प्रस्तावित भारत-यूरोप मुक्त व्यापार एसोसिएशन (ईएफटीए) के लीक हुए दस्तावेजों से पता चलता है कि इसकी बौद्धिक संपदा सिफारिशों से भारत में सस्ती व जीवन रक्षक जेनेरिक दवाओं के उत्पादन में बाधा खड़ी हो सकती है। ईएफटीए में चार देश आइसलैंड, स्विट्जरलैंड, नार्वे और लिकस्टनटाइन हैं।
अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में चिकित्सा के मानवतावादी संगठन डॉक्टर विदाउट बॉर्ड्स, मेडिसंस सैन्स फ्रंटियर्स (एमएसएफ), पब्लिक आई और दिल्ली नेटवर्क ऑफ पॉजिटिव पीपुल ने अंतरराष्ट्रीय ट्रेड पोर्टल बाइलेटरल डॉट ओआरजी पर बौद्धिक संपदा के चैप्टर पर मसौदा पेश किया है। इसमें प्रमुख तौर पर ‘डेटा विशिष्टता’ को शामिल करने के प्रस्ताव पर चिंता जताई गई है।
इन सिफारिशों के कारण नई दवाओं के जेनेरिक वर्जन या निश्चित अवधि के लिए नए फार्मूले का पंजीकरण देर से हो सकता है। यह देरी किसी दवा के लिए पेटेंट नहीं होने की दशा में भी हो सकती है। एमएसएफ के आधिकारिक बयान के अनुसार, ‘इसके परिणामस्वरूप जेनेरिक निर्माताओं को विशिष्ट अवधि तक इंतजार करने की जरूरत होगी या महंगे क्लीनिकल ट्रायल को फिर से करना होगा। नई दवा का पंजीकरण होने की स्थिति में डेटा विशिष्टता अनिवार्य लाइसेंस को रोक सकता है जिसे कम मूल्य पर जेनेरिक दवाओं का उत्पादन करने के लिए भी दिया जा सकता है।’
यह तय है कि यह प्रारूप अंतिम नहीं होगा। इस व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के लिए दोनों पक्षों के बीच बातचीत जारी है। भारत एक दशक से अधिक समय से घरेलू जेनेरिक दवा उद्योग के हितों की सुरक्षा के लिए मुक्त व्यापार समझौते में डेटा विशिष्टता के उपबंधों को शामिल करने के खिलाफ रहा है।
डेटा विशिष्टता की बदौलत आविष्कारक कंपनियों के तकनीकी डेटा की सुरक्षा होती है और उनके प्रतिद्वंद्वियों को आविष्कारक कंपनियों के ‘विशिष्ट अधिकारों’ या सीमित अवधि तक कम मूल्य की जेनेरिक दवा का उत्पादन करने से रोकता है। दिल्ली नेटवर्क ऑफ पॉजिटिव पीपुल के संस्थापक लून गैंगटे के अनुसार डेटा विशिष्टता से भारत में बहुराष्ट्रीय दवा उद्योग के एकाधिकार का विस्तार होगा और उनका लाभ बढ़ेगा।
इससे भारत में जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता बाधित होगी। एमएसएफ साउथ एशिया के एक्जीक्यूटिव निदेशक फरहत मंटू ने कहा, ‘एमएसएफ ने प्रधानमंत्री को भेजे पत्र के जरिये भारत सरकार से अपील की है कि बौद्धिक संपदा के उपबंधों को ईएफटीए बातचीत में शामिल करने से सीधे तौर पर मना किया जाए।
इन उपबंधों से भारत में सस्ती दवा तक पहुंच को नुकसान पहुंचेगा। यदि बौद्धिक संपदा के इन उपबंधों को शामिल किया जाता है तो भारत में दवा तक पहुंच व मरीजों के स्वास्थ्य पर बेहद प्रभाव पड़ेगा। हालांकि इससे परे भी यह प्रभाव पड़ेगा।’
भारत की पहले भी जापान, यूनाइटिंड किंगडम और कारोबारी ब्लॉक जैसे ईयू से मुक्त व्यापार समझौते की चर्चा के दौरान बौद्धिक संपदा अधिकार विवादित मुद्दा रहा था।