फरवरी में होने जा रहे विश्व व्यापार संगठन (WTO) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC13) में कृषि संबंधी मसलों पर जुड़ी बातचीत के दौरान भारत खाद्यान्न के सार्वजनिक भंडारण के स्थायी समाधान की अपनी मांग को प्राथमिकता देगा और इसमें तेजी लाए जाने पर जोर देगा।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘अनाज का सार्वजनिक भंडारण सबसे पुरानी लंबित मांग है। बाली के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (2013 में) सदस्य देशों ने वादे किए थे और उसके बाद के सम्मेलनों में भी इसका अनुमोदन किया गया। इसके बगैर हम कृषि संबंधी किसी अन्य मसले से जुड़े किसी फैसले में हिस्सा नहीं लेंगे, जब तक इस मामले का समाधान नहीं हो जाता। यह हमारा पहला सवाल है।’
भारत 2013 के बाली शांति प्रावधानों की तुलना में बढ़ी हुई शर्तों पर ज्यादा सार्वजनिक भंडारण चाहता है। सार्वजनिक भंडारण योजना एक नीतिगत साधन है, जिसके माध्यम से सरकार खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की कवायद करती है और भूख से जूझ रहे लाखों लोगों को सुरक्षा प्रदान करती है।
इस मसले पर भारत को डब्ल्यूटीओ में अफ्रीका सहित विकासशील देशों का समर्थन मिल रहा है।
इस मसले का स्थायी समाधान जरूरी है क्योंकि WTO के सदस्य देश भारत के खाद्यान्न खासकर चावल पर दिए जा रहे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का विरोध कर रहे हैं, जिनमें कुछ विकसित देश भी शामिल हैं। उनका कहना है कि सब्सिडी ने व्यापार मानकों के तहत सुझाई गई सीमा का 3 बार उल्लंघन किया है।
कुछ विकसित देशों का तर्क है कि सब्सिडी वाली दरों पर सार्वजनिक खरीद और भंडारण से वैश्विक कृषि कारोबार प्रभावित होता है। वहीं भारत का कहना है कि गरीबों व सीमांत किसानों के हितों की रक्षा के लिए यह जरूरी है।
उपरोक्त उल्लिखित अधिकारी ने यह भी कहा कि विकसित देशों ने गेहूं जैसे जिंसों पर भारत द्वारा लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों पर भी चर्चा की मांग की है।