पाकिस्तान में आतंकवादी शिविरों पर हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच आगे टकराव और बढ़ा तो भारत के राजकोषीय घाटे पर दबाव पड़ सकता है। अर्थशात्रियों ने आगाह करते हुए कहा कि तनाव बरकरार रहा तो ज्यादा दबाव की संभावना है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अगर स्थिति नियंत्रण में रहती है तो व्यापक आर्थिक असर सीमित रहने की संभावना है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के एक अर्थशास्त्री ने कहा, ‘राजकोषीय हिसाब से देखें तो पूंजीगत व्यय में कटौती हो सकती है और उसका धन दूसरी तरफ लगाया जा सकता है। लेकिन राजकोषीय विवेक पर उच्च राजकोषीय घाटे का कोई खास असर नहीं पड़ेगा।’
सरकार ने राजकोषीय घाटा कम करके वित्त वर्ष 2026 में इसे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.4 प्रतिशत रखने का लक्ष्य तय किया है। यह वित्त वर्ष 2025 के संशोधित 4.8 प्रतिशत राजकोषीय घाटे से कम है। साथ ही वित्त वर्ष 2031 तक ऋण-जीडीपी अनुपात को दोनों ओर से एक प्रतिशत अंक के घट-बढ़ के साथ 50 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा गया है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर स्थिति नियंत्रण में बनी रहती है तो अर्थव्यवस्था पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा।
एक रिसर्च फर्म के वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने कहा, ‘पिछले 10 वर्षों में भारत में घुसपैठ की अवांछित घटनाएं हुई हैं और इसका जवाब भी दिया गया है। जब तक ऐसी घटनाएं नियंत्रित रहेंगी, तब तक इनका बहुत असर नहीं होने वाला है।’
मूडीज रेटिंग्स ने सोमवार को कहा था कि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण भारत की आर्थिक गतिविधियों पर कोई बड़ा असर पड़ने की संभावना नहीं है। लेकिन रक्षा पर ज्यादा खर्च करने से राजकोषीय मजबूती पर असर पड़ सकता है और राजकोषीय सुदृढ़ता में धीमापन आ सकता है। मूडीज रेटिंग्स ने अनुमान लगाया था कि बीच-बीच में झड़पें होती रहेंगी लेकिन वे किसी व्यापक सैन्य संघर्ष का कारण नहीं बनेंगी।
वित्त वर्ष 2025-26 के लिए रक्षा मंत्रालय को 6.81 लाख करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। वित्त वर्ष 2025 के संशोधित अनुमान की तुलना में इसमें 6.26 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2025 के बजट अनुमानों की तुलना में 9.53 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। यह वित्त वर्ष 2026 के कुल राष्ट्रीय बजट का 13.45 प्रतिशत है और अन्य मंत्रालयों की तुलना में रक्षा मंत्रालय को सबसे अधिक आवंटन है। यह राशि जीडीपी के 1.91 प्रतिशत के बराबर है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगले कुछ दिनों के घटनाक्रमों पर नजर रखने की जरूरत है और अगर तनाव बढ़ता है तो इसका निजी पूंजीगत व्यय पर भी असर आ सकता है। एक परामर्श फर्म के अर्थशास्त्री ने कहा, ‘शेयर बाजार ने इसे शामिल कर लिया है। हमें देखना होगा कि किस तरह का प्रतिरोध आता है। अतिरिक्त व्यय से जीडीपी को बढ़ावा मिल सकता है। लेकिन यह राजकोषीय घाटे के हिसाब से अच्छा नहीं होगा।’
राजकोषीय घाटे के अलावा विशेषज्ञों ने कृत्रिम किल्लत पैदा किए जाने पर भी आगाह किया है। इससे ऐसे समय में कीमतें बढ़ सकती हैं जब खाद्य महंगाई दर में गिरावट आने लगी है। टकराव बढ़ने पर इसकी पूरी संभावना है। उक्त अर्थशास्त्री ने कहा, ‘ऐसे समय में जब तमाम चीजें भारत के पक्ष में चल रही हैं, इससे धारणा प्रभावित हो सकती है। सरकार सोच से ज्यादा काम कर रही है।’