भले ही खुदरा महंगाई मई में 75 महीने के निचले स्तर 2.8 फीसदी पर पहुंच गई मगर वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण सोने की बढ़ी कीमतों से मुख्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई लगातार चौथे महीने बढ़ी है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अपने नोट में यह जानकारी दी है।
उसने अपने नोट में कहा, ‘खाद्य मुद्रास्फीति की गिरावट ने खुदरा मुद्रास्फीति को कम किया है, लेकिन मुख्य मुद्रास्फीति बढ़ रही है। हालांकि, बढ़ती हुई मुख्य मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था में घरेलू मांग और उसके नतीजतन मूल्य दबाव को मजबूत करने का संकेत है, लेकिन हालिया वृद्धि घरेलू कारकों के बजाय वैश्विक आर्थिक अस्थिरता से जुड़ा है।’ पिछले साल मई से लेकर इस साल मई तक मुख्य मुद्रास्फीति 111 आधार अंक बढ़कर 4.2 फीसदी हो गई है।
रेटिंग एजेंसी ने अपने नोट में कहा है कि मुख्य सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति के अंतर्गत अधिकांश उप-श्रेणियों में कीमतों कम हुई हैं, लेकिन सोना, मोबाइल टैरिफ, यात्रा और परिवहन, प्रसाधन सामग्री और चांदी जैसी पांच श्रेणियों में इसके विपरीत महंगाई बढ़ी है। नोट में कहा गया है, ‘सोने में सबसे तेज महंगाई देखी गई है। वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता बढ़ने से दुनिया भर में सुरक्षित निवेश के लिए सोने की मांग बढ़ने से वैश्विक कीमतों में उछाल आया है।’
वित्त वर्ष 2025 के दौरान सोने की मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2024 में 15.1 फीसदी के मुकाबले औसतन 24.7 फीसदी तक बढ़ गई और मुख्य मुद्रास्फीति सूचकांक में हल्के वजन (2.3 फीसदी) के बावजूद मई 2025 को समाप्त 12 महीनों में सोने ने 17 फीसदी की वृद्धि में योगदान दिया। नोट में कहा गया है कि मुख्य मुद्रास्फीति सूचकांक से बाहर रखे जाने वाले खाद्य और ईंधन की तरह कीमतों पर घरेलू मांग के दबाव के वास्तविक प्रभाव का आकलन करते समय सोने को भी इससे बाहर रखा जा सकता है। खासतौर पर जब दुनिया भर में आर्थिक अनिश्चितता काफी बढ़ी हो और इससे सोने की कीमतें बढ़ने लगती हैं।
नोट में कहा गया है, ‘हालांकि भारतीय परिवारों में आभूषणों की मांग अधिक है, लेकिन वैश्विक केंद्रीय बैंकों, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) की ओर से सोने की वैश्विक निवेश मांग के कारण इसकी कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। वैश्विक अनिश्चितता के दौर में, मुख्य मुद्रास्फीति के विश्लेषण से सोने की कीमतों को बाहर करके इसकी भूमिका पर जोर न देना उपयोगी हो
सकता है।’ अमेरिकी फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ इंगलैंड, यूरोपीय सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ जापान जैसे प्रमुख केंद्रीय बैंक भी अपनी मुख्य मुद्रास्फीति की गणना में सोने (आभूषण के रूप में) को शामिल करते हैं। मगर भारत के सूचकांक की तुलना में इसका महत्त्व काफी कम है, जिससे उनकी मुख्य मुद्रास्फीति उपायों पर इसका प्रभाव सीमित हो जाता है।