प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार वित्तीय घाटे के लक्ष्य को थोड़ा कम कर सकती है। दरअसल, सरकार सहयोगी दलों से बढ़ती मांगों की चर्चा के बीच अपने खर्च पर नियंत्रण रखना चाहती है। यह खबर सूत्रों के हवाले से आई है।
सूत्रों के मुताबिक, मार्च 2025 तक के लिए वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत या उससे भी कम हो सकता है। गौर करने वाली बात है कि चुनावों से पहले 5.1 प्रतिशत का लक्ष्य रखा गया था। इस बारे में आखिरी फैसला अगले कुछ दिनों में होगा, जिसके बाद 23 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी।
सोदी सरकार को सत्ता में वापस आने के लिए गठबंधन पार्टनरों का सहयोग मिला है। ये पार्टनर अपने राज्यों के लिए ज्यादा पैसे की मांग कर रहे हैं। उन्होंने अब तक अपने राज्यों के लिए 15 अरब डॉलर से ज्यादा की वित्तीय मदद की मांग की है।
भले ही सरकार पर ज्यादा खर्च करने का दबाव है लेकिन केंद्र सरकार को केंद्रीय बैंक से बड़ी रकम का लाभांश मिला है और साथ ही देश में टैक्स कलेक्शन भी अच्छा चल रहा है।
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्था है। सरकार के पास अतिरिक्त खर्च के लिए 25 अरब डॉलर का लाभांश आ गया है। 11 जुलाई तक प्रत्यक्ष कर कलेक्शन में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
ब्लूमबर्ग के एक सर्वे के मुताबिक, अर्थशास्त्री यह अनुमान लगा रहे हैं कि सरकार अपना घाटा लक्ष्य 5 प्रतिशत तक कम कर सकती है। इससे सरकार इस वित्तीय वर्ष में 14.1 ट्रिलियन रुपये (169 अरब डॉलर) का लोन लेने के अपने लक्ष्य को जारी रख सकती है। उम्मीद से कम घाटे से भारत के बॉन्ड बाजार को बढ़ावा मिल सकता है, जहां बेंचमार्क यील्ड दो साल के निचले स्तर पर है।
पिछले महीने भारत के बॉन्ड को प्रमुख वैश्विक सूचकांकों में शामिल किए जाने के बाद भारत की वित्तीय योजनाओं पर पहले से ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। अगर वित्तीय स्थिति में सुधार होता है तो क्रेडिट रेटिंग कंपनियां भारत के कर्ज को अपग्रेड करने पर विचार कर रही हैं। (ब्लूमबर्ग के इनपुट के साथ)