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‘कोविड की मार पर मुफ्त खाद्य का मरहम’

Last Updated- December 11, 2022 | 8:11 PM IST

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक कार्य पत्र में पाया गया है कि सरकार के खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम ने कोविड की वजह से लगाए लॉकडाउन की गरीबों पर मार को कम करने का काम किया है। यह कार्यक्रम वर्ष 2013 में अपनी शुरुआत के बाद महामारी से प्रभावित 2020-21 को छोड़कर अन्य वर्षों में गरीबी घटाने में सफल रहा है।
इस पत्र में प्यू रिसर्च सेंटर के उस अध्ययन को खारिज किया गया है, जिसमें कहा गया था कि कोविड ने वर्ष 2020 में 7.5 करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया। आईएमएफ के कार्य पत्र में कहा गया है कि प्यू का अध्ययन चलन से बाहर हो चुकी एकसमान संदर्भ अवधि (यूआरपी) पर आधारित था।
इस अध्ययन के एक लेखक- पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद विरमानी ने कहा कि 2020-21 के दौरान 1.5 से 2.5 करोड़ लोग गरीबी में आए गए थे, लेकिन उन्हें 2020-21 में 80 करोड़ लोगों को खाद्य के मुफ्त वितरण ने उबार लिया।  इस पत्र में पाया गया है कि अगर सरकार की तरफ से हस्तांतरित खाद्यान्न को शामिल नहीं करते हैं तो भारत में अत्यंत गरीबी यानी क्रय शक्ति तुलना (पीपीपी) के आधार पर 1.9 डॉलर से कम कम कमाने वाले लोगों की संख्या 2020-21 में बढ़कर 4.1 फीसदी हो गई, जो पिछले वर्ष में 2.2 फीसदी थी।  डॉलर का पीपीपी मूल्य बाजार मूल्य से अलग है। इस समय डॉलर का मूल्य 20.65 रुपये है, जो 2011 में 15.55 रुपये था।    
हालांकि अगर खाद्य हस्तांतरण को शामिल करते हैं तो इस अवधि में अति गरीबी 1.3 फीसदी से मामूली बढ़कर 1.42 फीसदी रही।  
आईएमएफ ने साफ किया कि इस पत्र में व्यक्त विचार लेखकों-सुरजीत भल्ला और विरमानी एवं करण भसीन के हैं और ये इस बहुपक्षीय एजेंसी का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। सुरजीत भल्ला आईएमएफ के भारत में कार्यकारी निदेशक हैं और विरमानी एवं करण भसीन नीति शोधार्थी हैं। गरीबी रेखा का मतलब उन लोगों से है, जिनकी आमदनी पीपीपी आधार पर 3.2 डॉलर से कम है। अगर खाद्य हस्तांतरण को शामिल नहीं करते हैं तो उनकी तादाद 23.3 फीसदी से बढ़कर 31 फीसदी पर पहुंच गई और अगर 2020-21 के दौरान खाद्य हस्तांतरण को शामिल करते हैं तो दर पिछले साल के 19 फीसदी से बढ़कर 22.8 फीसदी हो गई। इस पत्र में आकलन के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण का इस्तेमाल किया गया है।  हालांकि यह समस्या यह थी कि ऐसा पिछला सर्वेक्षण 2011-12 में आया था। वर्ष 2017-18 के ताजा सर्वेक्षण को सरकार ने खारिज कर दिया। इन लेखकों ने गरीबी के आंकड़ों पर पहुंचने के लिए वास्तविक राज्य सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) का इस्तेमाल किया।
हालांकि पत्र में वृद्धि पर पहुंचने के लिए एक वैकल्पिक तरीके के रूप में उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण पर वास्तविक निजी अंतिम उपभोक्ता व्यय वृद्धि का भी इस्तेमाल किया गया। इस पद्धति का इस्तेमाल करते हुए यह पाया गया कि अगर खाद्य हस्तांतरण को शामिल नहीं करते हैं तो कोविड प्रभावित 2020-21 के दौरान अति गरीबी बढ़कर 2.5 फीसदी हो गई, जो पिछले साल 1.4 फीसदी थी।
अगर हस्तांतरण को शामिल करते हैं तो इस अवधि में अति गरीबी महज 0.76 फीसदी से बढ़कर 0.86 फीसदी हुई। अगर खाद्य हस्तांतरण को शामिल नहीं करते हैं तो 3.2 डॉलर से कम पीपीपी आधार पर गरीबी बढ़कर 26.5 फीसदी हो गई, जो पिछले साल 18.5 फीसदी थी। अगर हस्तांतरण को शामिल करते हैं तो यह इस अवधि में 14.8 फीसदी से बढ़कर 18.1 फीसदी हो गई। हालांकि विरमानी ने कहा कि वास्तविक एसजीडीपी वृद्धि की पद्धति पर आधारित गरीबी के अनुमान ज्यादा सटीक हैं। यह अध्ययन प्यू रिसर्च सेंटर के अध्ययन से बिल्कुल विपरीत है। 

First Published - April 6, 2022 | 11:18 PM IST

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