FMCG मेकर्स (दैनिक उपयोग वाली वस्तुओं के निर्माताओं) ने अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के प्रदर्शन के बाद आय अनुमानों में कमी दर्ज की है। कमजोर बिक्री प्रदर्शन और मार्जिन पर दबाव की वजह से उनके आगामी अनुमानों में कमी दर्ज की गई है। कई कंपनियों के लिए बिक्री वृद्धि घट गई या फिर यह निचले एक अंक में रही।
इस क्षेत्र की कंपनियों के लिए 9-11 प्रतिशत की राजस्व वृद्धि काफी हद तक कीमत वृद्धि की वजह से संभव हुई थी।
IIFL Research के अनुसार, सकल मार्जिन भी कच्चे माल की ऊंची लागत की वजह से लगातार13वीं तिमाही में घट गया।
बिक्री पर दबाव बरकरार रहने के मुख्य कारणों में से एक कमजोर ग्रामीण मांग है। FMCG क्षेत्र की बिक्री में 40 प्रतिशत योगदान देने वाले ग्रामीण सेगमेंट ने लगातार सात तिमाहियों में तिमाही बिक्री वृद्धि मानकों पर शहरी बाजार की तुलना में कमजोर प्रदर्शन किया है। यदि मौजूदा रुझान बरकरार रहा, तो हालात में बदलाव आ सकता है।
रिटेल इंटेलीजेंस प्लेटफॉर्म बिजॉम के अनुसार, FMCG बिक्री मूल्य संदर्भ में फरवरी के दौरान जनवरी की तुलना में 28.6 प्रतिशत तक बढ़ी। इसमें, ग्रामीण बिक्री 35 प्रतिशत तक बढ़ी, जबकि शहरी बिक्री में 14.9 प्रतिशत का इजाफा हुआ। 75 लाख आउटलेटों पर उपभोक्ता उत्पाद बिक्री पर नजर रखने वाले इस प्लेटफॉर्म के अनुसार, एक साल पहले की अवधि के मुकाबले फरवरी में ग्रामीण बिक्री 12.4 प्रतिशत की दर से बढ़ी, जबकि शहरी बिक्री में 5.5 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया।
बीओबी कैपिटल मार्केट्स के विक्रांत कश्यप का मानना है कि लंबे समय तक सुस्ती के बाद ग्रामीण हालात में सुधार के संकेत है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम योजना, मुफ्त अनाज, न्यूनतम समर्थन फसल मूल्य में वृद्धि, प्रत्यक्ष लाभ स्थानांतरण, और दूरदराज इलाकों में बुनियादी ढांचा विकास के लिए ज्यादा बजटीय आवंटन जैसे नीतिगत उपाय ग्रामीण हालात में सुधार के लिए अच्छे संकेत हैं। उनका कहना है कि इसके अलावा, मुद्रास्फीति से राहत और शीत सत्र में मजबूत बुआई से इन बाजारों में खपत को बढ़ावा मिल सकता है।
ब्रोकरेज ने ग्रामीण भारत में अपने मजबूत नेटवर्क की वजह से ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज और नेस्ले इंडिया को पसंद किया है, क्योंकि इन कंपनियों में बाजार भागीदारी वृद्धि हासिल करने और चुनौतीपूर्ण वृहद आर्थिक परिवेश में मजबूती से डटने की क्षमता है।
कच्चे तेल की कीमतों और पाम तेल जैसी अन्य जिंसों में भारी गिरावट से उपभोक्ता कंपनियों को लाभ उठाने और बिक्री बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट की सबसे बड़ी लाभार्थी पेंट कंपनियां (एशियन पेंट्स, बर्जर पेंट्स समेत), एधेसिव निर्माता (पिडिलाइट) और साबुन निर्माता (हिंदुस्तान यूनिलीवर, गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स) हैं।
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से पैकेजिंग मैटेरियल की लागत भी नीचे आई है, जिसका उपभोक्ता कंपनियों की कच्चे माल की लात में करीब 15 प्रतिशत योगदान है।
IIFL Research में विश्लेषक पर्सी पंथकी का मानना है कि मार्जिन में सुधार बना रहेगा और मांग में सुधार आने से बिक्री वृद्धि मजबूत होगी, क्योंकि मुद्रास्फीति नरम पड़ी है। ब्रोकरेज का मानना है कि कंपनियों द्वारा उत्पादन लागत में नरमी का लाभ उपभोक्ताओं को भी मुहैया कराए जाने की संभावना है, जिससे कि आगामी तिमाहियों में बिक्री में सुधार लाया जा सके।
हालांकि कुछ ब्रोकर इस क्षेत्र पर सतर्क नजरिया अपनाए हुए हैं।
सिस्टमैटिक्स रिसर्च का मानना है कि असंगठित क्षेत्र की कंपनियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा स्टैपल कंपनियों, (खासकर छोटे और मझोले आकार की) के लिए अल्पावधि जोखिम हो सकता है। ब्रोकरेज के विश्लेषक हिमांशु नय्यर का मानना हैकि मार्जिन में धीरे धीरे सुधार आएगा। उनका मानना है कि ऊंचे विपणन और नई पेशकशों से संबंधित खर्च का कुछ हद तक सकल मार्जिन सुधार पर प्रभाव पड़ सकता है।
इस क्षेत्र के महंगे मूल्यांकन और ऊंचे आय अनुमानों की वजह से बीएनपी पारिबा इस शेयर पर अंडरवेट बनी हुई है। बीएनपी पारिबा में भारतीय इक्विटी रिसर्च के प्रमुख कुणाल वोरा का कहना है, ‘हालांकि हमारा मानना है कि यह उद्योग कच्चे माल की लागत में नरमी और ग्रामीण सुधार के संकेतों के साथ 2023-24 में तेजी दर्ज करने के लिए तैयार है, लेकिन विज्ञापन खर्च में वृद्धि की वजह से मार्जिन को लेकर जोखिम बना हुआ है। ’
हालांकि ब्रिटानिया विभिन्न ब्रोकरों का पसंदीदा शेयर है, लेकिन निवेशक एचयूएल, इमामी, डाबर और आईटीसी पर भी विचार कर सकते हैं क्योंकि इनका ग्रामीण क्षेत्र से मजबूत जुड़ाव है और इस सेगमेंट में सुधार का इन्हें लाभ मिल सकता है। मुख्य जोखिम मॉनसून की असमान रफ्तार और खाद्य मुद्रास्फीति पर अल नीनो के प्रभाव को लेकर बना हुआ है।