वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि वैश्विक अनिश्चितता के बीच भारत के पास अंतरराष्ट्रीय व्यापार और विनिर्माण क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर है, लेकिन निजी क्षेत्र व नीति निर्माताओं को इन चुनौतियों के प्रति सावधान रहने और पूंजी सृजन को रोके रखने से बचने की जरूरत है।
वित्त मंत्रालय ने मार्च के लिए अपनी मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा है, ‘लंबे समय तक अनिश्चितता की धारणा से निजी क्षेत्र पूंजी सृजन की योजनाओं को रोके रख सकता है। निजी क्षेत्र व नीति निर्माताओं को इस जोखिम के प्रति सचेत रहने की जरूरत है। साथ ही अनिश्चितता को खुद पर हावी होने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।’
वैश्विक गतिविधियों के कारण पैदा हुई अनिश्चितताओं को वित्त वर्ष 2025-26 में वृद्धि के लिए जोखिम बताते हुए वित्त मंत्रालय ने कहा, ‘भू-राजनीतिक घटनाक्रम पर लगातार ध्यान केंद्रित करने के साथ, भारत इन जोखिमों को कम कर सकता है। देश रणनीतिक व्यापार वार्ता, घरेलू सुधारों और विनिर्माण निवेशों में उभरते अवसरों का लाभ उठा सकता है।’
भारत की दीर्घावधि वृद्धि के हिसाब से निजी पूंजी सृजन के महत्त्व पर जोर देते हुए वित्त मंत्रालय ने कहा, ‘सरकार की नीति और नियामकीय कदम दोनों से ही निजी क्षेत्र को अपनी भूमिका निभाने में मदद मिल सकती है।’वित्त मंत्रालय ने इस समय चल रहे वैश्विक व्यापार बाधाओं से पैदा हो रहे जोखिम पर नजदीकी से नजर रखने और बाजारों में विविधीकरण करने पर जोर दिया है, जहां अब तक संभावनाएं नहीं तलाशी गई हैं।
इसमें कहा गया है, ‘निजी क्षेत्र के लिए अपने उत्पादों में विविधता लाने और गुणवत्ता दुरुस्त कनरे का वक्त है, क्योंकि आसान विकल्प अब बीती बात हो गई है।’समीक्षा में कहा गया है कि पूंजी सृजन से बड़ी घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए निवेश-आय, वृद्धि-मांग, वृद्धि-अतिरिक्त क्षमता सृजन का पारस्परिक रूप से सुदृढ़ चक्र बन सकता है।
इसमें कहा गया है, ‘सामान्य दिनों के विपरीत अब कार्रवाई और क्रियान्वयन का असर अब अधिक है। यह ऐसा अवसर है, जिसे गंवाना नहीं चाहिए।’ भूराजनीतिक तनाव, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, शुल्क और व्यापार से जुड़ी अनिश्चितताओं के कारण वैश्विक वृद्धि नीचे जाने का जोखिम है, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार का दृष्टिकोण सकारात्मक बना हुआ है।
वित्त मंत्रालय ने कहा कि अशांत वैश्विक परिदृश्य के बावजूद अर्थव्यवस्था लगातार लचीलापन दिखा रही है और महंगाई दर के दबाव में कमी, उपभोग की बढ़ती मांग, राजकोषीय अनुशासन, श्रम बाजार में स्थिरता और वित्तीय क्षेत्र के लचीले होने के कारण वृद्धि की गति को समर्थन मिल रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुपालन, जांच और लॉजिस्टिक कठिनाइयां हटाया जाना पहले की तुलना में कहीं और जरूरी हो गया है।
मार्च की समीक्षा में यह भी कहा गया है कि कुल मिलाकर महंगाई दर के परिदृश्य में सुधार आया है, ब्याज दर में कटौती से समर्थन मिला है और और खाद्य वस्तुओं की कीमतें सही दिशा में हैं, लेकिन इसमें चेतावनी दी गई है कि भूराजनीतिक अनिश्चितताओं पर नजर रखने की जरूरत है।