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India @77: भारत में निचले तबके तक विकास का लाभ पहुंचाना चुनौती

इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस की थीम ‘विकसित भारत’ के साथ ही भारत 2047 तक विकसित देश बनने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ने की कोशिश में है।

Last Updated- August 15, 2024 | 9:06 AM IST
Economy: Steps towards normalization अर्थव्यवस्था: सामान्यीकरण की ओर कदम

India’s 78th Independence Day: देश आज 15 अगस्त को 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है और पूरे देश में केसरिया, सफेद और हरे रंग के तिरंगे झंडे लहराए जा रहे हैं। इस वर्ष की थीम ‘विकसित भारत’ के साथ ही भारत 2047 तक विकसित देश बनने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ने की कोशिश में है। भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में अच्छी प्रगति दिखाई है।

भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 3.5 लाख करोड़ डॉलर के करीब पहुंच चुका है जो इसे विश्व स्तर पर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाता है। 1960 के दशक के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था 1 लाख करोड़ डॉलर के नीचे थी और विश्व बैंक के आंकड़े के मुताबिक यह 8वें-9वें पायदान पर था।

अर्थव्यवस्था में क्षेत्रवार योगदान की बात करें तो इसमें भी कुछ दशकों के दौरान बदलाव आया है। वर्ष 1963-64 में कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों का सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) 43.4 फीसदी था। इसमें उद्योग, विनिर्माण, निर्माण, बिजली, गैस एवं जल आपूर्ति का योगदान महज 22.2 फीसदी था, जबकि व्यापार, होटल, वित्त एवं सार्वजनिक प्रशासन क्षेत्र जैसी सेवाओं का योगदान 40.9 फीसदी था।

वर्ष 2023-24 की बात करें तो इसमें कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों की हिस्सेदारी घटकर 17.7 फीसदी हो गई जबकि उद्योग की हिस्सेदारी बढ़कर जीवीए का एक-चौथाई हो गई है और सेवा क्षेत्र 54.7 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ अपना दबदबा कायम कर चुका है। यह दुनिया भर में देखे जा रहे रुझान के अनुरूप ही है जब देशों का विकास होता है तो उद्योगों विशेषतौर पर विनिर्माण क्षेत्र की ओर बढ़ते हैं, हालांकि इस बीच भारत कुछ चूक गया था।

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2024 में भारत की आबादी 1.5 अरब के करीब पहुंच गई है लेकिन यहां औसत सालाना वृद्धि दर, प्रतिस्थापन स्तर के नीचे आ गई है। वर्ष 2014 और 2024 के बीच आबादी 1 प्रतिशत वार्षिक चक्रवृद्धि दर (CAGR) से बढ़ी जो वर्ष 1954 और 1964 के बीच 2.4 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ी थी।

प्रतिस्थापन दर 2.1 फीसदी वृद्धि है और मौजूदा स्तर पर आबादी को स्थिर करने की इसकी जरूरत है लेकिन इन नतीजों के नजर आने में अभी कुछ साल लगेंगे। लोगों की माध्य आयु भी 1950 में 20 वर्ष से बढ़कर 2024 में 28 वर्ष हो गई है। आर्थिक वृद्धि के बावजूद भारत को प्रति व्यक्ति आय के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। विश्व बैंक के ताजा डेटा के मुताबिक भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी वर्ष 2023 में 2,484 डॉलर थी। इस वक्त इसमें हम वैश्विक स्तर के लिहाज से 141वें पायदान पर हैं।

देश की आबादी के शीर्ष 1 फीसदी वर्ग और निचले 50 फीसदी के बीच आमदनी में अंतर गहराता जा रहा है और यह चिंता की बात है। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के नितिन कुमार भारती, हार्वर्ड केनेडी स्कूल के लुकास चांसेल, पेरिस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के थॉमस पिकेटी और अनमोल सोमंची द्वारा लिखी वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब की ‘भारत में आय और संपत्ति असमानता, 1922-2023: अरबपति राज का उदय’ शीर्षक वाली रिपोर्ट के मुताबिक शीर्ष 1 फीसदी आबादी का राष्ट्रीय आय में योगदान 22.6 फीसदी है जो 1952 में महज11.8 फीसदी की था। वहीं दूसरी ओर समान अवधि में निचले 50 फीसदी की हिस्सेदारी 20.7 फीसदी से घटकर 15 फीसदी तक हो गई।

First Published - August 15, 2024 | 6:37 AM IST

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