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Business Standard Manthan: 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के रास्ते में क्लीन एनर्जी और पर्यावरण बड़ी चुनौती

BS Manthan में विशेषज्ञों ने कहा कि 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के लिए जो रोडमैप तैयार किया जा रहा है उसमें क्लीन एनर्जी और पर्यावरण को भी लेकर चलना जरूरी है।

Last Updated- March 28, 2024 | 6:46 PM IST
BS Manthan: India has long road ahead in green energy targets, say experts Business Standard Manthan: 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के रास्ते में क्लीन एनर्जी और पर्यावरण बड़ी चुनौती

केंद्र सरकार लगातार इस बात का दावा और वादा करती आ रही है कि भारत 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। बिज़नेस स्टैंडर्ड की 50वीं सालगिरह के मौके पर आयोजित कार्यक्रम बीएस मंथन (BS Manthan) में जहां वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चार आई (I) के माध्यम से अपने विकसित भारत के प्लान को बताया वहीं आज यानी गुरुवार को बीएस मंथन कार्यक्रम में ही विशेषज्ञों ने कहा कि 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के लिए जो रोडमैप तैयार किया जा रहा है उसमें क्लीन एनर्जी और पर्यावरण को भी साथ-साथ लेकर चलना जरूरी होगा।

बीएस मंथन कार्यक्रम में जिस पैनल ने जीवाश्म ईंधन (fossil fuel), स्वच्छ ऊर्जा (clean energy) और जलवायु वार्ता (climate talks) में भारत के रुख पर चर्चा की, उसमें आरईसी लिमिटेड (REC Ltd) के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (MD) विवेक देवांगन, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की महानिदेशक (director general) सुनीता नारायण, क्लाइमेट, WRI India की कार्यकारी निदेशक (executive director ) उल्का केलकर और Larsen & Toubro में ग्रीन एनर्जी बिजनेस के हेड और सीनियर वाइस प्रेसिडेंट डेरेक एम. शाह शामिल रहे।

नारायण ने कहा कि भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है और आर्थिक विकास को अपनाने के साथ-साथ पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाने की जरूरत है।

ग्रीन एनर्जी सेक्टर में मजबूती विकसित भारत की जरूरत

2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर (30 लाख करोड़ डॉलर) की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की आकांक्षाओं के बारे में बात करते हुए केलकर ने कहा कि दुनिया का कोई भी देश एनर्जी के क्षेत्र में गरीब रहकर अमीर नहीं बना है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में कुछ बड़ी समस्याएं हैं।

जलवायु परिवर्तन से निपटने का भारत का उद्देश्य केवल कार्बन लेंस के जरिये नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, ‘जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का जोखिम शुरू होता है, पॉलिसी को भी उसी के मुताबिक अनुकूल और डिसेंट्रलाइज्ड बनाना होगा। यहां तक ​​कि न्यू एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर या ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर भी जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में होंगे।’

एनर्जी सेक्टर पर आधारित हैं नौकरियां

रिन्यूबल एनर्जी (renewable energy ) को अपनाने से हर साल जो नई ग्रीन एनर्जी सेक्टर में नौकरियां पैदा होंगी, वे श्रम बाजार (लेबर मार्केट) में एंट्री करने वाले युवाओं की संख्या के बराबर नहीं होंगी। केलकर ने कहा, ‘…लेकिन हर साल जॉब मार्केट में एंट्री करने वाली नई वर्कफोर्स (कार्यबल) की संख्या पैदा होने वाली नई नौकरियों के मुकाबले ज्यादा है और यह एक समस्या बन जाएगी।’

नारायण ने कहा, ‘जैसे-जैसे जीवाश्म ईंधन कम हो जाएगा, कर राजस्व (tax revenue) भी कम हो जाएगा। जब तक हम ग्रीन एनर्जी से राजस्व उत्पन्न करने के नए तरीके नहीं खोजेंगे, 2047 तक 1.5 ट्रिलियन डॉलर (1.5 लाख करोड़ डॉलर) का नुकसान हो जाएगा’

रिन्यूबल एनर्जी प्रोडक्शन के लिए क्या है जरूरत

REC Ltd के देवांगन ने कहा कि भारत बिजली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता (producer and consumer of electricity) है और रिन्यूबल एनर्जी इसकी जरूरतों के अनुरूप होगी। देश को विशाल भंडारण क्षमता (huge storage capacities) की जरूरत होगी।

रिन्यूबल एनर्जी सेक्टर में फाइनैंसिंग के मुद्दे पर, नारायण ने कहा, ‘भारतीय उद्योग परिवर्तन की जरूरतों के बारे में अधिक जागरूक हो रहा है, उन कार्यों को करने के लिए जो उनके साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अच्छे हैं। लोहा, सीमेंट, स्टील जैसे क्षेत्रों में मजबूती की जरूरत है। उद्योग अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है।’

एनर्जी फाइनैंसिंग आसान नहीं

हालांकि, उन्होंने कहा कि ग्रीन एनर्जी फाइनैंसिंग अभी भी प्राइवेट सेक्टर से पिछड़ा हुआ है। ‘हमें जिस परिवर्तन की जरूरत है उसे पूरा करने के लिए पूंजी की लागत अभी भी बहुत ज्यादा है। आप रिन्यूबल एनर्जी प्रोजेक्ट को प्रैक्टिकल नहीं बना सकते। कम रियायती फाइनैंस (Low concessional finance ) आवश्यक पैमाने पर अहम होने वाला है।

उन्होंने कहा, ‘प्राइवेट फाइनैंस की स्टोरी खराब है। मुझे नहीं लगता कि प्राइवेट फाइनैंस उस पैमाने पर बदलाव के लिए आएगा, जिस स्तर पर इसकी जरूरत है।’

रिन्यूबल एनर्जी पर नीति से बढ़ रहा निवेश

केलकर ने कहा कि जहां कुछ राज्यों ने ऊर्जा परिवर्तन (energy transformation) में निवेश किया है, वहीं अन्य को अपनी भौगोलिक चुनौतियों से पार पाने के लिए सहायता की आवश्यकता होगी। ‘बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में जलवायु परिवर्तन काफी ज्यादा देखने को मिलता है। नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन (रिन्यूबल एनर्जी प्रोडक्शन) के मामले में वे बुरी स्थिति में हैं। इतना कि उन्हें भविष्य में अन्य राज्यों से नवीकरणीय ऊर्जा खरीदनी पड़ सकती है… इन राज्यों को नुकसान हो सकता है क्योंकि उन्हें अतिरिक्त मदद की आवश्यकता होगी।’

लार्सन एंड टुब्रो (Larsen & Toubro) के शाह ने कहा कि जिन राज्यों ने ग्रीन हाइड्रोजन नीतियों की घोषणा करने में अग्रणी भूमिका निभाई है, उन्होंने निवेश आकर्षित किया है। उन्होंने कहा, ‘जब राज्य नीतियां बनाएंगे, उद्योग भी मांग की ओर आकर्षित होंगे।’

First Published - March 28, 2024 | 6:29 PM IST

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