सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों के संविधान पीठ ने 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट बंद करने के मोदी सरकार के 2016 के फैसले को सही ठहराते हुए आज कहा कि यह निर्णय कार्यकारी नीति से संबंधित था और इसे वापस नहीं लिया जा सकता। शीर्ष अदालत ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण नहीं है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई द्वारा लिखे गए फैसले को न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम ने सहमति दी थी। हालांकि न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने इससे असहमति जताते हुए नोटबंदी के फैसले को गलत ठहराया लेकिन उन्होंने उसे रद्द नहीं किया।
फैसले में कहा गया कि केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बीच छह महीने तक विचार-विमर्श हुआ जो किए गए उपायों और हासिल उद्देश्य के बीच उचित संबंध का संकेत देता है। इसलिए नोटबंदी की अधिसूचना आनुपातिकता के सिद्धांत पर खरी उतरी।
एएसपीएल पार्टनर्स के मैनेजिंग पार्टनर अभिनय शर्मा ने कहा कि आनुपातिकता की जांच का मतलब है लिए गए निर्णय (नोटबंदी) को हासिल उद्देश्यों के लिहाज से परखना। नोटबंदी के उद्देश्यों में काला बाजारी और आतंकियों को वित्तीय मदद रोकना आदि शामिल थे। साथ ही यह भी देखा गया कि नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच विचार-विमर्श हुआ अथवा नहीं।
अदालत ने कहा, ‘नोटबंदी के निर्णय में किसी की कानूनी या संवैधानिक खामियां नहीं हैं। नोटबंदी प्रक्रिया की वैधता से संबंधित मुख्य मुद्दे से जुड़ी अन्य याचिकाएं मुख्य न्यायाधीश द्वारा एक उपयुक्त पीठ के समक्ष रखी जा सकती हैं।’ इसका मतलब यह हुआ कि इस फैसले से जिन याचिओं को राहत नहीं मिली है वे मुख्य न्यायाधीय द्वारा निर्धारित उपयुक्त पीठ के समक्ष याचिका दायर कर सकते हैं। मगर कानून विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका के जरिये ही इस मामले को चुनौती दी जा सकती है।
केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि यह कदम आरबीआई के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद उठाया गया था और नोटबंदी को लागू होने से पहले ही इसकी तैयारी कर ली गई थी।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इस फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि इसमें मुख्य मुद्दा छूट गया है कि नोटबंदी की प्रक्रिया आरबीआई को शुरू करनी चाहिए न कि केंद्र को। उन्होंने कहा, ‘2016 में इसे पलट दिया गया था और इसलिए नोटबंदी का निर्णय कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण था।’ उन्होंने कहा कि नोटबंदी का निर्णय अवैध था, लेकिन अब इसे पलटा नहीं जा सकता है।
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वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि इससे सरकार को भविष्य में ऐसे अन्य लापरवाह निर्णय लेने का लाइसेंस मिल जाएगा।’ मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘इस फैसले में यह कहने के लिए कुछ भी नहीं है कि नोटबंदी के बताए गए उद्देश्य पूरे हो गए।’
सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया। पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आतंकी फंडिंग पर लगाम लगाने में नोटबंदी काफी कारगर साबित हुई।