इस बात की बड़ी कम संभावना है कि भारत वर्तमान वित्त वर्ष में सरकारी कंपनियों की नियोजित बिक्री (planned sales) से अपने लक्ष्य की आधी आय भी जुटाने में सफल रहेगा। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश लगातार पांचवें साल विनिवेश लक्ष्य (divestment targets) से चूक जाएगा और ऐसा इसलिए होगा क्योंकि चुनावों के कारण सरकार की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं।
गौरतलब है कि देश में 2024 का लोकसभा चुनाव होने वाला है। इसको लेकर महज कुछ ही महीने बचे हुए हैं। इस बीच, दो सरकारी सूत्रों ने रॉयटर्स को बताया कि सरकार 2023-24 में अपने डिसइन्वेस्टमेंट टॉरगेट से 30,000 करोड़ रुपये (3.60 बिलियन डॉलर) पीछे रह सकती है। भारत ने मार्च, 2024 को समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष के लिए विनिवेश से 51,000 करोड़ रुपये की आय का लक्ष्य रखा था।
वित्त वर्ष 23-24 में, 51,000 करोड़ रुपये के लक्ष्य में से लगभग 30,000 करोड़ रुपये आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) में हिस्सेदारी की बिक्री और राज्य के स्वामित्व वाली एनएमडीसी स्टील (NMDC Steel) के निजीकरण यानी प्राइवेटाइजेशन के माध्यम से मिलने की उम्मीद थी।
हालांकि, बैंकिंग रेगुलेटर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा IDBI के लिए इच्छुक खरीदारों की जांच में देरी ने बिक्री की समयसीमा को 2024 के लोकसभा चुनावों से आगे बढ़ा दिया है।
राज्य के विधानसभा चुनावों और अगली गर्मियों में लोकसभा चुनावों की वजह से NMDC Steel की बिक्री इस साल पूरी नहीं होगी। कंपनी का मुख्य प्लांट खनिज समृद्ध राज्य छत्तीसगढ़ में है और यहां यूनियनों ने बिक्री का विरोध किया है।
हालांकि भारत भले ही चालू वित्त वर्ष में यह अभी भी कुछ छोटे विनिवेश हासिल कर सकता है, लेकिन यह अभी भी अपने कुल लक्ष्य के आधे से काफी कम होगा।
मोदी सरकार 2019 के बाद से स्टील, फर्टिलाइजर और तेल व गैस सहित कई क्षेत्रों में कंपनियों को बेचने की योजना पर अमल नहीं कर पाई है, जिसकी मुख्य वजह जमीन के मालिकों और यूनियन के विरोध जैसे मुद्दे हैं।
केंद्र सरकार में रहे पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा, ‘सरकार के इस कार्यकाल में कोई निजीकरण नहीं होगा।’ निजीकरण नीति में राजनीतिक रुचि की कमी के कारण अगले छह महीनों के लिए विनिवेश और निजीकरण को भूल जाइए।’
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अब तक सरकार को हिस्सेदारी बिक्री से 8,000 करोड़ रुपये मिले हैं। पहले सूत्र ने रॉयटर्स को बताया कि, चालू वर्ष के लक्ष्य में कुछ कमी की भरपाई सरकारी कंपनियों द्वारा सरकार को दिए जाने वाले उच्च लाभांश (हायर डिविडेंड) से हो जाएगी।
मजबूत मुनाफे और स्थिर मांग की वजह से ये कंपनियां ज्यादा डिविडेंड दे रही हैं।
सरकार को अपने 43,000 करोड़ रुपये के डिविडेंड टॉरगेट को पार करने की उम्मीद है और अब तक सरकारी कंपनियों से 20,300 करोड़ रुपये मिल गए हैं।
बार्कलेज़ इन्वेस्टमेंट बैंक के अर्थशास्त्री राहुल बाजोरिया ने कहा, ‘जब तक सरकार अपने राजकोषीय लक्ष्यों (fiscal targets) को पूरा कर रही है और कोई कमी नहीं है, तब तक विनिवेश लक्ष्य चूक जाना ठीक है।’
एक तीसरे सरकारी अधिकारी ने कहा कि निजीकरण में देरी से सरकार के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 5.9% के राजकोषीय घाटे (fiscal deficit) के लक्ष्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
इस साल भारतीय बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बावजूद, सरकार स्टॉक एक्सचेंजों के माध्यम से बिक्री के लिए तथाकथित ऑफर फॉर सेल के जरिये केवल अपनी पांच कंपनियों में अल्पमत हिस्सेदारी (minority stakes) बेचने में कामयाब रही है। सरकारी संस्थाओं का इंडेक्स 16 नवंबर को 13,242 के ऑल टाइम हाई लेवल पर पहुंच गया।