हर साल की तरह इस बार भी अक्टूबर त्योहारी महीना था, लेकिन इसका असर कर संग्रह में नहीं दिखाई दिया। इस महीने में सालाना आधार पर कॉरपोरेट कर संग्रह 16 प्रतिशत घटकर 26,356 करोड़ रुपये था जबकि व्यक्तिगत आयकर 12 प्रतिशत गिरकर 61,937 करोड़ रुपये रहा। इसका परिणाम यह हुआ कि इस महीने में कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह 11.9 प्रतिशत गिरकर 88,293 करोड़ रुपये रह गया।
मौजूदा वित्त वर्ष में अक्टूबर तक कॉरपोरेट कर संग्रह मात्र 1.2 प्रतिशत बढ़ा जबकि इस साल के बजट में वित्त वर्ष में इसमें करीब 12 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जताया गया है। महालेखा नियंत्रक के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 25 के पहले सात महीनों में व्यक्तिगत आयकर 16.8 प्रतिशत बढ़ा और यह पूरे साल के लिए अनुमानित 13.6 प्रतिशत से कहीं अधिक है।
अप्रैल-अक्टूबर के दौरान प्रत्यक्ष कर सालाना आधार पर 11.1 प्रतिशत बढ़कर 11 लाख करोड़ रुपये से कुछ अधिक हो गया जबकि वित्त वर्ष 25 के बजट में पूरे साल में इसमें 12.8 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जताया गया है। वैसे तो बीते वित्त वर्ष भी कॉरपोरेट कर संग्रह अक्टूबर में 13 प्रतिशत गिर गया था लेकिन बीते वर्ष दीवाली 13 नवंबर को थी। इसका अर्थ यह है कि त्योहारी मौसम कुछ दिन बाद था।
हालांकि, वित्त वर्ष 24 में अक्टूबर में व्यक्तिगत आयकर करीब 24 प्रतिशत बढ़ गया था। वर्ष 2023-24 में कॉरपोरेट कर अक्टूबर तक 14.8 प्रतिशत अधिक था जबकि व्यक्तिगत आयकर करीब 24 प्रतिशत बढ़ा था। इस वित्त वर्ष के अक्टूबर में इन दो करों के अलावा उत्पाद शुल्क भी करीब 12 प्रतिशत कम हो गया। इससे उत्पाद शुल्क में अक्टूबर तक मात्र 0.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ जबकि पूरे साल के बजट के लिए 4.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जताया गया है।
गौरतलब है कि कच्चे तेल, विमानन विमान ईंधन या एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) और डीजल निर्यात पर अप्रत्याशित कर (विंडफॉल टैक्स) खत्म किए जाने के फैसले से उत्पाद शुल्क संग्रह और प्रभावित होगा अगर कर कम होने से खपत नहीं बढ़ता। कुल मिलाकर कर संग्रह अक्टूबर में मात्र 1.6 प्रतिशत बढ़ा जबकि बीते साल के इस माह इसमें 1.2 प्रतिशत की गिरावट हुई थी। मौजूदा वित्त वर्ष के पहले सात महीने में कर संग्रह 9.7 प्रतिशत बढ़ा जबकि पूरे वित्त वर्ष के लिए 10.8 प्रतिशत का अनुमान जताया गया है।
कर एवं परामर्श फर्म एकेएम ग्लोबल के पार्टनर अमित महेश्वरी ने कहा कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती उजागर हो रही है और यह सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों से भी प्रदर्शित हुई थी। उन्होंने कहा, ‘यह कॉरपोरेट परिणामों और दिए गए अनुमानों से भी पुष्ट होती है।’ हालांकि महेश्वरी ने स्पष्ट किया कि यह चक्रीय गिरावट अधिक नजर आती है और यह ढांचागत नहीं है। लिहाजा अगली कुछ तिमाहियों पर नजर रखनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘इसके परिणामस्वरूप कॉरपोरेट कर के आंकड़ों में गिरावट आई है। हमें लगता है कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती से कर संग्रह कम रहेगा।’ महेश्वरी ने कहा कि सरकारी खर्च बढ़ने के अनुमान से अगली कुछ तिमाहियों में रुझान बदल सकता है। इस वित्त वर्ष में जुलाई से सितंबर के दौरान जीडीपी वृद्धि दर सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर पहुंच गई। हालांकि विेशेषज्ञों के अनुसार इन आंकड़ों के विश्लेषण में सावधानी बरतनी होगी।
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि अक्टूबर के प्रत्यक्ष कर संग्रह के रुझानों को त्योहारी मौसम से जोड़ा जाना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा, ‘यह ऐसा महीना है जिसमें कॉरपोरेट कर का आधार बेहद छोटा है और बकाया जारी करने से संबंधित रुझान सालाना वृद्धि के आंकड़े को बिगाड़ सकते हैं।’ उनकी राय है कि नवंबर में जीएसटी संग्रह में वृद्धि (अक्टूबर में लेनदेन के लिए) बेहतर बेंचमार्क उपलब्ध करा सकती है।