विश्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट में भारत को विश्व में सर्वाधिक समानता देशों में शामिल किया गया है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह असमानता के बारे में सीमित दृष्टिकोण हो सकता है और व्यापक आंकड़े कुछ अलग कहानी बयान कर सकते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत का गिनी सूचकांक ( या कोफिशिएंट/रेशियो) 2022-23 में 25.5 है, जिसके आधार पर असमानता मापी जाती है। इसके मुताबिक स्लोवाक गणराज्य, स्लोवेनिया और बेलारूस के बाद भारत दुनिया का चौथा सबसे समानता वाला देश है।
गिनी सूचकांक 0 से 100 के बीच होता है। शून्य अंक का मतलब पूरी तरह समानता और 100 का मतलब चरम असमानता है, जिसमें एक व्यक्ति के पास सभी आमदनी या संपदा है या वह सभी खपत का उपभोग करता है।
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक इस तरह के मापन काफी हद तक मापन की पद्धति पर निर्भर होते हैं। शीर्ष के 1 प्रतिशत लोगों की तुलना नीचे की 50 प्रतिशत आबादी से करने पर भारत में बहुत असमानता नजर आ सकती है। योजना आयोग के पूर्व सचिव और सेवानिवृत्त अधिकारी एनसी सक्सेना ने कहा, ‘गिनी कोफिशिएंट ऐसा है, जिसमें मध्य वर्ग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह साफ करना आवश्यक है कि पिछले कुछ वर्षों में असमानता बढ़ी है। पिछले 30 साल में नीचे के 50 प्रतिशत लोगों की आमदनी दोगुनी हुई है, लेकिन शीर्ष 1 प्रतिशत लोगों की आमदनी 20 से 30 गुना बढ़ गई है।’ सक्सेना ने कहा कि अगर शीर्ष के 2 प्रतिशत लोगों की कमाई नमूने से बाहर कर दी जाए तो असमानता बहुत मामूली दिखेगी। अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि इस रिपोर्ट में आमदनी के आंकड़ों की जगह खपत व्यय के आंकड़ों को लिया गया है।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर राम कुमार ने कहा, ‘दरअसल आप बड़े पैमाने पर गरीब वर्ग का नमूना ले रहे हैं, और इसलिए आपको अपेक्षाकृत कम गिनी रेशियो मिलता है। भारत में किए गए ग्रामीण अध्ययनों से पता चलता है कि अगर हम भूमि स्वामित्व, आय और अन्य परिसंपत्तियों को ध्यान में रखते हैं तो गिनी रेशियो 80 के स्तर पर पहुंच जाएगा। असमानता का यह उच्च स्तर लैटिन अमेरिकी देशों के स्तर पर होगा।’
अर्थशास्त्री प्रणव सेन ने भी इस चिंता को दोहराया और कहा कि भारत में शीर्ष 5 से 10 प्रतिशत लोगों की आमदनी साफ नहीं हो पाती है। सेन ने कहा, ‘निचले वर्ग के हमारे आंकड़े बहुत साफ होते हैं, लेकिन ऊपर के वर्ग की प्रतिक्रिया नहीं मिल पाती है। इस हिसाब से हमारी असमानता कम आंकी जाएगी।’
बहरहाल विश्व बैंक ने अप्रैल में जारी गरीबी और समानता संबंधी संक्षिप्त रिपोर्ट में भारत में गरीबी में कमी लाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति का उल्लेख किया था।