देश में अधिक सब्सिडी और उर्वरक के बेजा इस्तेमाल के कारण खेत की मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम (एनपीके) का अनुपात बढ़ गया है। भारतीय उर्वरक संघ (एफएआई) के मुताबिक खरीफ बोआई की समाप्ति पर एनपीके का अनुपात 10.9:4.9:1 है। हालांकि एनपीके का लक्षित अनुपात 4:2:1 है। इस असंतुलन के कारण उत्पादन में ठहराव, मृदा का खराब स्वास्थ्य, द्वितीयक तत्त्वों व सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की व्यापक कमी, मिट्टी की क्षारीयता और लवणता जैसी समस्याएं होती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि उर्वरक की दक्षता, उत्पादन और किसानों का लाभ कम होता है।
एनपीके का आदर्श अनुपात के करीब वर्ष 2009-10 में पहुंचा था, तब यह 4:3.2:1 था। इसके बाद से निरंतर बदलाव जारी है। यह 2012-13 की शुरुआत में 8.2:3.2:1 है। मृदा के संतुलन में खराबी का कारण यूरिया के दामों में बदलाव नहीं होना है और यह भारत के किसानों के लिए संयंत्र में तैयार सस्ता पोषक तत्त्व है।
यूरिया में 46 प्रतिशत नाइट्रोजन है और यह आसानी से मिट्टी में मिल जाता है। वर्ष 2022 के खरीफ (गर्मी में बोआई) के आंकड़ों के अनुसार एनपीके अनुपात 12.8:5.1:1 था जबकि इस दौरान मृदा स्वास्थ्य कार्ड और मिट्टी में उर्वरक के संतुलन को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम किए गए थे।
अधिक अनुदान के कारण 10 वर्षों से अधिक समय से यूरिया के दाम स्थिर है और इसके उपयोग ने असंतुलन किया है। अभी एनपीके में नाइट्रोजन के अनुपात का असंतुलन है। वित्त वर्ष 2022-23 में देश में उर्वरक की कुल खपत 6.4 करोड़ टन है। इसमें यूरिया 3.6 करोड़ टन (करीब 56 प्रतिशत) था।
अन्य उर्वरक जैसे डाइ अमोनिया फास्फेट (डीएपी) करीब 16.25 प्रतिशत, एनपीकेएस (विभिन्न श्रेणियों में) करीब 1 करोड़ टन थे। सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) व मुरिएट ऑफ पोटाश (एमओपी) 66 लाख टन के करीब थे।