दशकों में (सन् 1970-71 से 2019-20) गंगा के मैदानी इलाकों में स्थिर हो गई है और इसमें गिरावट आई है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी की निशि यादव ने राज्य वार जलवायु जोखिम और चावल उत्पादकता पर पत्र पेश किया।

यह भारत के 26 प्रमुख राज्यों के जलवायु सूचकांक पर आधारित था, जो विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों के अनुरूप है। अध्ययन समिति डेटा रिग्रेशन विश्लेषण के जरिये देश के राज्यों में जलवायु जोखिम और चावल उत्पादकता के बीच संबंधों का भी पता लगाया।

पत्र में निष्कर्ष निकाला गया, ‘रिग्रेशन विश्लेषण के नतीजों से जलवायु जोखिम और चावल की उत्पादकता के बीच नकारात्मक संबंधों का पता चला। यह दर्शाता है कि जलवायु जोखिम बढ़ने से चावल की उत्पादकता और देश की खाद्य सुरक्षा को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। चूंकि, भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है इसलिए जलवायु जोखिम के वैश्विक प्रभाव हो सकते हैं।’

First Published - August 7, 2024 | 9:35 PM IST

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