वित्त वर्ष 22 में भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 7.8 से 8.9 प्रतिशत के बीच रही। इसकी लागत की गणना नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (NCAER) ने की है। उद्योग व आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग ने इस इकनॉमिक थिंक टैंक को गणना की जिम्मेदारी दी थी। हालांकि पहले निजी सर्वेक्षण ने लॉजिस्टिक्स लागत जीडीपी के 10 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान लगाया था।
अधिकारियों ने गुरुवार को बताया कि विश्व बैंक ने गणना के इस तरीके की पुनर्समीक्षा की है। विश्व बैंक ने यह स्वीकारा है कि इसका उचित आधार और प्रारूप है। यह भविष्य में और बेहतर होगा।
लागत की गणना द्वितीयक आंकड़ों के स्रोतों से की गई है। इन स्रोतों में यातायात लागत, वेयर हाउसिंग और भंडारण लागत, सहायक सहायता सेवाओं की लागत, पैकेजिंग की लागत, बीमा लागत और अन्य संचालन लागत हैं।
DPIIT के सचिव राजेश कुमार सिंह ने रिपोर्ट ‘भारत में लॉजिस्टिक्स लागत : आकलन और दीर्घावधि फ्रेमवर्क’ जारी की। यह रिपोर्ट लॉजिस्टिक्स को समुचित ढंग से लागू करने में प्रमुख भूमिका निभा सकती है। इससे भारत की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता भी बढ़ेगी।
DPIIT के सचिव ने बताया कि भारत जमीनी स्तर पर बुनियादी ढांचे व डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहा है। इनसे अनुकूल वातावरण बन रहा है। हम विश्वसनीय आंकड़े हासिल करेंगे।