कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की वसूली वर्षों पीछे लटक सकती है जिससे ऋण प्रवाह को झटका लगेगा और अंतत: अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। भारत में डूबते ऋण का आकार एक नई ऊंचाई तक पहुंच जाएगा जिससे उधारी की लागत बढ़ेगी और रेटिंग पर दबाव बढ़ेगी। वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स की ओर से आज प्रकाशित एक रिपोर्ट- कोविड ऐंड इंडियन बैंक्स: वन स्टेफ फॉरवर्ड, टू स्टेप्स बैक- में यह अनुमान जाहिर किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हम उम्मीद करते हैं कि 31 मार्च 2021 को समाप्त वित्त वर्ष में कुल ऋण का करीब 13 से 14 फीसदी हिस्सा गैर-निष्पादित ऋण होगा जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष में इसका अनुमानित आंकड़ा 8.5 फीसदी है। कुल मिलाकर, इस प्रकार के डूबते ऋण के समाधान की प्रक्रिया सुस्त हो सकती है और इसका मतलब साफ है कि बैंकों को बड़े पैमाने पर डूबते ऋण के साथ नए वर्ष में प्रवेश करना पड़ेगा। भारतीय ऋणदाताताओं को ऐसा लग रहा था कि उनकी डूबती परिसंपत्ति की वसूली हो जाएगी। नए दिवालिया कानून सहित कई दौर के आक्रामक सुधार जैसे तमाम कारकों के मद्देनजर उन्हें लगता था कि उनकी उधारी लागत नियंत्रण में है। इसके अलावा सरकार ने पिछले चार वर्षों के दौरान सरकारी बैंकों में करीब 30 अरब डॉलर की पूंजी डाली है। इससे भी स्थिति को बेहतर करने में मदद मिली। लेकिन उसके बाद कोविड-19 प्रकोप के कारण चुनौतियां बढ़ गईं हैं। इससे भारत में गैर-निष्पादित ऋण का आकार एक नई ऊंचाई तक पहुंच जाएगा और उधारी लागत में वृद्धि होगी। इससे अंतत: रेटिंग पर दबाव बढ़ेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि वित्त वर्ष 2022 (31 मार्च 2022 को समाप्त वर्ष) में गैर-निष्पादित ऋण में करीब 100 आधार अंकों का सुधार होगा।’
इसका असर बैंकों के मुकाबले वित्तीय कंपनियों पर अधिक दिखेगा। कुछ वित्तीय कंपनियां कमजोर ग्राहकों ऋण देती हैं और थोक फंडिंग पर उनका भरोसा अधिक होता है। जबकि वर्ष 2018 में आईएलऐंडएफएस डिफॉल्ट के बाद से ही इन कंपनियों का भरोसा डगमगा चुका है।
चालू वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 2021) के लिए उधारी में वृद्धि की रफ्तार भी सुस्त बरकरार रहने का अनुमान है। एसऐंडपी ने कहा है, ‘हमारे आकलन के अनुसार चालू वित्त वर्ष के लिए प्रणाली में निचले एकल अंक में ऋण वृद्धि होगी जिसे मुख्य तौर पर सरकारी गारंटी वाले छोटे कारोबारी ऋण और संचित ब्याज से रफ्तार मिलेगी।’